मेले मेल मिलाप की संस्कृति के प्रतीक तो होते ही हैं जो क्षेत्र विशेष की सांस्कृतिक पहचान तो कराते ही हैं साथ ही साथ ही जनमानस की सम सामयिक धड़कन से भी रूबरू होने के अवसर प्रदान करते हैं। ये मेले ही हैं जो युगों युगों से हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं बहुविध चेतना के सशक्त संवाहक भी बने हुए हैं।
इसी खासियत को लिए इंदौर में लाल बाग परिसर 11 से 19 फरवरी तक जनजातीय संस्कृति, सभ्यता की भव्यता, खानपान के प्रति सजगता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की मिसाल क़ायम कर रहा है। यहाँ आम इंसान जनजातीय जीवनशैली से रूबरू हो रहा है और यह जान रहा कि जीवन के रंगों, खुशियों और स्वस्थ तन मन के साथ जनजातीय जीवन आधुनिक जीवनशैली से भिन्नता के साथ वाकई में भव्यता लिए हुए भी है। वैसे तो लाल बाग परिसर में अनेक आयोजन होते हैं और नागरिक यहाँ विभिन्न प्रकार के खान पान से लेकर मनोरंजन व सांस्कृतिक आयोजन के साक्षी बनते हैं लेकिन इस बार यहाँ एक अनूठा मेला श्री नारायण मानव उत्थान एवं भारतीय विपणन विकास केंद्र (सी बी एम डी ), संस्कृति विभाग द्वारा "जनजातीय फूड फेस्टिवल तथा जड़ी बूटी मेला" लगाया गया है जिसमें शामिल होने वाले अपने को इंदौर में नहीं बल्कि जनजातीय परिवेश में मौजूद पाकर गौरव महसूस कर रहे हैं।
यहां खान पान के शौकीनों के लिए शरीर के लिए वास्तविक रूप से गुणकारी, पौष्टिक व जायकेदार व्यंजन के साथ ही जनजातीय जीवनशैली, पहनावा, ग्रामीण परिवेश, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, स्वस्थ जीवन के लिए खान पान व जड़ी बूटी का महत्व भी जान रहे हैं।
नवरात्रि सा अनुभव
आदिशक्ति माँ जगदम्बा के नौ दिन नवरात्रि की ही तरह जनजातीय समुदाय द्वारा प्रकृति को पूजने की उपासना को प्रत्यक्ष देख व अनुभव कर रहे हैं । रोजाना सुबह 11 बजे से रात्रि 10 बजे तक जनजातीय व्यंजनों के साथ, जनजातीय समाज द्वारा उत्पादित कलात्मक सामग्री और सांस्कृतिक वैभव से परिचित भी हो रहे हैं।
जनजातीय मेला संयोजक पुष्पेंद्र चौहान और बलराम वर्मा ने बताते हैं कि ग्रामीण जनजातीय परिवेश ही इस मेले का मुख्य प्रयोजन है। मेले में फूड स्टॉल के क्षेत्र को बालिका साक्षी वहीडा ने मिट्टी और गोबर से लीपकर जनजातीय परिवेश के अनुरूप झोपड़ियां निर्मित की हैं जिसमें आने वाले दर्शक यहां बैठकर जनजातीय व्यंजनों जैसे – टांडा के दाल – पानिए, ज्वार की रोटी, मक्का की रोटी, मटूरिया, देशी व पत्थर पर पिसी चटनी आदि का आनंद ले रहे हैं।
दुर्लभ जड़ी–बूटियों के स्टॉल
सुदूर अंचलों में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी – बूटियों के स्टॉल मेले में आकर्षण का केंद्र हैं । यहां वैद्य मंदबुद्धि बच्चों, कैंसर रोग, जटिल वात रोग और बाल रोगों पर डाक्टरों द्वारा परामर्श देने के साथ उपचार व परामर्श प्रदान कर रहे हैं।
जन नायकों से भी रूबरू होंगे
ना देखा ना सुना हो तो यहाँ पाएंगे आप ऐसे जन नायकों को नाम व तस्वीरों के साथ उनके जीवन की उपलब्धियों के बारे में कि कैसे उन्होंने मालवा व निमाड़ में अंग्रेजों को कैसे मात दी। यह जानकारी बेहद ही सुंदर रूप में मानव उथान समिति कि रोशनी वर्मा व मेला संयोजक पुष्पेंद्र चौहान ने जुटाई है।
रोजाना सांस्कृतिक आयोजन भी
मेले में प्रतिदिन शाम को संस्कृति विभाग मप्र के सौजन्य से जनजातीय संस्कृति पर केंद्रित सांस्कृतिक कार्यक्रम भी कलाकार पेश कर रहे हैं।
मेले में जनजातीय आभूषण बनाने की विधि भी सिखाई जा रही है। इसके अलावा मेले में शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल के तहत अखिल शर्मा और मलय वर्मा की शॉर्ट फिल्में भी प्रदर्शित की रही हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के व्याख्यान भी
मेले में प्रतिदिन युवा स्वास्थ्य, ह्रदय रोग, स्त्री रोग, शिशु रोग और कुपोषण को लेकर विशेषज्ञों के व्याख्या का लाभ भी जनता ले रही हैं।
लेखक :- निशिकांत मंडलोई
इंदौर।