आसमानी वज्रपात से एक दिन में एक ही राज्य में 92 की मोत अब तक का सर्वाधिक आकड़ा
प्रकृति में होने वाले घटनाक्रमों ने धरती पर रहने वाले मनुष्यों, जीव जंतुओं, पेड़ पौधों तथा वातावरण आदि को हमेशा ही प्रभावित किया है, फिर चाहे वह ज्वालामुखी हो भूकम्प हो या समुद्री तूफान हो या फिर महामारी का रूप कोरोना हो या आकाश में होने वाली खगोलीय घटनाएं। इन सभी से हम सभी गुजर चुके हैं और कोरोना वायरस तो अभी हमारे बीच ही है। प्रकृति की सभी घटनाएं अपने पीछे कुछ न कुछ परिणाम अवश्य छोड़ जाती हैं, इनमें अच्छे भी होते हैं और बुरे भी। इन सबके साथ एक और प्रकृतिजन्य घटना है जो हर वर्ष इन दिनों घटित होती है और वह है आसमानी यानी आकाशीय बिजली।
सदियों से वर्षा ऋतु के आगमन से लेकर तथा इस ऋतु के दौरान प्रकृति की यह भयावह शीघ्रगामी तलवार यानी आसमानी बिजली या यूँ कहें आफत भी सभी को प्रभावित करती है। प्रकृति की इस विस्मयकारी घटना में अनेक मनुष्य, पशु, पक्षी तथा वृक्ष चपेट में आकर अपने जीवन गवां देते हैं। कई बार तो जंगल के जंगल स्वाह हो जाते हैं। इस बार भी प्रकृति के इस वज्रपात से देश में 25 जून गुरुवार को बिहार और उत्तरप्रदेश में 120 लोगों की मृत्यु हो गई। इसमें बिहार में एक दिन में इस तलवार से मरने वालों का आंकड़ा 92 है जो एक दिन में इस घटना से मरने वालों का अभी तक का सर्वाधिक आंकड़ा है, इतना ही नही इस घटना में कई अन्य लोग भी चपेट में आकर घायल हुए हैं। प्रकृति की अन्य घटनाओं की तरह ही इस आसमानी आफत के बारे में सभी की जिज्ञासा होती है तो आज हम आपको यहां इसके बारे में बताने का प्रयास करते हैं।
प्रकृति की भयानक, शीघ्रगामी तलवार, आसमानी बिजली
गर्मी की दोपहर में यकायक अंधियारा कर देने वाले घने काले बादल छा जाएं, हवा में ठंडक घुल जाए और आंखों को चकाचोंध कर देने वाली बिजली कड़के और बादलों की दिल दहला देने वाली गर्जना के साथ तेज बारिश शुरू हो जाए तो इससे विस्मयकारी और क्या हो सकता है। प्राचीनकाल में जब ऐसा होता था तो लोग कहा करते थे भगवान काम पर लग गया है, यहां जिक्र कर रहे हैं प्रकृति की सबसे भयानक, शीघ्रगामी तलवार यानी आसमानी (आकाशीय) बिजली की जो दर वर्ष वर्षा ऋतु के दौरान गिरती है और अनेक लोग, पशु तथा वृक्ष इसकी चपेट में आकर अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं।
आखिकार तूफानी बादलों को यह ऊर्जा कहां से प्राप्त होती है? यह प्रक्रिया बहुत जटिल है और इसके बारे में बहुत कम जानकारियां मिलती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक जब ओले बादलों के चक्रव्यूह में फंसकर टकराते हैं तो ऊर्जा उत्पन्न करते हैं तथा तूफानी बादलो के शिखर पर वे सकारात्मक चार्ज (आवेश) भेज रहे होते हैं और निचले सिरे पर नकारात्मक। इस प्रक्रिया से अत्यधिक मजबूत सकारात्मक चार्ज पृथ्वी की सतह पर टकराता है और बादलों की सतह इसका प्रतिरोध नहीं कर पातीं। इस घटना से बादल की सतह पर 10 करोड़ वोल्ट का झटका लगता है जो बिजली की कड़क उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त होता है। बस इसी क्षण तूफानी बादलों की भंडारित ऊर्जा बादलों से निकलती है और मनुष्य की आंखों को चकाचोंध कर देती है। ऐसे में जमीन पर 30 मीटर के दायरे में इसका प्रभाव पड़ता है और बड़े जोर का झटका महसूस होता है, यही चीज हमें दिखाई देती है इस गाज गिरने की गर्मी तेजी से हवा में फैलती है और गर्जना के साथ हमें अचंभित कर देती है।
5 सेंटीमीटर के दायरे में यह बिजली कौंधती है, इसकी लंबाई कम से कम 60 मीटर से लेकर 30 किलोमीटर तक हो सकती है। हवा में इसकी गति 1 लाख 45 हजार किलोमीटर प्रति सेकेंड होती है जो प्रकाश की गति(लगभग 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड) से लगभग आधी है, इस गति में यह देख पाना लगभग असंभव है कि बिजली जमीन से आकाश तक कौंधी है। इस विस्मयकारी घटना के दौरान हवा में बिजली का ताप 28 हजार डिग्री सेल्सियस तक होता है जो सूरज की सतह के तापमान से 5 गुना अधिक है। हालांकि इस तड़ित ऊर्जा(बोल्ट एनर्जी) का तीन चौथाई हिस्सा ही हीट में इस्तेमाल होता है। यह 12 करोड़ 50 लाख(125 मिलियन) नॉट की विद्युत प्रदान करने के लिए पर्याप्त है। जब यह बिजली किसी पेड़ से टकराती है तो उसे जलाकर राख कर देती है। यह बिजली जमीन में 3 मीटर गहरा गड्ढा कर सकती है। और बड़ी बड़ी चट्टानों को तोड़ सकती है, पृथ्वी पर प्रति सेकेंड करीब सौ बार इस तरह की गाज गिरती है यानी एक दिन में 80 लाख बार, कोई भी इसका अंदाजा नहीं लगा सकता और न ही इसे ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
भौतिकविदों का मानना है कि इस बिजली का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रयोगशालाओं के अनुभव बताते हैं कि इस गाज के गिरने के दौरान 4 प्रकार की गैसे निकलती हैं, मिथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन और पानी की वाष्प(भाप) जिससे एमिनो एसिड बनता है, यही गाज आदिमानव के लिए अग्नि उपलब्ध कराने का एकमात्र जरिया रही। यहां तक कि आज भी तूफानी हवाएं पृथ्वी का निगेटिव चार्ज बनाए रखने में सहायक होती हैं। गाज गिरने के दौरान कुछ नाइट्रोजन यौगिक बनने में मदद मिलती है जो पेड़ पौधों के विकास के लिए जरूरी है।
एक रेंजर पर 7 बार गाज गिरी
वर्जिनिया के शेनान डोह नेशनल पार्क में कुछ वर्षों तक रेंजर रहे राय डुम्स सुलिवान का दावा है कि वे 7 बार बिजली गिरने के दौरान बच गए। यह विश्व रिकॉर्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। शेनान डोह घाटी के एक रेस्टॉरेंट ने तो तूफान के दौरान डुम्स को अपने परिसर में आने पर ही पाबंदी लगा दी थी। एक बार उन्होंने बताया कि- आप बता सकते हैं कि गाज गिरने वाली है? ऐसे समय में आपको हवा में गंधक की गंध आती है और बाद में आपके रोंगटे खड़े हो जाते हैं और तब यह गाज आप पर गिरती है। चौथी शताब्दी में यह अवधारणा थी कि आकाश के किसी भी क्षेत्र में बने आग के गोले से उत्पन्न चिंगारियों से यह बिजली उत्पन्न होती है। सन 1752 तक यह सही नहीं था जब बेंजामिन फ्रेंकलिन ने जलने वाली रॉड का आविष्कार किया और बताया कि गाज मूलतः विद्युत ही है, उन्होंने तूफान के दौरान पतंग उड़ाकर इसका प्रदर्शन भी किया।
बड़ा खतरा है
बिजली कुछ देती है तो कुछ ले भी जाती है, इसकी आग में जलकर लाखों जंगल के जलने तथा करोड़ो रुपए की संपत्ति का नुकसान हो जाता है, घरों में बिजली जाने का एक कारण भी है, इससे अचानक उत्पन्न भीषण ऊर्जा के कारण ट्रांसफार्मर जल जाते हैं लेकिन, सबसे बड़ा खतरा मानवीय जीवन के लिए है। गाज गिरने से ह्रदय की धड़कनें और श्वसन तंत्र थम जाता है और आदमी की जान चली जाती है।
बचाव के लिए सावधानियां
बिजली चमकने के दौरान सेकंड्स में इस तूफान की गणना कैसे कर सकते हैं, तूफान जो 300 मीटर प्रति सेकंड की गति से चलता है, यदि इस तूफान के समय आप घर से बाहर हैं तो सावधान रहें, सामान्यतः बिजली ऊंचे स्थानों पर गिरती है क्योंकि वे इसकी पहुंच के नजदीक होते हैं, खुले मैदान में यह लक्ष्य आप हो सकते हैं। सबसे बढ़िया तो यह है कि आप घर से बाहर ही न निकलें। घरों के अंदर बिजली गिरने से केवल एक प्रतिशत मौतें ही होती हैं। तूफान के दौरान यह सबसे सुरक्षित जगह होती है। घरों की दीवारों में बिजली के तार आसमानी बिजली को छत में छेद करने देने के बजाय बिना विस्फोट के सीधे जमीन में उतार देते हैं, हालांकि यह आपके वायरिंग सिस्टम के लिए बहुत अच्छा नहीं है। इसलिए आपको घरों में तड़ित चालक (लाइटनिंग रॉड) का प्रयोग करना चाहिए।
पाठक
निशिकांत मंडलोई इंदौर