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क्रिकेट से जुड़ा सट्टा परिवारों की बर्बादी की वजह
Report By: पाठक लेखन 10, Oct 2021 2 years ago

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        भारतीय समाज मे द्युत,जुआ या सट्टा खेलने का प्रचलन काफी पुराना है। राजशाही के समय से ही जुआ-सट्टा समाज मे अनेक रूपों में खेला जाता रहा है। यह जानते हुए भी की जुआ-सट्टा अनेकों परिवारों की बर्बादी का कारण बन चुका हैं। यह बुराई समाज में बढ़ती ही जा रहीं है। समय के साथ अपने रूपों में परिवर्तित होती जुआ-सट्टा नामक यह बुराई वर्तमान दौर में क्रिकेट के ऑनलाइन सट्टे के रूप में प्रचलित है। जेंटलमैन खेल कहा जाने वाला क्रिकेट कब सट्टेबाजी के खेल में परिवर्तित हो गया पता ही नहीं चला। वन डे क्रिकेट में छोटे पैमाने पर सट्टेबाजी का खेल शुरू हुआ था। क्रिकेट के 20-20 फार्मेट के बाद तो क्रिकेट का यह खेल सट्टे का पर्याय हो गया है। अब यह एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। क्रिकेट का सट्टा कुछ लोगो के लिए व्यापार,व्यवसाय बन चुका है। इंडियन प्रीमियर लीग बहुतों के लिए सीजन का समय है। आईपीएल में करोड़ो रूपये दांव पर लगे हुए है। क्रिकेट के इस सट्टे ने अनेकों परिवारो के सुख-चैन को खत्म कर दिया है। मैं अपने आसपास ऐसे अनेको लोगो ओर परिवारों को जानता हूँ,क्रिकेट का सट्टा जिनके दुख और संताप का कारण बन गया है। आर्थिक रूप से खुशहाल परिवार क्रिकेट के सट्टे के कारण आर्थिक परेशानी में पड़ गए। उनकी खुशहाली जाती रहीं। मेरे ओर आपके आसपास भी ऐसे अनेकों किस्से आसानी से मिल जाएंगे जंहा पूंजीपति पिता का होनहार पुत्र बड़े शहर पढ़ने गया था। किंतु वहां क्रिकेट के सट्टे में ऐसे उलझा की पूंजीपति पिता की साख ही दांव पर लग गयी। क्रिकेट के सट्टे की उलझन में उक्त पुत्र दादा-पहलवान ओर माफियाओं के चक्कर में उलझता चले गया। यह किस्से हमारे समाज मे बिखरे पड़े है। पूंजीपति ही नहीं सामान्य भारतीय परिवारों के लिए क्रिकेट का यह सट्टा बर्बादी का कारण बन गया है। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो सरकारी कर्मचारी के रूप में अपने परिवार के साथ बेहद प्रसन्न और खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था। अपने 22 वर्षीय पुत्र को बैंक में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में लगाने के लिए इस बाप ने काफी मशक्कत की,प्रयास सफल भी हुए। पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। अब परिवार में दो कमाने वाले हो गए है। यह खुशी  दो-चार साल चली होगी फिर अचानक पता चला कि बैंक में ग्राहकों के लेनदेन के रुपयों से क्रिकेट का सट्टा लगाने की आदत से वह कर्जे के दलदल में फंस गया। मांगने वाले घर भी आने लगे, गाली गलौज भी देने लगे,यह रोज-रोज होने लगा। पिता की खुशी अब जाती रही, उसकी इतनी क्षमता नहीं थी कि पुत्र के कर्जें को उतार सकें। इन विवादों में पिता ओर पुत्र के मध्य रिश्ते बिगड़ गए। पुत्र शहर छोड़ कर अन्यत्र रहने लगा क्रिकेट के सट्टे ने पिता-पुत्र के रिश्ते को तोड़कर रख दिया। इस सामान्य परिवार को आर्थिक रूप से बर्बाद भी कर दिया। क्रिकेट से जुड़े सट्टे की यह बुराई समाज के अनेकों परिवारों को अपने चंगुल में फंसा रहीं है। इसे रोकना होगा यह एक महत्वपूर्ण विषय है। ऐसी बुराइयां हर दौर में समाज मे प्रचलित रहीं है। महाभारत में भी जुआ या द्युत खेल का जिक्र है। एक प्रसंग में हस्तिनासपुर लौटते समय शकुनि ने दुर्योधन से कहा 'भांजे इंद्रप्रस्थ के सभा भवन में तुम्हारा जो अपमान हुआ है। तुम यदि अपने पिता धृष्टराष्ट्र से अनुमति लेकर युधिष्ठिर को द्युत-क्रीड़ा (जुआ खेलने) के लिए आमंत्रित कर लो। युधिष्ठिर द्युत-क्रीड़ा का प्रेमी है। अतएव वह तुम्हारे निमंत्रण पर अवश्य ही आएगा और तुम तो जानते ही हो कि पासे के खेल में मुझ पर विजय पाने वाला त्रिलोक में भी कोई नही हैं। पासे के दांव में हम पांडव का सबकुछ जीतकर उन्हें पुनः दरिद्र बना देंगे।" मामा शकुनि द्वारा रचा गया द्युत-क्रीड़ा का षड्यंत्र पांडवों के संकट का कारण भी बना। द्युत-क्रीड़ा ने समय के साथ अनेकों शक्ल इख्तियार की इसकी सबसे प्रचलित ओर चर्चित शक्ल मटका किंग रतन खत्री के लकी नम्बरो के रूप में विख्यात हुई थी। एक समय था जब गांवों,शहरों की पान दुकानों,होटलों पर सट्टा लिखे जाने का काम होता था। यहां एक स्लेट टँगी होती थी। जिसमे रोज रात 9 बजे नम्बर लिखे जाते थै। यह नम्बर मुम्बई में मटका किंग द्वारा निकाले जाते थे। मुम्बई से निकले सट्टे के यह अंक सारे देश मे कुछ ही देर में फैल जाते थै। 90 के दशक में जब मोबाइल नहीं थै,तब रात 9 बजे बाद आप आवश्यक काल नहीं कर सकते थै। वजह सारी टेलीफोन लाइनों पर सट्टेबाज होते थै जो मटका किंग का जारी नम्बर जान रहे होते थै। सट्टे का यह स्वरूप काफी लंबे समय तक प्रचलित रहा जिसने अनेकों परिवारों की बर्बादी की कहानियां लिखी। अभी भी यह रूप स्थानीय स्तर पर शहर-दर-शहर दर फैला हुआ है। क्रिकेट का सट्टा बर्बादी का नवीन संस्करण है जो प्रतिदिन बर्बादी की कहानियां लिख रहा है। आईपीएल का दूसरा चरण यूएई में चल रहा है।19 सितम्बर से जारी आईपीएल का फाइनल मुकाबला 15 अक्टूम्बर को खेला जाना है। प्रतिदिन एक या दो मैच हो रहे है। 3 घण्टे 40 ओवर ओर 240 गेंद हर गेंद पर जुआ खेला जा रहा है। क्रिकेट का सट्टा संचालित कर रहें संगठित गिरोह शहर-शहर अपना नेटवर्क बिछाए हुए है। अपनी लिंक के माध्यम से यह अपने ग्राहकों से जुड़कर हरेक पल की जानकारी देते है। रुपयों का लेनदेन भी नेट बैंकिंग के जरिए होता है। कहीं-कहीं नकदी का लेनदेन भी किया जा रहा है। आईपीएल के इस सीजन में अनेको शहरों में आईपीएल का सट्टा खिला रहें गिरोह को पुलिस ने पकड़ा। मप्र के इंदौर में हीं 26 सितम्बर को रतलाम ओर दुबई की लाइन पर सट्टा खिला रहें पाँच सटोरियों को क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था। यूपी के शाहजहांपुर में 9 अक्टूम्बर को दो आरोपियों को पकड़ा है। आरोपियों ने बताया कि शुक्रवार को आईपीएल में सनराइजर्स हैदराबाद बनाम मुम्बई इंडियन्स का मैच चल रहा था जिस पर वह ऑनलाइन सट्टा लगवा रहे थै। यह घटनाक्रम वह है जिन्हें पुलिस ने पकड़ा और जाहिर हुए ऐसे अनेको गिरोह सक्रिय है। जो आईपीएल का सट्टा खिलाकर परिवारों की बर्बादी की दास्तान प्रतिदिन लिख रहे है। अधिकांश स्थानों पर चोरी छुपे तो कहीं-कहीं क्रिकेट के सट्टे का यह कारोबार पुलिस के सरक्षण से भी चल रहा है। भारतीय समाज मे जुआ-सट्टा अनेको रूपों में प्रचलित है। ताश पत्तो के रूप में भी यह प्रचलित है। किंतु क्रिकेट का सट्टा इन सभी से बहुत आगे निकल गया है। साधारण से साधारण इंसान आईपीएल मैचों के फिक्सिंग की बात बड़ी ग्यारंटी से कहता है। उसका यह विश्वास है कि यह मैच फिक्स होते है। सही भी है जिस खेल के किसी फार्मेट में खिलाड़ियों को नीलामी में खरीदा जाएगा। टीम के मालिक धन कमाने के लिए आईपीएल में अरबो रुपया खर्च करेंगे,वहां मैच फिक्सिंग की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। क्रिकेट के खेल से जुड़ा सट्टे का यह कारोबार समाज की खुशहाली ओर विकास के रास्ते मे बड़ी रुकावट है। क्रिकेट के सट्टे से फैलती इस बुराई को रोकना सरकार एवं सामाजिक संस्थाओं की महती जिम्मेदारी है। अनेको प्रदेश सरकारों ने अपने राज्य में एक समय मटका किंग रतन खत्री के प्रचलित सट्टे के फैले जाल को पुलिस की सख्ती से तोड़ा था ओर समाज को इस बुराई से बचाया था। क्रिकेट में जारी सट्टे के वर्तमान स्वरूप को भी राज्य सरकारों को सख्त कदम उठाकर नेस्तानाबूत करना होगा। क्रिकेट के सट्टे का यह जाल हमारे आसपास फैला हुआ है। समाज के ढेरों परिवार इससे प्रभावित हो रहें है। आखिर यह कौन शकुनि है जो क्रिकेट के सट्टे रूपी पासे फैंक रहा है और बर्बादी की नई कहानियों को लिखना चाह रहा है। इसे कानूनी सख्ती से रोका जाना चाहिए और इसके पीछे के चेहरों को बेनकाब भी किया जाए। क्रिकेट को खेल ही बने रहने दिया जावे, जिसमे कौशल दिखाई दें। क्रिकेट में सट्टे के बढ़ते प्रभाव से वास्तविक क्रिकेट प्रेमी निराश है, हताश है और चिंतित भी है। 

लेखक:- नरेंद्र तिवारी
सेंधवा, जिला बड़वानी म.प्र.


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