देश की आजादी के 75 वे वर्ष पर सभी देशवासियों को बधाईI आजादी शब्द लिखने में सिर्फ 3 शब्दों का है, परंतु इसे पाने के लिए भारत के हजारों वीरों ने मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया और स्वतंत्रता के इतिहास में न जाने कितने आंदोलन हुएl इन्हीं आंदोलनों और बलिदानों का परिणाम है भारत की स्वतंत्रता। इतिहास में यदि हम देखें तो भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही उसका विरोध आरंभ हो गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक एवं आर्थिक नीतियों के परिणामों से असंतुष्ट होकर समाज के अनेक वर्गों, पदच्युत शासकों, जमीदारों, धार्मिक नेताओं, फकीरों -सन्यासियों, सैनिकों किसानों एवं जनजातियों ने अनेक बार विद्रोह किए। अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध सबसे बड़ा संघर्ष 1857 में हुआ। इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है।
भारतीय इतिहास में अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी का वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जब बहादुर शाह जफर को भारत का बादशाह घोषित किया गया। ब्रिटिश शासन काल के खिलाफ लंबे समय से जो असंतोष पनप रहा था, वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप में भड़क उठा। सबका एक समान उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना। संघर्ष काफी व्यापक होकर भारतीय इतिहास में गौरवशाली अध्याय के रूप में दर्ज है। इस आंदोलन का स्वरूप भले ही व्यापक था, मगर जनता स्वतंत्र नेतृत्व कायम नहीं कर सकी। जिसके चलते भारतीय इतिहास का एक युग समाप्त हो गया। इस आंदोलन में वीरों ने अपने बलिदान देते हुए भारत में अंग्रेजी शासन पर प्रहार न करके मात्र अपनी शक्ति का परिचय दिया। इस आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। परिणाम स्वरूप इसका कठोरता पूर्वक दमन कर दिया गया। इस घटना ने इंग्लैंड सरकार को झकजोर कर रख दिया और ब्रिटिश हुकूमत भारत के बारे में नए सिरे से विचार करने के लिए विवश हुई। कालांतर में हुए अनेक आंदोलनों के चलते 1947 में माउंटबेटन योजना में भारतीय राजाओं को उनकी सुरक्षा अनुसार भारत या पाकिस्तान में बने रहने की स्वतंत्र प्रदान की गई। जिसके चलते नवीन एवं स्वतंत्र भारत के सुनियोजित एवं आर्थिक विकास हेतु संगठन की आवश्यकता थी। जिसे 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होने के साथ क्रियान्वित करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी गई।
19वीं शताब्दी में धार्मिक एवं समाज सुधार एवं समाज सुधार आंदोलनों का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रहा। भारत में धर्म है और समाज में परिवर्तन प्रारंभ हुआ। इसे पुनर्जागरण काल के नाम से जानते है। अनेक कारणों से भारतीय समाज पतन के द्वार पर खड़ा था। प्रबुद्ध भारतीयों ने इसमें सुधार लाने के लिए आंदोलन चलाएं। उनके प्रभाव से भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले। सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, प्रत्येक क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले। जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत के विभिन्न भागों में स्थानीय व प्रांतीय स्तर पर विभिन्न आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कई राजनीतिक और सामाजिक संस्थाएं स्थापित हुई। जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में कर ब्रिटिश अफसर एओ ह्यूम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में देशभर के प्रसिद्ध नेताओं से संपर्क स्थापित कर उनका सहयोग प्राप्त किया। कांग्रेस की स्थापना भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना थी। इसके पीछे एक दीर्घ और चिंतनशील इतिहास है। कांग्रेस का उद्देश्य राष्ट्रीय प्रगति के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं को आपस में परिचित कराना और भारत की जनता को साझे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एकजुट करना था। जब 1899 में लार्ड कर्जन भारत का वायसराय बन कर आया था। उसने बंगाल प्रांत के पूर्वी भाग और पश्चिमी भाग को 1905 में विभाजित कर दिया। इस विभाजन का घोर विरोध हुआ। इसके साथ ही बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस दो दलों में विभक्त हो गई गरम दल और नरम दल। इसके उद्देश्य भारतीय जनमानस में आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गर्व की भावना जमाने के लिए देश के गौरवशाली इतिहास का गुणगान करना था। इसी के चलते तिलक ने स्वराज प्राप्ति के उद्देश्य से नारा दिया
स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा। जिसने जनता को जागृत कर देशभक्ति की भावना पुनर्जीवित कर दी। कांग्रेस अपने आरंभिक वर्षों में व्यापक राष्ट्रीय उद्देश्य का एक ऐसा आंदोलन बन गई जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था। भारतीय जनता की स्वतंत्रता संघर्ष के इस नए दौर में मोहनदास करमचंद गांधी का पदार्पण प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ। 1917 के आरंभ में गांधीजी ने चंपारण आंदोलन बिहार, खेड़ा आंदोलन गुजरात का नेतृत्व किया। आंदोलन ने संघर्ष में गांधीवादी तरीकों को आजमाने और गांधी जी को देश की जनता के नजदीक आने का अवसर दिया। सामाजिक सुधार का क्षेत्र भी गांधीजी के राष्ट्रवादी आंदोलन का अभिन्न हिस्सा बन गया। फिर चाहे छुआछूत की फिर अमानवीय प्रथा का विरोध हो या हिंदू मुस्लिम एकता के साथ ही कुटीर उद्योग से लाखों लोगों को रोजगार की बात करना। साथ ही सांप्रदायिकता का घोर विरोध करना। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश की स्वतंत्रता के लिए गांधीजी प्रयास करते रहे। इसी के चलते हुए भारतीय जनता में महात्मा गांधी के नाम से लोकप्रिय हुए। भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक असंतोष, लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीति, बंगाल विभाजन और 19वीं सदी में विश्व में हुई अनेक क्रांतियों ने भारत में भी स्वतंत्रता की मशाल जला दी। क्रांतिकारियों के साहसिक कार्यो ने युवकों नवयुग को भाग लेने के लिए प्रेरित किया। 1908 से 1918 के बीच अधिकांश क्रांतिकारी शहीद हो गए या जेलों में कैद कर दिए गए। यद्यपि क्रांतिकारी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुए, परंतु उनका देश प्रेम और आत्म बलिदान जनता के लिए प्रेरणा स्रोत बना। क्रांतिकारियों के द्वितीय चरण में युवाओं की नई फौज खड़ी हुई और कई संगठन बनाए। भगत सिंह, सुखदेव , राजगुरु, खुदीराम बोस और चंद्रशेखर आजाद जैसे युवाओं का बलिदान पूरे देश को जागृत कर गया। प्रतिबंधात्मक कानूनों का विरोध, आंदोलनों में गिरफ्तारी, जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत आंदोलन के साथ ही गांधी के असहयोग आंदोलन के भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली।
31 दिसंबर 1929 में रावू नदी के तट पर लाहौर कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही गांधी जी को एक नवीन आंदोलन चलाने के लिए समस्त अधिकार दिए गए। गांधी जी ने असहयोग आंदोलन के बाद, नमक आंदोलन कानून के विरोध में दांडी यात्रा प्रारंभ की। साबरमती आश्रम से गुजरात के दांडी नमक एकत्रित कर नमक कानून भंग कर दिया। जिसके बाद ही शासन को किसी तरह का कर न दिए जाने संबंधी सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हुआ। इस पर सरकारी दमन चक्र भी चला। लाठीचार्ज और गोली चलाने की अनेक घटनाओं के साथ ही लगभग 10000 लोगों को जेल में डाल दिया गया। आंदोलन की उग्रता को रोकने के लिए गांधी जी को भी जेल में डाल दिया गया। लोगों के साथ हो रही ब्रिटिश ज्यादती के खिलाफ गांधी जी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया। 1942 में देश की स्वाधीनता के लिए भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्तावित किया गया। 9 अगस्त 1942 की अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए, परिणाम स्वरूप आंदोलन में उग्र रूप धारण कर लिया।गोलियां चली, लाठी चार्ज हुए और सारे देश में गिरफ्तारियां हुई बड़ी संख्या में लोग मारे गए। आंदोलन भी अधिक समय नहीं चल सका, परंतु देश में आजाद भारत को लेकर माहौल बनना शुरू हो गया। ब्रिटिश सरकार ने 1946 में घोषणा की भारत से शासन समाप्त करना चाहती है। कैबिनेट मिशन के रूप में सत्ता हस्तांतरण के लिए भारतीय अंतरिम सरकार और संविधान सभा का प्रस्ताव रखा गया। माउंटबेटन योजना में निर्णय लिया गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होगा। इसके लिए 8 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम स्वीकृत हुआ और 15 अगस्त 1947 भारत का एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय हुआ। देश की स्वतंत्रता के लिए आंदोलनों और हजारों बलिदानों से मिली आजादी को सहेजने की जिम्मेदारी सरकार संविधान और न्यायपालिका की तो है ही परंतु इस देश के नागरिकों के कर्तव्य इन संस्थाओं से कहीं अधिक है। आजादी के 75 वर्ष में हम अपने सकारात्मक कर्मों से देश की आजादी और उसकी प्रगति को संरक्षित कर आजादी का अमृत महोत्सव मनाएंगे।
लेखक :- कमलकांत वैद्य