जिस भगवान ने हमें बेहिसाब दिया उसी को हम माला की गिनती से भजते हैं- पंडित शिव गुरु शर्मा
माही की गूंज, आम्बुआ।
परमात्मा बहुत दयालु है वह अपने भक्तों को ना जाने कब और कितना दे दे यह वही जानता है। भक्तों को हमेशा ही भगवान के सामने सोच समझकर मांगना चाहिए, वैसे तो वह बिन मांगे ही अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करता है। वह मानव को बेहिसाब अनगिनत उपहार देता है। मगर हम उसका नाम स्मरण भी करते हैं तो गिन कर करते हैं यानी की माला के मनका द्वारा करते हैं हमें भी उसका नाम बगैर संख्या के अनंत रूप में करना चाहिए।
उक्त उद्गार आम्बुआ में सांवरिया धाम पर हो रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिवस उन्हेल (उज्जैन) से पधारे कथा प्रवक्ता विद्वान पंडित श्री शिव गुरु शर्मा ने अपनी रसमयी वाणी से व्यक्त करते हुए आगे आज भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया। ब्रज में जैसे ही पता चला कि नंद बाबा के यहां लाला ने जन्म लिया है सारा ब्रजमंडल उनके महल पर बधाई देने पहुंचने लगा। यहां पर कृष्ण जन्मोत्सव लगभग छः माह तक दिन-रात चलता रहा। जिसमें यशोदा माता ने मनचाहा उपहार हाथी, घोड़े, हीरे-मोती और न जाने कितना उपहार बांट दिया। कृष्ण भगवान के अवतरण की खबर जैसे ही भगवान शिव को मिली वह नंद बाबा के महल जा पहुंचे जहां पर मां यशोदा उनका रूप देखकर कृष्ण के दर्शन कराने से मना कर दिया। तब भगवान शिव गांव के बाहर हट करके बैठ गए। इधर श्रीकृष्ण ने रोना चालू कर दिया लोगों के समझाने पर मां यशोदा भगवान शंकर को मना कर लाई तथा लाला का दर्शन शिवजी को कराया।
पूतना का उद्धार
श्री कृष्ण को मारने हेतु कंस ने पूतना को भेजा जोकि सुंदर रूप रखकर आई तथा माता यशोदा को भ्रमित कर श्री कृष्ण को अपनी गोद में लिया। जैसे ही उसने गोद में श्री कृष्ण ने आंख बंद कर भगवान शिव को याद किया कि बाबा एक बार आपने जहर पिया था अब यह पूतना अपने स्तनों में जहर लगाकर आई है इस जहर को भी आप पान करें। भगवान शिव ने श्री कृष्ण के हृदय में विराजित हुए तथा लाला कृष्ण ने पूतना का दूध पीना प्रारंभ किया। जिससे वह घबराकर आकाश में उड़ी तथा बोली मुझे छोड़ दो। तो भगवान कृष्ण ने कहा, मैं जिसको पकड़ता हूं छोड़ता नहीं हूं और इस तरह उसके प्राणों को हर कर उसका उद्धार किया।
यहां पंडित श्री शर्मा ने मां-बाप की महिमा का गुणगान करते हुए बताया कि, मां-बाप पुराने पेड़ की तरह होते हैं वह फल फटने न दे मगर छाया (आशीर्वाद) जरूर देते हैं। मां के समान दुनिया में कोई नहीं होता है। मनुष्य कितना बड़ा भंडारा कर दे मगर मां-बाप भूखे रहे तो उसका कोई पुण्य नहीं मिलता है। जब मां रोती है तो भगवान भी रोते हैं। भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं में मां से चंद्र खिलौना मांगना तथा जिद करने पर मां परात में पानी भरकर चंद्र दर्शन कराती है। आगे श्री शर्मा जी ने बताया कि, कृष्ण को मारने के लिए तृणावर्त राक्षस को भेजा। जिसका उद्धार भगवान ने किया। उसके बाद वत्सासुर को भेजा जिस का उद्धार भगवान ने किया। आगे भगवान कृष्ण की बाल लीला में ओखली लीला जिसमें मां यशोदा उन्हें ओखली से बांध दिया, तब श्री कृष्ण ने कुबेर के दोनों पुत्र जोकि श्राप के कारण वृक्ष बन गए थे उनका उद्धार किया। जब ब्रज में राक्षसों का रोज उत्पात मचाने लगे तो सभी बृजवासी वृंदावन जाकर रहने लगे। इसी क्रम में गौ सेवा पर आज पुनः प्रकाश डालते हुए गौ सेवा का महत्व बताया।
इंद्र की पूजा बंद कर गोवर्धन पूजा कराई
भगवान कृष्ण एक दिन देखा कि, गांव के सभी पूजा की तैयारी कर रहे हैं। तब कृष्ण मां तथा नंद बाबा से पूछा कि, किसकी पूजा करने जा रहे हैं। तब सब ने कहा कि, इंद्र की पूजा करने जा रहे हैं। जिस पर श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि, हमारी गायों को भोजन कहां से मिलता है गोवर्धन पहाड़ से तब हम गोवर्धन की पूजा करें। सभी ने गोवर्धन की पूजा की तथा इंद्र ने कुपित होकर भयंकर बारिश कर दी। जिससे बचाव हेतु भगवान कृष्ण ने गोवर्धन को उठाया तथा सभी की रक्षा की तथा इंद्र का घमंड चूर चूर किया। कथा के अंत में गोवर्धन पूजा की गई।
सरपंच तथा बोहरा समाज ने पंडित जी का किया सम्मान
कथा पंडाल में कथा के दौरान सरपंच रमेश रावत, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी करणसिंह रावत, महेंद्र सिंह रावत, हासीम अली, मुफज्जल भाई, मुस्तूभाई, बुरहान भाई, हकीम भाई आदि ने पंडित श्री शिव गुरु शर्मा का हार माला शॉल श्रीफल देकर सम्मान किया।
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