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संगीत के जंगल को महकती बगिया बनाने वाले थे वनराज भाटिया
-: स्मृति शेष :-
संगीतकार, वनराज भाटिया
जन्म :- 31 मई 1927
निधन :- 7 मई 2021
आज का संगीत जगत भले ही आज के संगीत कलाकारों व उसके मुरीदों के लिए एक बगिया मालूम पड़ती हो, लेकिन इसे इस स्वरूप में लाने का श्रेय अगर वनराज भाटिया के खाते में जमा किया जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
31 मई 1927 में जन्मे वनराज भाटिया ने संगीत की शिक्षा लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ म्यूजिक से ली थी। साल 1959 में वह भारत लौट आए और फिर उन्होंने यहीं पर काम करना शुरू कर दिया। वनराज ने सबसे पहले विज्ञापनों के जिंगल बनाने शुरू किए। इसके बाद उन्होंने 1972 में श्याम बेनेगल की फिल्म 'अंकुर' का बैकग्राउंड संगीत दिया। इसके बाद उन्होंने श्याम बेनेगल के साथ भूमिका, सरदारी बेगम और हरी-भरी जैसी 16 फिल्मों में काम किया।
वनराज को वेस्टर्न के साथ ही हिंदुस्तानी संगीत की भी गहरी समझ थी। उन्होंने लगभग 7 हजार विज्ञापनों के जिंगल को म्यूजिक दिया था। उन्होंने जाने भी दो यारो, पेस्टॉनजी, तरंग, पर्सी, द्रोह काल जैसी फिल्मों का म्यूजिक देने के अलावा अजूबा, बेटा, दामिनी, घातक, परदेस, चमेली जैसी फिल्मों का बैकग्राउंड म्यूजिक भी दिया था। इसके अलावा वनराज ने खानदान, तमस, वागले की दुनिया, नकाब, लाइफलाइन, भारत- एक खोज और बनेगी अपनी बात जैसे टीवी सीरियलों में भी संगीत दिया।
वनराज भाटिया को गोविंद निहलानी के 'तमस' के लिए नेशनल अवॉर्ड दिया गया था। इसके अलावा उन्हें साल 1989 में संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड और 2012 में पद्मश्री से भी नवाजा गया था।
वनराज भाटिया का शुक्रवार को मुंबई में 93 साल की उम्र में निधन हो गया। वे अवस्था के मान से पिछले काफी समय से बीमार थे।
लेखक
निशिकांत मंडलोई, इंदौर