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भारत भर में स्वतंत्रता की जंग छिड़ी थी भारी उसी जंग में बख्तावरसिंह की देखो चोट करारी- राम भदावर
11, Feb 2023 2 years ago

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कवि सम्मेलन में लगे भारतमाता की जय और बख्तावरसिंह अमर रहे के नारे

माही की गूंज, अमझेरा।

        अमर शहीद महाराव बख्तावरसिंहजी के 166 वे बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में स्वराज संस्थान संचलनालय भोपाल के द्वारा रात्रि में बस स्टेण्ड पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिमसें उ.प्र. के इटावा से आये वीर रस के कवि राम भदावर ने महाराजा बख्तावरसिंह पर कविता का पाठ करते हुए कहा कि, "वीर प्रसुता माटी के एक शेर हुआ बख्तावर, जिसने अपना तनम न जीवन कर डाला न्यौंछावर, भारत भर में स्वतंत्रता की जंग छिड़ी थी भारी, उसी जंग में बख्तावरसिंह की देखो चोट करारी वाली" पंक्तियों पर भारत माता और बख्तावरसिंह अमर रहे के नारे समुचे सदन में गुंज उठे। 

        कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वंदना से की गई। जिसमें पुष्पेन्द्र पुष्प बड़नगर के कवि ने "जय जय हो वीणा पाणी मां ब्रहमाणी हे महारानी कविता के साथ ही आंख दिखा रहे थे, कल तक सेनाओं को, शर्मसार हो के वहीं नजरे झुका रहे और कल तक जो विरोध कर रहे थे मां भारती का आज वहीं वंदेमातरम गा रहे" कविता पर श्रोताओं की तालियां बज उठी।

        रतलाम से आए युवा कवि दर्शन लोहार ने भी अपनी ओजस्वी वाणी के साथ काव्य पाठ करते हुए महाराणा  प्रताप पर कविता कहते हुए कहा कि, "विजय पताका फहराई थी मेवाड़ की धरती पर, घास की रोटी खाकर विजय पायी थी महाराणा ने, भारत की आन-बान-शान  स्वाभिमान के लिए आज हथियारों में भवानी मांगता है पर खुद दाद बटोरी"। कवियीत्री शबाना शबनम उज्जैन के द्वारा "जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है, इसमें आन, बान है इसमे ही सम्मान है, माटी का कर्ज का मोल करे कम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम के साथ ही ये हिन्दुस्तान हमारा" कविता का पाठ किया गया। प्रतापगढ़ राजस्थान के कवि पार्थ नवीन ने अपनी पेराड़ीयुक्त गीतो की पंक्तियों से दर्शको खुब गुदगुदाया। वहीं न तो झांसी वाली रानी कहीं, न तो पन्ना की मर्दानी कहीं, न ही राणा की कहानी कहीं, जितना कहुं कम है लगना जग घुमिया थारे जैसा ना कोई पर श्रोताओं की तालियां बज उठी। 

        कवि सम्मेलन का संचालन प्रख्यात कवि धार के संदीप शर्मा ने करते हुए अपनी काव्य रचना में बताया कि, राजा बख्तावरसिंहजी अंग्रेजो में इतना अधिक भय था कि उन्होने अपनी कानुन की किताब के नियम बदलते हुए हेंग टू देथ से हेंग टील देथ अर्थात मरने तक फांसी के फंदे पर लटकाये रखने का नियम करना पड़ा। इसके साथ ही काव्य पाठ के दौरान उन्हौने कहा कि, पतझड़ी शाख मधुमास हो जाएगी धुल उड़कर के आकाश हो जाएगी। ये जिंदगी इस वतन पर तो लुटाकर देख ये कथा एक इतिहास बन जाएगी के साथ ही भगवा आंतकी नहीं हो सकता कविता पर सदन तालियों से गुंज उठा। कार्यक्रम की शुरूआत राजा बख्तावरसिंहजी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित एवं पुष्पहार पहना कर की गई। वहीं नगर के जनप्रतिधिगण निलांबर शर्मा, रवि पाठक, भगवानदास खंडेलवाल, अश्विन शर्मा, शुभम दीक्षित, शिवा मकवाना, सचिव भारतसिंह सोलंकी, मुकेश राठौड़, विजय दीक्षित आदि के द्वारा कवियों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भोज संस्थान धार के डाॅ. दीपेन्द्र शर्मा, संचालन आशीष पंचोली एवं आभार संस्थान के प्रदीप अग्रवाल के द्वारा व्यक्त किया गया।




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