कई रासायनिक तत्वों का मिश्रण थी राख
जी हां, आज कोरोना महामारी में हम जो सेनेटाइजर की बात सुन रहे है और अल्कोहल मिश्रित द्रव्य का इस्तेमाल कर रहे है तो याद आते है वो पुराने दिन। बात आज से 60 वर्ष पहले की कर रहा हूं। जब हम छोटे थे तो घर मे चूल्हा जलाया जाता था और उसकी राख से बर्तन मांजे जाते थे। इतना ही नही हमारे हाथों की सफाई भी इसी राख से होती थी। मुझे याद है घर के आंगन में एक बर्तन में राख होती थी। जब भी हम शौच कर आते तो हाथों की सफाई राख रगड़कर ही करते थे वह इसलिए कि घर के सभी सदस्य भी ऐसा ही करते थे। यह वह दौर था जब हमारे बाल मन मे यह सवाल नही आता था कि राख से ही क्यो हाथ की सफाई की जाती है और इसलिए भी सवाल नही पूछ पाते क्योकि हमारे घर ही नही बल्कि अन्य घरों में भी इस कार्य के लिए राख का ही उपयोग देखा था। उन दिनों साबुन का चलन भी इतना नही था और राख का उपयोग ही बेहतर सेनेटाइजर के रूप में प्रयुक्त होता था। राख तो आज भी मिल जाती है लेकिन आज के समय के कंडे में उन तत्वों का उतना समावेश नही होता जो उन दिनों के गोबर के कंडो में होता था । समय के साथ बदलाव होते गए और अब तो हाथों की सफाई के लिए नाना प्रकार के साबुन, हैंड सेनेटाइजर(पानी रहित सफाई) जो उपलब्ध है।
अब सवाल यह कि क्यों बेहतर थी उन दिनों चूल्हे की राख से हाथों की सफाई, ऐसा क्या था चूल्हे की राख में
उन दिनों हैंड सेनेटाइजर नहीं हुआ करते थे तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी का आता था ,उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाए जाने से।
चूल्हे की राख का अगर वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो यह बात उभर कर आती है कि राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, जो पौधों में उपलब्ध होते हैं। ये सभी बड़े तथा छोटे तत्व पौधे, या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से।
राख में सबसे अधिक मात्रा में होता है कैल्शियम। इसके अलावा होता है पोटेशियम, एल्युमिनियम, मैग्नेशियम, आयरन, फास्फोरस, मैंगनीज, सोडियम तथा नाइट्रोजन आदि। इनके अलावा कुछ मात्रा में जिंक, ब्रोन, कापर, सीसा, क्रोमियम, निकल, आर्सेनिक, कैडमियम, मरक्यूरी तथा सेलेनियम भी पाया जाता है।राख में मौजूद कैल्शियम तथा पोटेशियम के कारण इसकी ph 9 से 13.5 तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है। जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का खात्मा। जो आज के समय मे हैंड सेनेटाइजर कर रहे है। हम बात स्वदेशी की और आत्मनिर्भर बनने की करते जरूर है पर जिन साधनों पर पहले हम निर्भर थे उनको अपनाने में पीछे रहते है। कोरोना संक्रमण ने बहुत कुछ हमे अपने वास्तविक स्वरूप में लौटने के लिए प्रेरित किया है।
लॉक डाउन में जिस तरह हम अपने परिजनों के साथ रहे वैसे ही हमें प्रकृति के साथ भी रहने की दिशा में अग्रसर होने की कोशिश करना चाहिए। और यही हमारी सनातन संस्कृति भी है।
पाठक लेखन
निशिकांत मंडलोई इंदौर