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अतिथि शिक्षक है, लेकिन रोज बच्चों को पहाड़ से लेकर पहुंचती है अपने स्कूल
माही की गूंज, बड़वानी।
आज के समय में शासकीय शिक्षको को लेकर समाज में बड़ी नकारात्मक खबर चलती है। ऐसा नहीं कि सभी शिक्षक ऐसे हो, पर गेहूॅ के साथ धुन तो पिसता ही है। ऐसे में यदि कोई पहाड़ों के बीच से उतर कर विद्यार्थियों के साथ पैदल चलकर 3 किलोमीटर दूर अपने स्कूल पहुंचे और पढ़ाई करवाए, कक्षा हर समय भरी हो, तो उसे आप क्या कहेंगे। यदि यह महिला शिक्षिका हो उस पर अतिथि शिक्षिका हो, तो फिर आपका अतिथि शिक्षको के प्रति नकारात्मक सोच अवश्य बदल जाएगी।
यदि आप सेमलेट जा रहे है और साढ़े 10 बजे के लगभग आपकी गाड़ी गोलगाॅव क्रास कर रही है तो मार्ग पर एक अतिथि शिक्षिका 6-7 बच्चों के पीछे-पीछे चलते हुए दिख जाएगी। यह है श्रीमती सीमा सस्ते जो पहाड़ के उपर रहती है और अपने फल्या के 6-7 बच्चों को लेकर 10 बजे पहाड़ से उतरना प्रारंभ कर, लगभग 3 किलोमीटर सड़क पर चलते हुए अपने स्कूल प्राथमिक विद्यालय पहुंचती है। और शाम को पुनः इसी प्रकार बच्चों को लेकर पहाड़ चढ़ती है।
शिक्षिका की इस नियमितता और कर्तव्य परायणता के कारण उनकी कक्षा में हमेशा विद्यार्थियो की संख्या शत-प्रतिशत के लगभग होती है। कक्षा की हालत उतनी अच्छी तो नही (शहरों के समान साधन सम्पन्न) किन्तु विद्यार्थियों की हालत (साफ-सफाई और शैक्षणिक योग्यता) शहरों के स्कूलों से बेहतर नहीं तो कम भी नही है।
श्रीमती सीमा सस्ते की इस कर्तव्य निष्ठा से अभिभूत कलेक्टर शिवराजसिंह वर्मा ने 26 जनवरी के राष्ट्रीय पर्व पर इस शिक्षिका को मुख्य अतिथि के हाथों सम्मानित कराने की घोषणा अभी से कर दी है।