माही की गूंज, बड़वानी
बात आत्मनिर्भर बनने की हो तो भला दिव्यांग कैसे उससे अछूते रह सकते हैं। आत्मनिर्भर बनने के लिए स्थानीय संसाधन बहुत उपयोगी होते हैं और यदि हमारे आसपास घर के नजदीक ही खाली भूमि मिल जाए तो भला मेहनती लोगों को कृषि कार्य करने से कौन रोक नही सकता है। कहने को रूमा कुष्ठ दिव्यांग होने के कारण हाथ और पैर दोनों की उंगलियां कुष्ठ रोग हो जाने के कारण नहीं है। किंतु दिव्यांग रूमा ने अपने इन्हीं हाथ-पैरों को अपने दैनिक कार्यों के लिए इतना सशक्त बना लिया है कि, ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो वह सामान्य व्यक्ति की तरह नहीं कर सकते हैं।
रूमा पिता गना ने आशा ग्राम में पहाड़ की ढलवा जमीन को अपने पूरे परिवार के साथ मिलकर कृषि कार्य के लिए उपयोगी बनाकर वहां पर मूंगफली और मक्का का रोपण किया है, जिसे देखकर सभी अचंभित है। रूमा बताते हैं कि, हम वर्षा काल के 1 माह पूर्व ही जमीन को तैयार कर बुवाई के लिए संसाधन जुटा लेते हैं, उसी का परिणाम है कि, आज मेरी फसल लहलहा रही है। आशाग्राम के अधिकतर कुष्ठ अंतः वासी किचन गार्डन की तर्ज पर मूंगफली और मूंग की खेती कार्य में लगे हुए हैं तथा वर्षा काल में वे खेती कर वर्ष भर की दाल और मूंगफली की आपूर्ति कर पूरी कर लेते हैं।