
माही की गूंज, आम्बुआ।
देश में हो या प्रदेशों में मौसम के अनुसार फसले पैदा की जाती रही है। इन्हीं में खरीफ तथा रबी की फसले पैदा की जाती रही बे मौसम फसले नहीं बोई जाती थी और ना ही बे पैदा होती थी मगर देखा जा रहा है कि, विगत कुछ वर्षों से बे मौसमी फसलों का चलन बढ़ता जा रहा है तथा वह अन्य मौसम में अपनी वास्तिक मौसम के उत्पादन से भी अधिक उत्पादन दे रही हो तो आश्चर्य तो होगा ही...?
जैसा कि विदित है कि खरीफ के मौसम की फसलों में मक्का, तिल्ली, बाजरा, मूंग तथा ज्वार बाजरा एवं मूंगफली कुछ तेजी ऐसी फसले है जो कि खरीफ में भी भरपूर पैदावार देती है। उसी तरह रबी के मौसमी फसलों में गेहूं, चना, मटर, सरसों, राय, सूरजमुखी आदि प्रमुख है। जो कि रबी में बोने पर अधिक उत्पादन देती है रबी की फसले वर्षाकाल यानि की खरीफ के मौसम में नहीं बोई जाती है। क्योंकि ये अधिक पानी तथा धूप नहीं मिल पाने के कारण खराब हो जाती है इसलिए कृषक इन्हें खरीफ की फसलों में नहीं बोते हैं।
मगर देखा जा रहा कि खरीफ की प्रमुख फसले मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, मूंग तथा तिल्ली गर्मी के मौसम यानी की शीत तथा गर्मी के मौसम में जिन्हें रबी का मौसम कहा जाता है में बोने का चलन बदला जा रहा है तथा उत्पादन भी खरीफ की फसल से अधिक होता देखा जा रहा है। कृषक कलम सिंह कनेश (भोरदू), राजू पटेल (वड़ी), डूंगरसिंह (कुण्ड), नारायण सिंह चौहान (अडवाड़ा), नादान सिंह रावत (ईटारा), विक्रम सिंह रावत (देकालकुआ) जगत सिंह (आम्बी) अमरसिंह डुडवे (मोटाउमर), रमेश बघेल (झौरा), रूमसिंह भूरिया (चिचलाना) आदि ने बताया कि गर्मी में इन फसलों को इसलिए पैदा किया जाता है कि इनमें कीट पतंगे तथा अन्य प्रकार की बीमारियां ठंड तथा गर्मी के कारण नहीं होती है। हालांकि सिंचाई की व्यवस्था करना पड़ती है गेहूं की फसल से कम सिंचाई में यह फसले हो जाती है। इसलिए खरीफ की मक्का, मूंगफली, तिल्ली, मूंग, ज्वार, बाजार रबी में बो कर अधिक आय प्राप्त की जा रही है।