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1857 की क्रांति में प्रथम स्वतंत्रता सेनानी अमझेरा नरेश अमर शहीद महाराव बख्तावरसिंह राठौर
Report By: विक्रमसिंह राठौर 10, Feb 2023 1 year ago

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 मातृभूमि के चरणों में अपना सर्वस्व न्यौंछावर कर भारत की आजादी के लिए बलिदान हो गये

बलिदान दिवस पर विशेष....

माही की गूंज, अमझेरा। 

        1857 क्रांति की ज्वाला उत्तर प्रदेश के मेरठ से जली थी लेकिन उसकी एक चिंगारी इस मालवा प्रांत के अमझेरा राज्य पर भी गिरी थी। जहॉ भारतमाता के वीर सपूत रण बांकुरे  महायोद्धा महाराज बख्तावरसिंह राठौर निर्भिक होकर स्वाभिमान के साथ  प्रजा के हितो की रक्षा करते हुए स्वतंत्र रूप से अपना राज-पाट चला रहे थे। महाराज बख्तावरसिंहजी के मन में बचपन से ही अंग्रेजी हुकुमत की गुलामी की जंजीरो में बंधी भारतमाता को मुक्त कराने के लिए राजपुताना रक्त हिलोरे मार रहा था। जो 1857 की क्रांति में उबल पड़ा और अपनी सेना के साथ अदम्य साहस और पराक्रम को दिखाते हुए आजादी की जंग में कुद पड़े और फिरंगीयों के छक्के छुड़ाते हुए अपने राज्य की सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया। 3 जुलाई 1857 की रात्रि में भोपावर की छावनी पर हमला कर अंग्रेजी सेना को भगा दिया और छावनी पर पुर्ण कब्जा कर तिरंगा फहरा दिया । इसके अलावा 16 अक्टुबर 1857 को मानपुर-गुजरी ब्रिटीश सैन्य छावनी एवं 18 अक्टूबर 1857 को मण्डलेष्वर छावनी पर चौतरफा हमला कर सैकड़ो अंग्रेज सैनिको को मौत के घाट उतार कर  छावनियों पर कब्जा कर लिया। इस तरह से महाराज बख्तावरसिंहजी ने 1857 की क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हुए अंग्रजी हुकुमत की नींव हिला कर रख दी थी तथा अंग्रेज अफसर उनका नाम सुनकर भी कांप जाते थे लेकिन अंग्रेजो ने अपनी सैन्य शक्ति को एकत्रित कर अमझेरा राज्य पर आक्रमण कर दिया तब राजा बख्तावरसिंह अपने अमझेरा स्थित चौमुखे किले मे बने गुप्त रास्ते से अपने परिवार और विश्वासपात्रों के साथ  लालगढ़ के किले पर पहुंच गये । लालगढ़ का किला अमझेरा से करीब 10 किमी दुर जंगलो में ऊॅंचे और दुर्गम स्थान पर बना हुआ था जहॉ अंग्रजी सेना का पहुंचना मुश्किल था ऐसे में अंग्रेजो ने कुटनीति बनाकर उन्हे संधि करने के बहाने महू बुलाया गया जहॉ राजा को धोखे से 11 नवबंर 1857 को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया तथा उनके विष्वासपात्रो को भी मार दिया गया । अंग्रेजो ने राजा बख्तावरसिंह को कई प्रकार की घोर यातनाएॅ दी लेकिन वे राजा को झुका नहीं सके।  अंग्रेजो को राजा बख्तावरसिंह का इतना खौफ था कि उन्हौने सारे नियम,कायदो और कानुन की किताबों को ताक में रखकर 10 फरवरी 1858 को इन्दौर के एमव्हायएच चिकित्सा कंपाउंड में स्थित नीम के पेड़ पर फांसी पर चढ़ा दिया गया। 1857 की क्रांति में मालवा प्रांत से एकमात्र राजा बख्तावरसिंहजी ही थे जिन्होने अंग्रेजो से आजादी की सीधी लड़ाई लड़ी इसलिए उन्हे मालव वीर भी कहा जाता हैं।  इस तरह से भारतमाता के इस वीर योद्धा ने मातृभूमि की रक्षा एवं भारत देश की आन,बान और शान के लिए भारतमाता के चरणों में अपना सब कुछ न्यौंछावर कर दिया। 10 फरवरी  राजा के बलिदान दिवस पर नगरजन, क्षेत्रवासी, अधिकारी व जनप्रतिनिधिगण उन्हें श्रद्धांजलि देकर देश की आजादी के लिये दिये गए उनके योगदान को याद करते हैं।




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