माही की गूंज, आम्बुआ।
हर स्थान का महत्व होता है जैसे किसी मशीन के बिगड़ जाने पर मैकेनिक या मशीन के कारीगर के पास ले जाना पड़ता है वही उसे ठीक करता है। यदि मशीन को कहीं और ले जाओगे तो वह ठीक नहीं होगी। उसी तरह यदि मन की मशीन खराब हो गई है तो उसकी मरम्मत भगवान के दरबार में जाकर भागवत भजन करने से होगी इसलिए सही जगह जाने की आदत डालें।
उक्त विचार आम्बुआ शंकर मंदिर प्रांगण में चल रही राठौड़ परिवार द्वारा कराई जा रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान व्यास पीठ से कथावाचक पंडित श्री अमित शास्त्री ने व्यक्त किए। कथा के द्वितीय दिवस नारद जी के पूर्व जन्म तथा दूसरे जन्म में ब्रह्माजी के पुत्र के रूप में जन्म लेकर पुनः नारद बने की कथा पूर्व जन्म के संस्कार जो कि संतों से मिले थे के कारण वे भी संत स्वभाव के हो गए। उन्होंने व्यास जी से कहा कि आपने 17 पुराणों की रचना की भागवत कथा का गान करो जब उन्होंने गाना चालू किया तो नारद जी ने श्री गणेश जी से उसे भागवत कथा को लिखने की प्रार्थना की तब वेदव्यास जी गाते रहे श्री गणेश जी लिखते गए और भागवत पुराण की अमर रचना हो गई।
आगे श्री शास्त्री जी ने कहा कि, भगवान के सामने झूठ नहीं बोलना चाहिए यदि झूठ बोलोगे तो हजारों गुना पाप लगेगा आज जो भी संसार से जाता है। मशीन पर चढ़कर जाता है यानी बीमार होता है अस्पताल में मशीन पर चढ़ता है और संसार से चला जाता है। गुरु बनाने की इच्छा हो तो सोच समझ कर बनाए जैसे मीरा ने काशी में जाकर रैदास जी को गुरु बनाया उसने सोचा जो जूते चमका सकता है वह मेरी किस्मत चमका देगा गुरु हनुमान जैसा हो जो कि श्री राम से मिला देता है।
कथा में अश्वत्थामा का चरित्र सुनाया। यह पांडव कुल के गुरु का लड़का था उसने कौरवों के लिए द्रोपदी के सोए हुए पुत्रों को मार दिया। इसके बाद उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चलाया तब उत्तरा ने भगवान कृष्ण को पुकारा जिन्होंने गर्भ की रक्षा की यानी परेशानी आए तो संसार के सामने नहीं भगवान के सामने जाओ वह रक्षा करेगा इसके पूर्व द्रोपती का जब चीरहरण हुआ तब भी भगवान ने बचाया था साड़ी बढ़ाई थी।
आगे उन्होंने भीष्म पितामह की कथा 56 दिनों तक मृत्युसैय्या पर पड़े रहने तथा उनकी मृत्यु कैसे हुई को विस्तार से बताया। आगे राजा परीक्षित की कहानी का विस्तार करते हुए बताया की वे एक दिन शिकार करने जंगल में गए जहा पर उन्हें प्यास लगी तो वे पानी ढूंढते हुए एक आश्रम में पहुंचे। जहा के संत समाधि में होने के कारण उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी राजा के सर पर सोने का मुकुट था। जिसमे कलयुग बैठा हुआ था जिस कारण राजा की बुद्धि खराब हो गई और उन्होंने एक मरा हुआ सर्प संत के गले में डाल दिया और अपने महल को चले गए। संत के पुत्र श्रृंगी ऋषि जब आश्रम आए तो उनके पिता के गले में सर्प देख कर उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने यह श्राप दिया की जिसने मेरे पिता के गले में सर्प डाला है। उसको सात दिन के अन्दर तक्षक नाग डसेगा जब राजा को पता लगा तो वे अपने गुरु के पास गया तथा गुरु की सलाह पर श्री सुखदेव महाराज से सात दिनों तक कथा सुनी सात दिवस बाद तक्षक नाग के डसने से राजा की मृत्यु हुई तथा भागवत कथा सुनने के कारण राजा का उद्धार हो कर स्वर्ग को गए।
आज की कथा विश्राम पर बाल शिव भक्त मंडल द्वारा भागवत पुराण की आरती की जाकर मंडल की ओर से भक्तो को प्रसादी वितरित की गई।