बालों के मामले महंगी पड़ रही है फैशन परस्ती
दुनिया भर में भारतीय संस्कृति यूँ ही नहीं ताकतवर मानी जाती। लेकिन यह विडंबना ही कही जाएगी कि, अंधानुकरण से बढ़ती फैशन परस्ती ने हमारी बालों की संस्कृति को बिसरा दिया जिसके परिणामस्वरूप हम खामियाजा भी भुगत तो रहे हैं लेकिन उस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि, हमारी बाल संस्कृति को संवारने का जिम्मा भारतीय महिलाओं के ऊपर है उन्हीं के द्वारा इसकी अवहेलना की जा रही है।
हाल ही में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते हमारी आध्यात्मिक संस्कृति के महान ग्रंथ रामायण और महाभारत सीरियलों का पुनः प्रसारण टीवी पर किया गया। पुरानी पीढ़ी ने दोबारा देखा और नई पीढ़ी ने पहली बार देखा, सभी ने सराहा। वो तो गनीमत समझो अगर कोरोना संक्रमण नहीं होता तो शायद इनका पुनः प्रसारण सम्भव नहीं था।
जिन्होंने भी देखा, खासकर महिलाओं ने अगर ध्यान दिया हो तो रामायण व महाभारत दोनो ही में महिलाओं के बालों का हमारी संस्कृति से गहरा संबंध दर्शाया गया है। अगर ये दोनों सीरियल देखकर भी नहीं समझ पाए हैं तो इस आलेख को पढ़कर समझना चाहिए कि आजकल माताएं-बहनें फैशन के वशीभूत व अंधानुकरण के कारण कैसा अनर्थ कर रही हैं।
स्त्री के खुले बाल , शोक और अशुद्धि की निशानी
रामायण में बताया गया है, जब देवी सीता का श्रीराम से विवाह होने वाला था, उस समय उनकी माता सुनयना ने उनके बाल बांधते हुए उनसे कहा था, विवाह उपरांत सदा अपने केश बांध कर रखना। बंधे हुए लंबे बाल आभूषण सिंगार होने के साथ-साथ संस्कार व मर्यादा में रहना सिखाते हैं। ये सौभाग्य की निशानी है , एकांत में केवल अपने पति के लिए इन्हें खोलना।
लाखों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मुनियों ने शोध कर यह अनुभव किया कि, सिर के काले बाल को पिरामिड नुमा बनाकर सिर के ऊपरी ओर या शिखा के ऊपर रखने से वह सूर्य से निकली किरणों को अवशोषित करके शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। जिससे चेहरे की आभा चमकदार , शरीर सुडौल व बलवान होता है।यही कारण है कि, गुरुनानक देव व अन्य सिख गुरुओं ने बाल रक्षा के असाधारण महत्व को समझकर धर्म का एक अंग ही बना लिया। इसीलिए तो वे कभी भी बाल को खोलकर नहीं रखते।
ऋषि मुनियों व साध्वियों ने हमेशा बाल को बांध कर ही रखा। भारतीय आचार्यो ने बाल रक्षा का प्रयोग, साधना काल में ही किया इसलिए आज भी किसी लंबे अनुष्ठान , नवरात्रि पर्व , श्रावण मास तथा श्राद्ध पर्व आदि में नियमपूर्वक बाल रक्षा कर शक्ति अर्जन किया जाता है।
बिखरे बाल अमंगलकारी
महिलाओं के लिए केश संवारना अत्यंत आवश्यक है, उलझे एवं बिखरे हुए बाल अमंगलकारी कहे गए हैं, कैकेई का कोपभवन में बिखरे बालों में रुदन करना और अयोध्या का अमंगल होना। पति से वियुक्त तथा शोक में डुबी हुई स्त्री ही बाल खुले रखती है। जैसे अशोक वाटिका में सीता।
रजस्वला स्त्री , खुले बाल रखती है । जैसे -चीर हरण से पूर्व द्रोपदी , उस वक्त द्रोपदी रजस्वला थी ,जब दुःशासन खींचकर लाया, तब द्रोपदी ने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपने बाल तब बाँधुंगी जब दुःशासन के रक्त से धोऊँगी ।
जब रावण, देवी सीता का हरण करता है तो उन्हें केशों से पकड़ कर अपने पुष्पक विमान में ले जाता है। अत: उसका और उसके वंश का नाश हो गया।
महाभारत युद्ध से पूर्व कौरवों ने द्रौपदी के बालों पर हाथ डाला था, उनका कोई भी अंश जीवित न रहा।
कंस ने देवकी की आठवीं संतान को जब बालों से पटक कर मारना चाहा तो वह उसके हाथों से निकल कर महामाया के रूप में अवतरित हुई।
कंस ने भी अबला के बालों पर हाथ डाला तो उसके भी संपूर्ण राज-कुल का नाश हो गया।
सम्मान की निशानी
सौभाग्यवती स्त्री के बालों को सम्मान की निशानी कहा गया है। दक्षिण भारतीय कुछ महिलाएं मन्नत व संकल्प आदि के कारण तिरुपति बालाजी वेंकटेश देवस्थान में केश मुंडन करवा लेती हैं । लेकिन भारत के अन्य क्षेत्रों में ऐसी कोई प्रथा नहीं है । कोई महिला जब विधवा हो जाती है तभी उनके बाल छोटे करवा दिए जाते हैं। या जो विधवा महिलाएं अपने पति के अस्थि विसर्जन को तीर्थ ले जाती है। वे ही बाल मुंडन करवाती हैं , सौभाग्यवती नहीं।
गरुड पुराण के अनुसार बालों में काम का वास रहता है | बालों को बार-बार स्पर्श करना दोष कारक बताया गया है। क्योकि बालों को अशुध्दी माना गया है इसलिय कोई भी जप अनुष्ठान, चूड़ाकरण, यज्ञोपवीत, आदि शुभा-शुभ कार्यो में क्षौर कर्म कराया जाता है। तथा शिखाबन्धन कर पश्चात हस्त प्रक्षालन कर शुद्ध किया जाता है।
दैनिक दिनचर्या में भी स्नान पश्चात बालों में तेल लगाने के बाद उसी हाथ से शरीर के किसी भी अंग में तेल न लगाएं हाथों को धो लें।
भोजन आदि में बाल आ जाय तो उस भोजन को ही हटा दिया जाता है।
मुंडन या बाल कटाने के बाद शुद्ध स्नान आवश्यक बताया गया है। बड़े यज्ञ अनुष्ठान आदि में मुंडन तथा हर शुद्धिकर्म में सभी बालों (सिर, मुख और कक्ष) के मुंडन का विधान है।
बालों से तन्त्र क्रिया भी होती है जैसे वशीकरण । ऐसी मान्यता है कि यदि कोई स्त्री खुले बाल करके निर्जन स्थान या ऐसा स्थान जहाँ पर किसी की अकाल मृत्यु हुई है, ऐसे स्थान से गुजरती है तो अवश्य ही प्रेत बाधा का योग बन जाएगा।
खुले बाल के दुष्परिणाम
वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से महिलाएं खुले बाल करके रहना चाहती हैं, और जब बाल खुले होगें तो आचरण भी स्वछंद ही होगा। इस संबंध में इंग्लैंड के वैज्ञानिक डॉ स्टैनले हैल , अमेरिका के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ गिलार्ड थॉमस आदि ने पश्चिम देश की महिलाओं पर निरीक्षण के आधार पर लिखा कि केवल 55 प्रतिशत महिलाएं ही शारीरिक रूप से पत्नी व माँ बनने के योग्य है शेष 45 प्रतिशत स्त्रियां , बाल कटाने के कारण पुरुष भाव को ग्रहण कर लेने के कारण माँ बनने के अयोग्य हैं।
भारतीय महिलाओं में भी इस फैशन रूपी कुप्रथा का प्रवाह शुरू हो चुका है जो शास्त्र और हमारे धर्म के विरुद्ध है।
पाठक लेखन
निशिकांत मंडलोई इंदौर