साउथ की बहुचर्चित फ़िल्म पुष्पा द राइज दर्शकों के दिलों दिमाग पर इस कदर चढ़ चुकी है कि, सारे भारत और भारत के बाहर भी सिर्फ पुष्पा ओर पुष्पाराज के चर्चे सुनाई ओर दिखाई दे रहें है। फ़िल्म के गाने नृत्य और संवाद सोश्यल मीडिया पर छोटे-बड़े, महिला-पुरुष, आम-खास सबके द्वारा सोश्यल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहें है। ऐसा कहने में कोई गुरेज नहीं कि फेसिंग न ड्रेसिंग पुष्पा इस वेरी फ़ास्ट रेसिंग। आखिर ऐसा क्या खास है, इस फ़िल्म में की समाज का हर वर्ग आकर्षित हो रहा है। फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रखी है। इसी तेजी से फ़िल्म चलती रही तो यह कमाई ओर प्रसिद्धि के पुराने कीर्तिमानों को तोड़कर नवीन कीर्तिमान जल्द ही हासिल कर लेगी। फ़िल्म पुष्पा द राइज के नायक अर्जुन अल्लू याने पुष्पाराज का किरदार इस फ़िल्म में दर्शकों के दिलों दिमाग मे उतर गया है। एक ऐसा किरदार जो हिंदी फिल्मों की तरह गोरा चिट्ठा ओर आकर्षक भी नहीं है, उसके कपड़े भी मेले कुचैले और अस्त-व्यस्त है। बालों का भी कोई ठिकाना नहीं है। बिखरें बाल और झितर-बितर दाढ़ी फिर यह किरदार इतना हिट कैसे हो गया। 17 दिसम्बर को पांच भाषाओं में रिलीज हुई यह फ़िल्म एक मजदूर से लाल चंदन की लकड़ी के बड़े सिंडिकेट बनने की कहानी है। अपने जीवन की शुरुआत एक मजदूर के रूप में करने वाले पुष्पाराज की अकड़ किसी महाराज से कम नहीं दिखती। उसकी यहीं अकड उसे दर्शकों का चेहता बना देती है। अपने मालिक के आने पर भी पैर पर पैर रखकर मस्त मलंग अंदाज में चाय की चुस्कियां लेते पुष्पाराज को कोई फर्क नहीं पड़ता। नाराज मिल मालिक जब मुनीम को पुष्पा की शिकायत करता है और मुनीम उसे ठीक बैठने के लिए कहता है। तब पुष्पा अपना हिसाब करने को कहता है। अपनी मेहनत के रुपयों से मुनीम को देता हुआ कहता है इज्जत मार्केट से खरीद कर मालिक के माथे पर चिपका देना। एक कांधे को उचकाकर चलने का निराला ओर कठिन अंदाज उस पर दाढ़ी पर उल्टा हाथ फेरते हुए पुलिस से मारपीट भी करता ओर पुलिस की मार खाता फ़िल्म का नायक फाइटिंग के साथ जब रिश्वत की पेशकश भी करता जाता है। यह दृश्य दर्शकों की तालियों का गवाह बन जाता है। जंगल में मजदूरों का नेता बनते हुए हुए पुलिस अधिकारी के कॉलर पकड़ने के दौरान कहे गए संवाद 'काहे रे सर तू यहां माल पकड़ने को आया है, या जो हाथ लगे वह पकड़ने को आया।' दर्शकों को प्रभावित करते है। फ़िल्म का नायक जंगल की बारीकियों को भलीभांति जान जाता है। लाल चंदन को जंगल के बाहर कैसे ले जाना और पुलिस की नजर से इसे कैसे बचाना पुष्पा जब इसका माहिर खिलाड़ी होने लगता है। तब लाल चंदन के बड़े-बड़े सौदागर ही उसकी जान के दुश्मन हो जाते है। पुष्पा एक तस्कर के घर पर मारपीट करते हुए जब यह डायलाग कहता है, 'पुष्पा नाम सुनके फ्लावर समझे क्या,फ्लावर नहीं फायर है मैं। तब तो जैसे आग ही लग जाती है। फ़िल्म का डायलॉग 'पुष्पा नाम है मेरा मैं झुकेगा नही' दर्शकों के मुंह से ऐसे निकल रहा है जैसे सभी पुष्पा हो गए हो। साउथ के गानों के अर्थ और भाव जानना तो कठिन है, किन्तु पुष्पा का लंगड़ाता हुआ नृत्य तेरी झलक अशरफी सिवल्ली ने तो जैसे सबको दीवाना ही बना दिया है। इस गाने पर नृत्य करते बड़े-बड़े क्रिकेटरों, ख्यातनाम हस्तियों ओर आमलोगों के वीडियो सोश्यल मीडिया की सुर्खियां बन रहें है। फ़िल्म में आयटम सांग भी ओर एक्शन भी,पुष्पा की लव स्टोरी एक अलग अंदाज में फिल्माई गई है। कहानी पर पुष्पा का किरदार भारी पड़ता दिखाई देता है। दरअसल मुम्बइया फिल्मों में अभिनय कम बचा है। नई कहानियों का भी अभाव है। फिल्मी कलाकार सियासी मसलों से खुद को अलग नहीं कर पा रहे है। मादक पदार्थो के सेवन में मुम्बईयाँ फ़िल्म सिटी का एक बड़ा और युवा वर्ग होश खो बैठा है। इसके विपरीत साउथ के कलाकार अपनी अदाकारी से दर्शकों का मन मोह रहें है। साउथ की फिल्में अब दर्शकों को अधिक पसंद आने लगी है। फ़िल्म पुष्पा में नायक अर्जुन अल्लू का अभिनय किरदार को आकाशीय ऊंचाई प्रदान करता है। फ़िल्म के दृश्यों के साथ चलता संगीत दृश्य को ओर भी रोमांचक और आकर्षक बना देता है। कुल मिलाकर फ़िल्म का नायक दर्शकों को अपने बीच का लगा यानी आम से भी आम। जब पुष्पा कहता है कि 'मैं यहां राज करने को आया मैं झुकेगा नही।' तब दर्शकों को उत्साह परवान चढ़ जाता है। वैसे फ़िल्म लाल चंदन की तस्करी, हिंसा और मारधाड़ से भरपूर है। किंतु मनोरंजन के रूप में एक नई स्टोरी ओर फ़िल्म के नायक की अदाकारी उन्हें दर्शकों का चेहता बनाती है। फ़िल्म का यह पहला भाग है। जो पुष्पा ओर एसपी भंवरसिंह की लड़ाई के मध्य समाप्त होता हुआ दिखाया है। एकदम बाहुबली फ़िल्म की तरह रहस्य पैदा करता हुआ की कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा ? याने एसपी शेखावत ओर पुष्पा के मध्य फ़िल्म का दूसरा भाग अभी और शेष है। फिलहाल पुष्पा देखकर अर्जुन अल्लू के अभिनय की तारीफ की जा सकती है। यह भी कहा जा सकता है कि ड्रेस ओर फेस नहीं अदाकारी आपके अभिनव को क्षेष्ठता प्रदान करती है। फिल्में जिनमे जीवंत अदाकारी ओर बेहतर संवाद होते है। आज भी दर्शकों को पसंद आती है।
लेखक:- नरेंद्र तिवारी
सेंधवा, जिला बड़वानी म.प्र.