माही की गूंज, खरगोन।
कसरावद तहसील क्षेत्र के देवग्राम खामखेड़ा में गायत्री परिवार द्वारा चार दिवसीय नौ कुंडीय गायत्री महायज्ञ, संस्कार एवं दांपत्य शिविर का आगाज़ भव्य कलश एवं सद्ग्रंथ शोभायात्रा के माध्यम से हुआ। रेवा गुर्जर समाज धर्मशाला में सबसे पहले मंच से देव शक्तियों का आह्वान, पूजन किया गया। गायत्री शक्तिपीठ के परिव्राजक रामजी पाटीदार, कालु सिंह सोलंकी एवं अमरसिंह सोलंकी ने संगीतमय कर्मकांड द्वारा देवपूजन का क्रम संपन्न किया। तत्पश्चात कलशयात्रा प्रारंभ हुई।
कलशयात्रा के सबसे आगे बैंड-बाजे वाले सुमधुर गीतों की प्रस्तुति देते चल रहे थे। उनके पीछे दो घोड़ों पर रानी लक्ष्मीबाई और रानी दुर्गावती बनी दो बालिकाएं वीरता और शौर्य का संदेश देते चल रही थीं। उनके पीछे पीली झंडियां लिए बालक बालिकाएं यात्रा की शोभा बढ़ा रही थीं। इनके पीछे सद्ग्रंथ सिर पर धारण कर ग्राम के नवदंपति धर्म ग्रंथों की महिमा बखान करते जा रहे थे। इनके ठीक पीछे सिर पर कलश धारण कर मातृशक्ति चल रही थीं। यात्रा में छोटे ट्रेक्टरों पर राम दरबार, राधा कृष्ण, शिव पार्वती, भारत माता, विवेकानंद, भीमराव अम्बेडकर एवं महात्मा गांधी की झांकियां सबका मन मोह रही थीं। एक झांकी में देवी अहिल्या माता, लक्ष्मी माता और वेदमाता गायत्री बनीं तीन नवयुवतियां अत्यंत सुंदर लग रही थीं।
कलशयात्रा में आसपास के 10 से 12 गांवों के ग्रामीणों ने सैकड़ों की संख्या में भागीदारी की। यात्रा में युवाओं की टोलियां राष्ट्रजागरण संबंधी गीतों की प्रस्तुति देते चल रहे थे। नवयुवक अयोध्या में भगवान राम के बहुप्रतीक्षित प्राण-प्रतिष्ठा संबंधी जयघोष भी करते चल रहे थे। इसके साथ ही नवयुवतियों की टोलियां भी धर्म जागरण संबंधी भजनों की प्रस्तुति देते जा रही थीं। यात्रा का ग्रामवासियों ने जगह जगह पुष्प वर्षा और जलपान से भव्य स्वागत किया। लोगों ने अपने घर के आंगन में यात्रा के स्वागत में सुंदर रांगोली एवं तोरणद्वार की सजावट की थी। यात्रा के स्वागत में ग्रामीणों का उत्साह एवं उल्लास देखते ही बनता था। लोग अपने घरों के बाहर और चौराहों पर आकर बड़े हुजुम में यात्रा की अगवानी में खड़े रहे। इस तरह इस दिव्य कलशयात्रा से पूरे खामखेड़ा गांव का वातावरण धर्ममय हो गया।
यात्रा गुर्जर समाज धर्मशाला से प्रारंभ हुई जो कहार मोहल्ला, शिव मंदिर प्रांगण, बजरंग मंदिर परिसर, गुर्जर मोहल्ला से मैन चौराहा होती हुई वापिस गुर्जर धर्मशाला में समाप्त हुई। यहां तैंतीस कोटि देवी देवताओं की उपस्थिति में मुख्य ध्वज का पूजन कर कलशों की विधिवत स्थापना की गई।