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जगतजननी भगवती माँ पार्वती जिव्हा (जुबान) स्वरूप विराजमान जयंती माता
05, Oct 2022 2 years ago

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         जिले के उत्तरी छोर पर पुनासा उपवन मण्डल के अंतर्गत चांदगढ़ वनपरिक्षेत्र एवं पुनासा तहसील के अंतिम गांव भेटखेड़ा के समीप मध्यप्रदेश की जीवनरेखा माँ नर्मदा के उत्तर तट पर विंध्याचल पर्वत की सुरम्य पहाड़ीयो की लंबी श्रृंखला व घने-सघन वन के बीच स्वयम्भू जिव्हा के रूप में अवस्थित माताजी का मंदिर मातारानी के भक्तों व प्रकृति प्रेमीयो के बीच विशेष आस्था का स्थान रखता है। शक्ति उपासना धाम में वर्ष की दो गुप्त व दो सदृश्य सहित चारो नवरात्री भगवती अम्बा के भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्री के इतर वर्षभर माता के भक्त एवं प्रकृति व वन्यजीवन को करीब से देखने व अनुभव करने वाले पर्यटक बड़ी संख्या में आते रहते है।

जयंती माताजी का इतिहास 

        जयंती माताजी मन्दिर के समीप कुटिया में रहकर माताजी की साधना करनेवाले संत चेतन्य गीरी जो लगभग एक डेढ़ वर्ष पूर्व ब्रम्हलीन हो गए। वह माताजी की मूर्ति व मन्दिर के बारे में बताते थे कि, भगवती पार्वती यहां जिव्हा के रूप में सेकडो हजारो वर्ष से स्वयम्भू विराजित है। माताजी की जिव्हा स्वरूप मूर्ति किसी के द्वारा लाई गई नही है।

        घने जंगल के बीच होने व नर्मदा परिक्रमा वालो के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियो का आवागमन नही होने के कारण वर्षो पूर्व मूर्ति खुले आसमान के नीचे अवस्थित रही। कालांतर में किसी भक्त ने छोटी सी कुटिया बना दी थी एवं लगभग 40-42 वर्ष पूर्व नागा साधू सत्या गीरी नर्मदाखण्ड में भ्रमण करते हुए यहां पहुचे और उन्होने छोटा सा मन्दिर बनाया। संत सत्या गीरी के सद प्रयासो से पामाखेड़ी व आसपास गांव के लोगो को एकत्रित कर जयंती माताजी के मन्दिर को भव्य रूप देने की नींव रखी और इस तरह वर्ष दो हजार में भव्य मन्दिर निर्माण कार्य का शुभारंभ हुआ। मन्दिर निर्मित होने पर व्यवस्था का अच्छी तरह से संचालन एवं यहां आनेवाले भक्तो की सुविधा हेतु मन्दिर संचालन समिति का गठन वर्ष 2004 में किया गया, जिसके अध्यक्ष बने पामाखेड़ी के वासुदेव सोलंकी। जयंती माता मन्दिर धाम में यूं तो वर्षभर भक्त एवं पर्यटको का तांता लगा रहता है परन्तु चैत्र माह की नवरात्री के मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है।

माताजी मन्दिर के साथ अन्य देवस्थान एवं प्राकृतिक सुंदरता 

        जिव्हा स्वरूप विराजित माताजी मन्दिर से लगभग 7-8 सौ मीटर की दूरी पर छोटी पहाड़ी के नीचे प्रकृति के आंचल में खाड़ी व कनेरी नदी का संगम स्थल है। इस संगम स्थल, दोनो नदिया जब एक साथ अपनी यात्रा पर आगे बढ़ती है तब थोड़ी सी दूरी तय करने पर काली चट्टानो की प्राकृतिक गुफा के ऊपर से नीचे कुदरती कुंड मे झरने के रूप में गीरती है और इसी प्राकृतिक गुफा में माताजी के गण बाबा भैरवनाथ विराजित है। बाबा भैरवनाथ के दर्शन बिना स्नान के सम्भव ही नही क्योकि भैरवनाथ गुफा-मन्दिर के प्रवेश द्वार के ठीक उपर से झरने का पानी गीरता है ओर श्रद्धालु का स्नान स्वतः हो जाता है। बाबा भेरुजी के गुफा-मन्दिर पहुचने के लिए श्रद्धालु व पर्यटको को जयंती माता मन्दिर से एक ढलान वाली पहाड़ी पगडंडी रास्ते से पहुचना पड़ता है। ढलान समाप्त होने के बाद फ़िसलन भरे चट्टानी रास्ते को सावधानी से पार करने के बाद झरने व गुफा के समकक्ष पहुचने पर कुंड में गीरते झरने के पानी मे नहाने व भैरव बाबा के दर्शन हेतु लगभग 20 फीट की सीढ़ी से नीचे उतरना होगा। यहां झरने गीरता पानी व आसपास विंध्याचल की घने वन से आच्छादित उंची पहाड़ियो का बहुत ही सुंदर प्राकृतिक दृश्य दिखाई देता है।

कालांतर में बड़ी सुविधाएं

        संचालन सामीति के वर्तमान अध्यक्ष ललीत सोलंकी व समिति सचिव शिव सोलंकी बताते है कि, 2004 में सामीति गठन के बाद सामीति के सदस्यो ने जनसहयोग एवं जनप्रतिनिधियों के सहयोग से मन्दिर परिसर में धर्मशाला, भोजनशाला व यज्ञशाला का निर्माण, विद्युत व्यवस्था हेतु सौरऊर्जा से चलने वाले एलईडी लेम्प लगाए गए। पेयजल की समुचित व्यवस्था की गई। आगे सामीति के दोनो पदाधिकारी बताते है कि, जयंती माताजी मन्दिर उत्तर तट पर नर्मदा परिक्रमा मार्ग पर स्थित होने से परिक्रमा वासीयो के लिये रात्री विश्राम एवं भोजन व्यवस्था सतत वर्षभर चलती है। दो-चार की संख्या वाले श्रद्धालु परिवार का भोजन उपलब्ध करवाया जाता है। वही अधिक संख्या में सामूहिक रूप से आए भक्त अगर भोजन सामग्री साथ लेकर आने पर उन्हे भोजन बनाने के बर्तन यहां उपलब्ध है। यहां यज्ञशाला को वास्तु व वेदोक्त अनुसार प्रधान यज्ञ कुंड एवं मोक्ष, सुख-शांति व संतान कामना सहित विभिन्न मनोकामना पूर्ण करनेवाले अष्टकमल व अर्द्धचंद्र सहित पांच यज्ञ कुंड स्थापित है।

प्राकृतिक संसाधनो व वन्यजीव 

        नर्मदा के आंचल एवं विंध्याचल के हरेभरे घने जंगल के बीच आध्यात्मिक व प्रकृति को समीप से देखने की यात्रा का अपना अलग ही रोमांच, प्रकृति का सानिध्य मन को शांति प्रदान करता है।

जयंती माता मन्दिर पहुचने का मार्ग 

        शिवपुत्री मां नर्मदा के उत्तर तट एवं विंध्याचल पर्वत की पहाड़ियो में सघन वनाच्छादित वनांचल में विराजित जयंती माता के धाम तक पहुचने के लिये नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर, नजदीकी रेल्वे स्टेशन खंडवा है इसके अतिरिक्त दो सडक मार्ग से यहां पहुंच सकते है। खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, इंदौर, गुजरात एवं महाराष्ट्र की ओर से आनेवाले पर्यटको के लिए पुनासा-भोपाल राज्यमार्ग से पुनासा व नर्मदानगर होकर नर्मदानगर से 17 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बांई ओर वनचौकी स्थित है। वही पर जयंती माताजी मन्दिर जाने का संकेत देनेवाला साईन बोर्ड लगा है। यहां से घने जंगलो के बीच कच्चे वन मार्ग से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी तय कर मन्दिर पहुचा जासकता है तथा सतवास, कन्नौद, देवास, इंदौर, भोपाल, राजस्थान एवं उत्तर भारत की ओर से आनेवाले श्रद्वालुओ को भोपाल-पुनासा मार्ग पर आने वाले देवास जिले के सतवास से पुनासा की ओर आने पर ग्राम पामाखेड़ी में वनविभाग के चेकपोस्ट से आगे लगभग 5-7 किलोमीटर की दूरी तय करने पर दाई ओर वही वनचौकी आती है जो पुनासा के रास्ते से आती है। इसी तरह देवास जिले की बागली, पुंजापुरा व उदयनगर से पिपरी लखनपुर व बावड़ीखेडा होकर भी जयंती माता मन्दिर पहुचा जा सकता है। लेकिन इस मार्ग पर मन्दिर से मात्र आधा किलोमीटर की दूरी पर बहने वाली खाड़ी नदी पर पूल नही होने से गर्मी के मौसम में बनाए जाने वाले कच्चे पूल से सिर्फ दोपहिया वाहनो से पहुच सकते है।

         मन्दिर समीति अध्यक्ष ललीत सोलंकी व सचिव शिव सोलंकी बताते है कि, उनके व क्षेत्रीय जनता द्वारा देवास एवं खंडवा जिले के जनप्रतिनिधियो के सामने पुरजोर मांग रखी है कि देवास जिले व खंडवा जिले को खाड़ी नदी पर पूल निर्माण कर जोड़ने से माताजी मन्दिर आनेवाले श्रद्धालुओं व पर्यटको को सुविधा होगी।

आनेवाले श्रद्धालुओ एवं पर्यटको को यह सावधानी रखना चाहिए

        जयंती माता धाम आनेवाले श्रद्धालुओ को छोटे टायर वाली मोटरकार से नही जाना चाहिए, क्योकि वन चौकी के बाद 17 किलोमीटर की सड़क वनविभाग के अधीन होकर कच्चा वनमार्ग है। जिस मे छोटे टायर की मोटरकार की बॉडी व इंजिन में पत्थर लगने से वाहन खराब होने का अंदेशा बना रहता है। इसलिये यहां जाने के लिये बड़े टायर वाली मोटरकार बोलेरो, स्कॉर्पियो या अन्य कोई बड़े टायर वाली मोटरकार जिसकी बॉडी व इंजिन छोटी मोटरकार की अपेक्षा जमीन से उपर हो उसीका उपयोग करे। जंगल के रास्ते मे प्रवेश करने के पूर्व सतवास या पुनासा में अपने वाहनो के टायर्स में हवा का प्रेशर तथा रेडियेटर के पानी की जांच अवश्य अवश्य करवाईये। जंगल के रास्ते मे आपको बाघ, तेंदुए, भालू, नीलगाय तथा चीतल के अलावा अन्य वन्यप्राणी दिखाई दे सकते है।

लेखक :- नरेंद्र पगारे

पुनासा जिला खंडवा



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