माही की गूंज, आम्बुआ।
आप जीवन में कितने ही अच्छे कार्य करो नित्य पूजा पाठ करो दान पुण्य करो दिन भर अच्छा कार्य करने के बावजूद बीच में भूल वश कोई गलत कार्य हो गया तो दिन भर करा कराया पूण्य कार्य समाप्त हो जाता है। हालांकि मनुष्य ने गलती जानबूझकर नहीं की होती है मगर पाप का भागीदार हो जाता है उसे दंड मिलता ही है।
उक्त सद् विचार आम्बुआ शंकर मंदिर प्रांगण में कथा विश्राम दिवस की कथा में व्यास पीठ पर विराजमान पंडित अमित शास्त्री ने व्यक्त किए। आगे उन्होंने राजा नल की कथा सुनाते हुए बताया कि, वह प्रतिदिन एक लाख गायों के सींग सोने से मढवा कर उसके खुरो में चांदी लगा कर दान किया करता था। जब उसकी मृत्यु हुई तो धर्मराज के सामने जब पहुंचा तो पता चला कि उसके अच्छे कार्यों के बीच गलत कार्य कर दिया जिस कारण उन्हें सजा मिलना थी। पता चला कि राजा ने एक गाय किसी ब्राह्मण को दान में दी थी वह गया वापस भाग कर राजा की गायों में मिल गई। जिसे राजा ने दूसरे ब्राह्मण को भूल वश दान कर दी तभी वह ब्राह्मण भी आ गया जिसे पहले दान की थी। राजा ने दूसरे से कहा कि, यह गाय इन्हें दे दो दोनों ब्राह्मण में से एक देना नहीं चाहता था दूसरा दूसरी गाय लेना नहीं चाहता था। रूष्ट होकर पहले वाले ब्राह्मण ने श्राप दे दिया कि तू गिरगिट बनेगा राजा को गिरगिट बनना पड़ा जिसका उद्धार भगवान ने किया। आगे कथा में बताया कि, भगवान कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया यानी कि धर्म का साथ दिया। यज्ञ में जब कार्यों का बंटवारा हुआ तो भगवान ने अतिथियों के झूठे पत्तल उठाने का काम लिया। कथा में आगे राजा भोमासुर की कथा जिसने अपने महल में 16 हजार कन्याओं को कैद में रखा था। उन्हें मुक्त कर तथा सभी को अपनी पत्नी स्वीकार किया। यानी कि वह आत्माएं थी जो भगवान से मिलना चाहती थी उन्हें अपनाया। आगे शिशुपाल की कथा जिसने भगवान कृष्ण को गालियां दी थी उन्होंने 100 गाली तक कुछ नहीं कहा मगर जैसे 101 गाली हुई तो सुदर्शन चक्र से उसका उद्धार कर दिया।
कथा के अंत में सुदामा चरित्र सुन कर सबको भाव विभोर कर दिया। सुदामा जो की कृष्ण का सखा था उज्जैन में सांदीपनि आश्रम में साथ पढ़ते थे। एक दिन सुदामा ने कृष्ण से छुप कर चोरी से चने खा लिए। कृष्णा भूखे रह गए जिस कारण सुदामा गरीबी हालत में पहुंचा। उसकी धर्मपत्नी सुशील ने घरों से मांग कर चावल की पोटली दे कर द्वारका भेजा जहां कृष्ण ने सुदामा का आदर सत्कार किया बहुत दिनों बाद मिले मित्र के पांव आंसुओं से धोएं तथा सुदामा के पास से चावल लेकर दो मुट्ठी प्रसाद मान कर कृष्णा ने खाया और सुदामा को दो लोकों का जैसे राज दे दिया हो। कृष्ण सुदामा की मित्रता का जब वर्णन किया तो श्रोता भाव विभोर हो गए। आगे बताया कि, इस तरह सुखदेव जी ने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई। जिसके सुनने से जब सातवें दिन राजा को तक्षक नाग ने डंसा तो कथा सुनने के कारण राजा को कोई कष्ट नहीं हुआ और वह गौलोक धाम गया कथा मनुष्य के जीवन और उसकी मृत्यु दोनों को संवार देती है। कथा विश्राम के बाद भागवत पोथी को ससम्मान यजमान राकेश राधेश्याम राठौड़ अपने निवास तक बेंड बाजे के साथ लाए तथा पूजा आरती पश्चात व्यास पीठ पर विराजित कथा वाचक पंडित श्री अमित शास्त्री को विदा किया।