माही की गूंज, आम्बुआ।
सनातन हिंदू धर्म का त्यौहार जो कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के कारण मनाया जाता है आम्बुआ में यह त्यौहार दो दिनों तक मनाया जा रहा है। 14 जनवरी को दिन भर पकड़ो काटो ढील दो और रेडडा की आवाजें आती रही।
मकर सक्रांति पूर्व शीत ऋतु की विदाई का पर्व भी माना जाता है। बताते हैं कि, मकर सक्रांति के बाद ठंड का असर कम होने लगता है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होने लगता है तथा मकर राशि में प्रवेश के कारण इसे सक्रांति कहा जाता है। आम्बुआ में 14 तथा 15 जनवरी को यह त्यौहार मनाया जा रहा है। घरों में तिल गुड़ के लड्डू, खिचड़ी तथा मूंग के पकौड़े आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। जिसका आदान-प्रदान भी किया जाता है। महिलाएं आपस में तिल गुड़ के लड्डू के साथ सुहाग सामग्रियों का आदान प्रदान करती है। क्षेत्र में गुजरात की संस्कृति का असर होने से पतंगबाजी की जाती है। पतंग बेचने वालों की दुकानों पर दिनभर भीड़ रही। आसमान पर दिन भर पतंगे उड़ती रही तथा कटती रही। पतंग उड़ाने वाले काटो-काटो चिल्लाते रहे तो कटी पतंग को लूटने वाले बच्चों के झुण्ड खेतों बाजारों गलियों में पकड़ो-पकड़ो की आवाज लगाकर दौड़ लगाते दिखे। यही नहीं परंपरागत गिल्ली डंडा का खेल भी युवाओं तथा महिलाओं ने खूब खेला। सुबह मंदिर में विशेष पूजा अर्चना के बाद महाआरती पश्चात तिल गुड़ के लड्डू, चकती, जलेबी, खिचड़ी, खीर, नुकती मिठाई आदि जो भी भगवान को भोग लगाया गया उसकी महाप्रसादी का वितरण भी किया गया।