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दूसरी बार दुकानों की नीलामी निरस्तः आखिर ग्राम पंचायत करें तो क्या करें...?
10, Jan 2025 4 months ago

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इन दुकानो में 1 नम्बर की दुकान निलामी में बन रही रोड़ा

माही की गूंज, खवासा।

    ग्राम पंचायत के जवाबदार अगर कोई कार्य नहीं करते हैं तो हम उनकी कमियां ग्राम विकास हैतु बताते हैं। लेकिन पंचायत कोई अच्छा कार्य करें तो हमारा यह दायित्व होता है कि, हम अच्छे कार्य की सराहना करें व अच्छे कार्य हेतु ग्राम पंचायत के सहयोगी भी बने। लेकिन स्वार्थपूर्ण राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि, व्यक्ति सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु किसी भी स्थिति में निचले स्तर पर गिरने को तत्पर रहता है।

    ऐसे स्वार्थीतत्वों को ग्राम पंचायत या आमजन के हितों की सुविधा से कोई लेना-देना नहीं होता है। ग्राम पंचायत खवासा में देखने में यह सामने आ रहा है कि, यहां के कुछ स्वार्थीतत्व अपने स्वार्थसिद्धी एवं अपने निजी द्वेषभाव पूर्ति के चलते ग्राम पंचायत कुछ अच्छा भी करना चाहे तो भी  उसे करने नहीं दिया जा रहा है।

    और तो और  प्रशासनिक अधिकारी भी पंचायत की व्यथा को नजर अंदाज कर बिना तर्क संगत कागजी घोड़े दौडाकर खवासा विकास में बाधा बनते दिखाई दे रहे है।

    बात करें, ग्राम पंचायत खवासा में बाजना मार्ग स्थित मोहन भोई (कहार) के घर के पास चार दुकानों की नीलामी की तो, इन दुकानों की नीलामी के आखिरी समय में ही दूसरी बार एक दिन पूर्व रात्रि में निलामी निरस्त करने का मामला सामने आया। जिसे किसी भी स्थिति में सही नहीं कहा जा सकता है।

    मामला कुछ  यू  हुआ कि, उक्त चार दुकानों के स्थान पर पूर्व में पंचायत के अधीन एक कच्चा मकान था जिसे बिजली विभाग खवासा के एक कर्मचारी सुरेंद्र कुमार पिता शंकरलाल बाथम को किराए से मकान दिया था। जो की, रिटायरमेंट के पूर्व तक परिवार के साथ सुरेंद्र बाथम इस मकान में रहे। रिटायर्डमेंट के बाद सुरेंद्र बाथम ने  अपना खुद का मकान बनाया और वहां रहने लगे।

    वहीं पंचायत के अधीन कच्चे मकान को पंचायत ने तोड़ खवासा विकास के लिए पहले तीन दुकान बनाने का प्रोजेक्ट बनाया और बाद में स्थानीय मांग के चलते ग्राम पंचायत ने नए प्रोजेक्ट के चलते जमीन तल पर दो और प्रथम तल पर दो कुल चार दुकाने बनाकर आरक्षित प्रक्रिया के साथ नीलामी प्रक्रिया में दुकाने देने का प्रोजेक्ट बनाया। जोकि दुकानें बनने के बाद भी करीब तीन साल से नीलामी प्रक्रिया अटकी हुई थी। वहीं सुरेंद्र बाथम ने न्यायिक सहारा लेकर एक दुकान उनके हेतु व्यवसाय करने के लिए दी जाए की मांग की थी। जिसपर न्यायालय ने पंचायत द्वारा एक दुकान सुरेंद्र कुमार बाथम को देने के लिए निर्देशित किया था। वही नई ग्राम पंचायत बॉडी ने 30 अगस्त 2024 के दिन चार दुकानो को नीलाम किये जाने हेतु विज्ञप्ति जारी की थी। जिसमें 1 नंबर की दुकान न्यायालय निर्देश अनुसार सुरेंद्र बाथम, 2 नंबर की दुकान पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग। प्रथम तल की 3 व 4 नंबर की दुकान एसटी-एससी वर्ग के लिए आरक्षित की गई थी। वहीं निर्धारित प्रथम तल की दुकानों का 5 लाख 51 हजार मूल्य से ऊपर नीलामी में बोली लगाने का था। वहीं जमीन तल की दुकानों का निर्धारण 11 लाख 51 हजार मूल्य रखा था।  जिसमें 1 नंबर दुकान पंचायत के निर्धारित मूल्य के साथ ही बिना नीलामी के एक दुकान नंबर 1 की 11 लाख 51 हजार रूपये में न्यायालय के निर्देश अनुसार सुरेंद्र बाथम को दिया जाना तय किया था। लेकिन 1 नंबर की दुकान को बिना नीलामी प्रक्रिया के व एससी व एसटी के आरक्षित ऊपरी तल की दुकानों को रखे जाने पर ग्राम के कई लोगों ने आपत्तिया जताई और आरक्षण प्रक्रिया गोटी के आधार पर किए जाने की मांग की। जिसमें गोटी के आधार पर ही सुरेंद्र बाथम को भी बिना नीलामी के न्यायालय के आदेशानुसार एक दुकान दी जाने की मांग सामने आई।

    ग्रामवासियों की उक्त मांग यहां जायज थी, क्योंकि गोटी सिस्टम से दुकानों का आरक्षण व सुरेंद्र बाथम को दुकान दिए जाने पर सभी विवादों का एक सही समाधान था। नतीजन गोटी प्रक्रिया के साथ नीलामी करने हेतु ग्राम पंचायत खवासा ने 30 अगस्त की होने वाली नीलामी को 29 अगस्त की देर शाम को निरस्त किया गया था।

दूसरी नीलामी एसडीएम व जनपद सीईओ के कारण हुई निरस्त

    वहीं ग्राम पंचायत खवासा ने गोटी प्रक्रिया के साथ आरक्षण एवं नीलामी एवं सुरेंद्र बाथम को बिना नीलामी के एक दुकान दिए जाने हेतु 8 जनवरी को नीलामी प्रक्रिया रखी गई थी। जिसका प्रस्ताव व विज्ञप्ति 23 दिसंबर को ग्राम पंचायत खवासा ने जारी किया था।

    उक्त नीलामी प्रक्रिया से ग्राम का प्रत्येक नागरिक संतुष्ट था और लोगों में दुकान लेने हेतु उत्साह भी था। लेकिन सुरेंद्र बाथम के पुत्र ललित बाथम ने नीलामी के 1 दिन पूर्व 7 जनवरी को कुछ स्वार्थीतत्वों के  बहकावे में आकर थांदला एसडीएम कार्यालय में अपनी आपत्ति दर्ज करवाई।

    एसडीएम थांदला के आदेश पर थांदला जनपद सीईओ ने पत्र  क्र. 85/ज.प.स्था./7 जनवरी 2025 के साथ आदेश जारी किया कि, 30 अगस्त को नीलामी के पूर्व 29 अगस्त 2024 को पत्र क्रमांक 611/ग्रा.प./2024 को अनुविभागी अधिकारी राजस्व थांदला को प्रस्तुत किये गए पत्रानुसार ही नीलामी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।

    बतादे कि, पंचायत ने पूर्व में जमीनतल की 1 नंबर की दुकान सुरेंद्र बाथम को दिए जाने की बात  दर्शाई गई थी। उसी बात पर ग्रामवासियों की आपत्तिया होने पर 30 अगस्त को होने वाली नीलामी को निरस्त किया गया था। तथा उक्त सारी जानकारी थांदला सीईओ से लेकर एसडीएम को होने के बावजूद, जनता जनार्दन से ऊपर जाकर नीलामी प्रक्रिया व ग्राम विकास में बाधा बन  सीईओ थांदला ने ग्राम पंचायत को पत्र जारी कर अंतिम समय में नीलामी प्रक्रिया को निरस्त करने का घिनौना प्रयास किया। जिसकी निंदा ग्रामवासियों द्वारा की जा रही है।

पूरी रोटी खाने के चक्कर में आधी से भी बाथम को धोना पड़ सकता है हाथ...!

    थांदला सीईओ देवेंद्र बारोडिया के जारी आदेश के बाद जैसे ही निलामी निरस्त की यह बात ग्राम में फैली तो ग्रामवासियों में निराशा हाथ लगी व अधिकारियों पर आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिले भी चर्चा में होने लगे। वही ग्राम पंचायत ने तत्काल शाम 7 बजे बाद पंचायत बॉडी की आपात बैठक रखी गई व निर्णय लिया गया कि, न्यायालय ने सुरेंद्र  बाथम को एक दुकान देने का निर्देश दिया था और उसका पालन कर एक दुकान बिना नीलामी प्रक्रिया के गोटी के आधार पर पंचायत के निर्धारित मूल्य के साथ दिया जाना था। लेकिन सुरेंद्र बाथम के पुत्र ललित बाथम ने बे-बुनियाद आपत्ती के साथ ग्राम विकास में बाधा बन स्थानीय लोगों का विश्वास तोड़ा है। ऐसे में ग्राम पंचायत में बैठक में निर्णय लिया गया कि, सुरेंद्र बाथम जिनको व्यवसाय हेतु एक दुकान देने का निर्देश न्यायालय ने दिया था उनका स्वर्गवास हो गया है। वही सुरेंद्र बाथम ने अपने स्वर्गवास के पूर्व एक पक्का मकान बनाया और परिवार वहां अच्छे से निवास कर रहे हैं। वहीं पुत्र ललित बाथम एवं उसका छोटा भाई दोनों कियोस्क का संचालक कर आर्थिक रूप से सक्षम व सभ्य है।  ऐसे में सुरेंद्र बाथम की मौत के बाद इन्हें पंचायत की ओर से एक दुकान देने का कोई औचित्य नहीं रहता है। इस मजबूत तथ्य के साथ ग्राम पंचायत न्यायालय में जाकर अपने मजबूत तर्क रखेगी का निर्णय लिया। पंचायत, ग्राम विकासहित के चलते प्रयास करेगी कि, पूर्व में निचली न्यायालय के निर्देश को उच्च न्यायालय में जाकर निरस्त करवाया जाए।

   पंचायत के उक्त निर्णय के बाद वर्तमान में यही कहावत सामने आ रही है कि, कही पूरी रोटी खाने के चक्कर में ललित बाथम आधी रोटी से भी हाथ न धो बैठे। यानीकि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का, यह कहावत भी उच्च न्यायालय के निर्देश के साथ भविष्य में सामने आने की संभावनाए पंचायत के निर्णय अनुसार जताई जा रही है।

थांदला सीईओ के इस आदेश के बाद 8 जनवरी को होने वाली निलामी हुई निरस्त


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