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हमारी भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म मे "चार" अंक का महत्व
05, Sep 2024 2 months ago

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           हमारी भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म मे  चार"  इस अंक का बहुत महत्व है ये मात्र एक अंक नही ये इस सृष्टि के आधार स्तंभ है।

           वो है हमारे 4वेद, 4 सहीताएँ, 4वर्ण, 4आश्रम, 4पुरुशार्थ,, चतुर्मस्, और स्वस्तिक की 4 भुजाएँ और उसके 4 बिंदु। यदि मनुष्य इन सभी "चार" का महत्व और हमारे जीवन में इनकी उपयोगिता और स्थान को जान ले तो उसे जीवन मे कभी भी भटकना नही पड़ेगा। 

          हम सर्वप्रथम चातुर्मास"के महत्व और उसकी पवित्रता की बात करते है। मौसम भी है और माहौल भी वर्षा ऋतु चल रही है,और चौमासा भीजब वर्षा की बूँदें, अमृत रस बन इस तपती सूखती धरा पर गिरती है तो धीरे धीरे इस धरा की तपन और पीड़ा,दुःख,निराशा को सोख कर जब अपने अमृत जल से सींचती है,तब पुनः इस अतृप्त धरा को प्राण मिलते है,और उसे फिर से नव सृजन करने की प्रेरणा मिलती है। फिर से नव जीवन खिलने लगता है,सम्पूर्ण सृष्टि हरित वर्ण से रंगी नई फसलो से भर जाती है, फिर से जीवन मे नई ऊर्जा और गतिशीलता का संचार होने लगता है ।यही से शुरू होता है चौमासे का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व,और सिर्फ हिंदू धर्म मे ही नही वरन जैन धर्म मे भी चातुर्मास् का बहुत गहरा महत्व है, और ये हमे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण और जीवन मे सयम बरताने की प्रेरणा देते है। ये केवल 4 मास या 4 अंक नही है, यह भारतीय सनातन संस्कृति और जीवन के 4 आधार है ये जीवन को ने ऊर्जा और दिशा देने का अवसर है, यह ईश्वरीय शक्ति से एकाकार होने के साथ स्वयम को  खोजने का उत्तम समय होता है चातुर्मास ईश्वर की आराधना के साथ,ध्यान,दान, उपवास, तप, करने की प्रेरणा देने के साथ मानव  द्वारा तन, मन, कर्म से शरीर  और आत्मा को सांयमित् करने अवसर प्रदान करता है,। ,अतः जीवन मे स्वयम को जानने और खर्च हुई ऊर्जा को फिर से प्राप्त करने और भाग दौड़ भरे जीवन मे स्थिरता लाने का सबसे अनुकूल समय होता है।, प्रकृति अपने चरम पर होती है, सभी और जल जमाव, नदी नाले उफां पर होते है, अनेक तरह के जीव जंतु पनपने लगते है, इसलिए कोई भी शुभ  व मांगलिक कार्य नही होते है । लेकिन यह समयअनेक पर्वो को भी लेकर आता है, और मनुष्य जीवन मे सामाजिक, धार्मिक, सरोकार को बढ़ावा देता है,  राष्ट्रिय पर्व राखी,तीज,,गणपति आगमन और अनेक छोटे बड़े त्योहारो से  भरा यह चातुर्मास का समय इस जगत मे प्रत्येक प्राणी को आस्था के साथ साथ नव ऊर्जा से भी भर देता है।

          अगले क्रम मे हमारे 4 वेद आते है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, साम, और अथर्ववेद, ये चारों वेद मनुष्य को धर्म यज्ञ के साथ कर्म यज्ञ मे मंत्रो के महत्व और जीवन मे उनके प्रभाव से परिचय करवाते हुए हमे पंचतत्वो का महत्व समझाते है, वो हमे सिखाते है कि ये जीवन एक यज्ञ है, और हमारे द्वारा किये गए कर्म उसमे दी जाने वाली आहुति रूपी हवन सामग्री है।  जिस तरह हम उत्तम सामग्री का चयन करते है, ताकि यज्ञ सफल हो और हमारे इष्ट प्रसन्न हो , उसी तरह वेद हमे समझाते है की जीवन मे कर्म को ही महत्व देना चाहिए, तक जीवन की यात्रा रूपी हवन सफल हो , और हम हमारे अंतिम लक्ष्य को पा सके।

          अब आते है "4सहीताएँ",,, जिनका अर्थ है, 'एक साथ 'या जुड़ा हुआ होना, अथार्थ मंत्र व पाठों का व्यवस्थित सयोजन या संगृह, जिया उदेश्य एक साथ, एक होकर मंत्र पाठ करना और अपने आराध्यो को प्रसन्न करना चातुर्मास इसी सिद्धांत का पालन करता है, इस समय सम्पूर्ण सृष्टि एक साथ होते मंत्रोउचार से गुंजायमान होती है, जहा देखो वहाँ धार्मिक कार्य, कथाएँ, भजन, पाठ, घंटानाद सुनाई पड़ते है, इनका उदेश्य सृष्टि मे एकता, अखंडता और पवित्र तथा मानव मात्र का कल्याण ही होता है। 

          चातुर्मास हमे सिखलाते है की मनुष्य किसी भी वर्ण मे जन्मा हो उसका जीवन एक ब्राह्मान की तरह त्यागी और सयमि हो, वह विचारों से क्षत्रिय हो  जो गलत रुदिवादी सोच के विरुद्ध लड़े,मनुष्य को जीवन यापन के लिए वैश्य जैसा हो जो अपने कार्य और व्यापार से देश को उन्नति की और ले जाए और परिवार का पालन करे, सबसे महत्वपूर्ण 'शुद्र ' मनुष्य को कर्म से शुद्र के जैसा होना चाहिए जो समाज मे फैली हर प्रकार की गन्दगी को साफ कर समाज को साफ सुथरा बनाता है और जिस तरह 4 आश्रम मनुष्य जीवन मे नियम अनुशासन का दर्शन प्रदान करते हुए कृतव्यो का महत्व बताते है और ये सिखाते है की जीवन भागने का नही बल्कि कर्म का स्थान है ।  हम बात करते है सनातन की पहचान, शुभता का प्रतिक हमारे शुभ चिन्ह "स्वस्तिक" की जिसकी चार भुजाएँ होती है और प्रत्येक का  सम्बंध  चातुर्मास से है इसकी भुजाएँ अस्थिर जीवन मे स्थिरता और गति प्रदान कर उनमे संतुलन बनाती हैं , उसी तरह चातुर्मस् भी स्वस्तिक की चार भुजाओं के समान है, जिसका पालन करने से मनुष्य की अस्थिर जीवन मे स्थिरता और अनुकूलता आने लगती हैऔर हम पुनः अपने सही कर्मो की ओर आगे बड़ने लगते, एक नई ऊर्जा के साथ।  अंत मे हम अंतिम चार की बात करते है, क्योकि चोमासे का सम्पूर्ण सर इन्ही मे समाहित है, और वो है हमारे 4 पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, मनुष्य  अपने जीवन मे धर्म का आचरण करता हुआ कर्म करे और फिर अर्थ की प्राप्ति कर उस अर्थ से गृहस्थ जीवन के कृतव्यो का पालन करते हुए सुख और आनन्द को भोग कर अंत मे मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।  चातुर्मास मनुष्य  को कर्म का महत्व समझाते हुए जीवन मे संतुलन और गतिशीलता प्रदान करते हुए मूल लक्ष्य की और ले जाने का सबसे सहज और सरल माध्यम है।


     ममता भट्ट थांदला।


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