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गैस सिलेंडर के भाव बढ़ने से परेशान समूह लकड़ी पर बना रहे भोजन
माही की गूंज, आम्बुआ।
महंगाई का असर सभी और बड़ता नजर आ रहा है। इसका एक असर घर तथा अन्य स्थानों पर बने रसोईघर में अधिक दिखाई दे रहा है। उज्जवला योजना में नि:शुल्क मिला सिलेंडर अब नहीं भरा पाने के कारण पुनः चूल्हा भट्टी में लकड़ी का उपयोग होने लगा है।
गूंज संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार शिक्षण संस्थाओं में मध्यान्ह भोजन बनाए जाने का कार्य स्वसहायता समूहों द्वारा किया जा रहा है। कस्बा तथा ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत समूहों को भी गैस सिलेंडर प्रदाय किए गए हैं। जिस संस्था में 200-300 बच्चों के लिए भोजन बनता है वहां एक सिलेंडर एक हफ्ते चलता है। इस तरह पूरे महीने में लगभग 5 सिलेंडर लगते हैं। एक सिलेंडर भरवाने में क्षेत्र में एक हजार 150 रुपए कीमत लग रही है। यहां भोजन बनाने वाले समूह इतना महंगा सिलेंडर नहीं खरीद पा रहे हैं। मजबूरन उन्हें लकड़ी जलाना पड़ रही है। जिस कारण इतना धुआं होता है कि, कमरे तो काले हो ही रहे हैं आंखों से आंसू भी बहते हैं फेफड़ों में जाने वाला धुआं भोजन बनाने वाली चार-पांच महिलाओं के स्वास्थ पर विपरीत असर डाल रहा होगा।
समूह की महिलाओं ने बताया कि, सिलेंडर के भाव बढ़ने के कारण समूह इतनी राशि खर्च नहीं कर सकता। मजबूरन चूल्हे में लकड़ी जलाना पड़ती है। गैस से लकड़ी सस्ती पड़ती है फिर यह लकड़ी का धुआं भले ही उन्हें बीमारी की ओर धकेल दे। शासन की ओर से सब्सिडी भी लगभग बंद कर दी है। यदि मिल भी रही है तो बहुत कम मिलती है। कई बार सब्सिडी खातों में नहीं आती है। शासन-प्रशासन को इस ओर अविलंब ध्यान देकर मध्य भोजन बनाने वाले समूह को सिलेंडर के भाव में कमी करना जरूरी माना जा रहा है।