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अपर कलेक्टर कोर्ट के बाद जिला पंचायत ने भी कहा सभी दुकानो में पाई गई वित्तीय अनियमित्ता
मामला: ग्राम पंचायत सेगांव द्वारा बनाई जा रही दुकानों का
माही की गूंज, खरगोन
कई दुकानें, कई जमीनें, कई नामांतरण, कई फर्जी रसीदे, कई तरह के फर्जी पाइप लाइनों के सर्विस के बिल, कई तरह के एलईडी वायर बल्ब के फर्जी बिल, कई तरह के माइक एलाउंस के बिल, कई तरह के पानी और मिठाई के बिल, कई तरह के विदाई समारोह के फर्जी बिल, हजारो रुपए के मोटर सर्विस के बिल कोई ओर केबल का बिल तो चोरी की रिपोर्ट भर गांव के बीच कोई रोकने वाला नही कोई टोकने वाला नही सभी भीगे हुए। हा आम जनता के कामो में नियम कायदे आ जाते है। 9 जुलाई को पत्र क्रमांक 3713 द्वारा जिला पंचायत सीईओ गौरव बेनल खरगोन द्वारा एक वर्ष से चले आ रहे सेगांव में बनी कई दुकानों में चल रही शिकायतों के बाद एक बड़ा आदेश देकर, कई ग्राम पंचायत सचिवों को कटघरे में खड़ा कर आम जनता के पक्ष में फैसला दिया है। सरपंच (प्रधान) को हर दुकानों में वित्तीय अनियमित्ता मामले पर पद से पृथक करने का निर्णय जिला पंचायत कोर्ट खरगोन में दर्ज किया है।
अपर कलेक्टर कोर्ट द्वारा अवैध करने के बाद भी काम क्यो चलता रहा?
अपर कलेक्टर कोर्ट खरगोन द्वारा बाजार पट्टी के खसरा क्रमांक 530/1 व 531/2 को बाजार हाट की सुरक्षित जमीन पर बनाई दुकानों पर ग्राम पंचायत सेगांव के इस कृत्य को अवैधानिक मानकर अतिक्रमण मानकर तहसीलदार सेगांव को प्रतिवेदन सोपा गया था। उसके बाद भी धड़ल्ले से काम क्यों चलता रहा? और लाखों की लेन-देन हुई। आज कुछ बड़ी कार्रवाई होती है तो आठ दुकानदारो द्वारा लाखो रु चेक़ से जमा किए है उसका जिम्मेदार कौन होगा?
प्रशासन संदेह के घेरे में
इतना बड़ा भ्रष्टाचार प्रशासन के सामने होता रहा ओर खास बात यह है कि, जनपद पंचायत के सामने बने सुलभ शौचालय में अवैध तरीके से दुकाने बनती रही और जनपद के अधिकारियो ने आखो पर पट्टी बांधे रखी। दुकानों जो नीलाम हुई थी वह बनी उसमे भी आरक्षण के नियमो का पालन नही हुआ, तो फिर जनपद पंचायत के इंजीनियर ने प्रशासनिक स्वीकृति ओर तकनीकी स्वीक्रति क्यो दी? इसलिए इन पर कार्रवाई क्यो नही हुई? जनपद पंचायत के चार लोगो का संयुक्त जांच दल द्वारा भी दुकानों के मामले में ग्राम पंचायत सेगांव पर कार्रवाई प्रस्तावित की थी। जनपद सीईओ महेश पाटीदार द्वारा उस जाँच प्रतिवेदन को तत्काल जिले में क्यो नही भेजा गया? यह बात समझ से परे है।
हीरालाल पाटिल के जाँच प्रतिवेदन में क्लीन चिट क्यो
यह बात समझ से परे है कि, हीरालाल पाटिल की जांच में ग्राम पंचायत सेगांव को हर मामले में क्लीन चिट मिली ओर ग्राम पंचायत में हर काम की उन्होने जमकर तारीफ की। जबकि अपर कलेक्टर कोर्ट द्वारा तहसीलदार सेगांव की जाँच रिपोर्ट के आधार पर बाजार पट्टी की सभी दुकानों को अवैध माना गया ओर अपर कलेक्टर कोर्ट ने जनपद पंचायत सीईओ को भी नोटीस जारी कर अपना प्रतिवेदन मांगा था। लेकिन जनपद पंचायत सीईओ द्वारा अपर कलेक्टर कोर्ट को कोई रिपोर्ट नही दी गई। जबकि जनपद पंचायत के चार लोगो के संयुक्त जाँच दल ने जाँच पहले ही कर ली थी और ग्राम पंचायत सेगांव पर दुकानों के मामले में कार्रवाई प्रस्तावित की थी। वह जांच प्रतिवेदन जनपद पंचायत सीईओ द्वारा अपर कलेक्टर कोर्ट खरगोन में क्यो नही दी? यह सोचनीय ओर ग़म्भीर प्रश्न है जिसे जिले के अधिकारियो द्वारा संज्ञान में लिए जाना चाहिए।
ग्राम पंचायतो की शिकायतों में केवल जांच जांच ही जांच
देखने में यह आया है, अधिकतर मामलों में ग्राम पंचायतों की शिकायतों के मामले में जिले के अधिकारी व जनपद पंचायत के अधिकारी जांच के नाम से कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। वह निर्भर करता है कि, शिकायतकर्ता कितना सक्षम व एक्टिव है तो ही कार्रवाई आगे बढ़ती है। इसी मामले में यह देखने को मिला है कि, धीरज मिश्रा, कमल चौहान व उनकी टीम द्वारा सतत व एक्टिव होकर हर बार जनपद पंचायत, जिला पंचायत, कलेक्टर कार्यालय, कमिश्नर कार्यालय भोपाल के कई उच्च अधिकारियों को शिकायत रेगुलर प्रेशित करते रहे ओर सूचना का अधिकार के तहत आवेदन लगातार कार्रवाई से सम्बन्धित जानकारी लेते रहे व कई दुकानों के मामले में सीएम हेल्पलाइन दर्ज की उसके बाद ही जिले से कार्रवाई हुई।
यह यह दुकानो में वित्तीय अयनियमितता पाई गई
ग्राम पंचायत सेगांव द्वारा दी गई दुकानों में बारह दुकाने कन्या छात्रावास की दुकानें, बस स्टैंड के सुलभ शौचालय की सात दुकाने ओर गोलवाड़ी रोड पानी की टँकी के पास की 25 दुकानों पर तत्कालीन सचिवों के द्वारा की गई वित्तीय अनियमियत्ता के लिए दोषी माना गया है और सरपंच(प्रधान) को भी दोषी माना गया है।
दुकाने बनते रही किसी ने नही सुनी
शिकायतकर्ता धीरज मिश्रा द्वारा बताया गया कि, मेरे द्वारा जनपद पंचायत, जिला पंचायत, जिला कलेक्टर, कमिश्नर कार्यालय ओर भोपाल के कई उच्च अधिकारियो को दुकानों का काम रोकने के लिए शिकायती आवेदन दिए लेकिन इतने बड़े भृष्टाचार को किसी ने महीनों तक नही रोका गया। मामला जब अन्य गांव के कमल चौहान और चार लोगों द्वारा अपर कलेक्टर कोर्ट का सहारा लिया गया और अपर कलेक्टर कोर्ट द्वारा ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्य को अवैधानिक घोषित किया गया, जब जिला प्रशासन अलर्ट हुआ।