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मुफ्त वितरण की चुनावी घोषणाएं भारत की तरक्की में बाधक
13, Feb 2022 2 years ago

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        देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव चल रहे है। लोकतंत्र के इस उत्सव के दौरान राजनैतिक दलों द्वारा  चुनावी घोषणा-पत्र जिसे संकल्प-पत्र, वचन-पत्र आदि के नाम से भी जारी किया जा रहा है। दलों के इन घोषणा-पत्रों में मतदाताओं के लिए लोकलुभावन घोषणाओं का पिटारा होता है। अमूमन सभी दल चुनाव के दौरान अपनी पार्टी का घोषणा-पत्र जारी करतें है। किंतु क्या आदर्श आचार सहिंता लगने के बाद मतदाताओं को रिझाने वाले चुनावी घोषणा-पत्र आदर्श आचार सहिंता की भावना के प्रतिकूल नहीं है? क्या मुफ्त की सुविधाओं के वितरण की यह दलीय प्रतिस्पर्धा लोकतंत्र में उचित मानी जानी चाहिए? इन लालीपापनुमा मुफ्त योजनाओं से आखिर कौन लाभान्वित होता है? इन प्रश्नों पर समय रहते विचार करना बेहद जरूरी है। कहीं यह मुफ्त की बंदरबाट एक बड़े वर्ग को मुफ्तखोर या आरामतलब तो नही बना रहीं है।

        यूपी के सियासी आसमान से मुफ्त सुविधाओं के वितरण की बरसात लगभग सभी राजनैतिक दलों के द्वारा की जा रहीं है। इस राज्य में सत्ता पर काबिज होने के लिए सभी पार्टियों ने अपने घोषणा-पत्रों में सत्ता प्राप्ति पर दोनों हाथों से मुफ्त सुविधाएं देने का एलान कर दिया है। इन दलों ने किसानों, गरीबो महिलाओं, दलितों को मुफ्त वितरण हेतु आकर्षक उपहार देने सम्बन्धी घोषणा-पत्र तैयार कर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के हरसम्भव प्रयास किये जा रहें है। यूपी में सत्ता पर 5 साल काबिज रहने वाली भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र को संकल्प-पत्र नाम देकर जो मुफ्त वितरण की घोषणा की है। उसमें किसानों को सिंचाई हेतु बिजली मुफ्त, कालेज जाने वाली महिलाओं को स्कूटी मुफ्त, प्रतियोगी परीक्षाओं में कोंचिग मुफ्त, 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को यात्रा मुफ्त, उज्ज्वला योजना में 2 गैस सिलेंडर होली, दीपावली पर मुफ्त दिया जाना शामिल है। यूपी में सत्ता पर काबिज होने के लिए लालायित दूसरे प्रमुख राजनैतिक दल समाजवादी पार्टी भी मुफ्त वितरण में पीछे नहीं है। किसानों का कर्जा माफ,बीपीएल परिवारों को महीने में एक लीटर पेट्रोल मुफ्त, आटो संचालको को पेट्रोल और एलपीजी गैस मुफ्त, लड़कियों को 12 उतीर्ण करने पर 36 हजार की सहायता, गरीबो का मुफ्त इलाज ओर भी बहुत कुछ मुफ्त वितरण का उल्लेख उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा अपने घोषणा-पत्र के माध्यम से किया गया है। कांग्रेस पार्टी यूपी विधान सभा चुनाव में बरसों बाद 2022 में 400 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारकर अपना जनाधार तलाशने की कोशिश में लगी है। फ्री वितरण की घोषणाओं के अपने वायदों में 10 दिनों में किसानों का कर्जा माफ,बिजली के बिल हाफ,कोरोना काल मे प्रभावित परिवारों को 25 हजार रु की आर्थिक सहायता, पशुधन से किसानों की फसलों की नुकसानी पर  आर्थिक सहायता, बीमारी पर 10 लाख का इलाज मुफ्त। इन प्रमुख सियासी दलों ने दोनों हाथों से जनता को मुक्त वितरण की झड़ी लगा दी है। यूपी ही नहीं देश के अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों या लोकसभा चुनावों में भी इन दलों द्वारा दोनों हाथों से सरकारी खजाने को लुटाने की घोषणाएं की जाती है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज केजरीवाल की आप पार्टी भी मुफ्त वितरण की घोषणाओं में पीछे नही है। अव्वल तो आदर्श आचार सहिंता के दौरान मुफ्त वितरण की घोषणाओं का एलान उचित नहीं कहा सकता है। इन मुफ्त वितरण की योजनाओं का भार सरकारी खजाने पर होगा। इससे महंगाई आसमान छूने लगेगी। इसकी पूर्ति के लिए राज्य सरकारें आम लोगो एवं व्यवसायियों पर नवीन कर आरोपित करने के लिए बाध्य होगी। सियासी दलों में जारी मुफ्त वितरण की इस बेलगाम प्रतिस्पर्धा पर समय रहते विराम लगाना बेहद आवश्यक जान पड़ता है। क्या फ्री प्रदाय की यह घोषणाएं गरीबो,किसानो, महिलाओं एवं बेरोजगारों के हित मे है। क्या यह घोषणाएं समाज मे एक बड़े वर्ग को मुफ्तखोरी ओर आरामतलबी की तरफ नहीं ले जा रहीं है। आमजन के मन मे इन फ्री-फंड की घोषणाओं को लेकर आक्रोश का माहौल बना हुआ है। सरकारों को चाहिए कि गरीबों, किसानों, छात्रों, महिलाओं को सक्षम बनाने हेतु समुचित योजनाओं का खाका तैयार करे। बेरोजगार हाथों को काम देने के लिए रोजगारों का सृजन करें। महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यक्रम संचालित करें। किसानों को फसलों का समुचित मूल्य प्रदान करें, कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने की योजनाएं तैयार करें। मुफ्त वितरण की यह योजनाएं समाज के एक बड़े वर्ग को आराम तलब बना रहीं है। यह कदम आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में रुकावटें पैदा कर सकता है। बेशक समाज के अतिनिर्धन, श्रमिकों किसानों, महिलाओं, लाचारों ओर उपेक्षित वर्ग हेतु राज्य सरकारों को कल्याणकारी योजनाए संचालित करना चाहिए। यह एक लोककल्याणकारी राज्य का दायित्व भी है। किंतु इस दायित्व के निर्वहन में मुफ्त वितरण की घोषणाओ का किया जाना उचित नहीं है। राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा-पत्रों में लगातार बढ़ती फ्री प्रदाय की यह घोषणाएं राजनैतिक दलों के चुनावी अभियान में तो सहायक हो सकती है किंतु इन घोषणाओं से राष्ट्र के नागरिकों को आत्मनिर्भर नही बनाया जा सकता है। मुफ्त वितरण की यह घोषणाएं किसी राजनैतिक दल के लिए तो सत्ता प्राप्ति का माध्यम हो सकती हैं। किंतु यह एक राष्ट्र के लिए लाभदायक हो ऐसा नही माना जा सकता है। मुफ्त की सुविधाएं राष्ट्र के एक बड़े वर्ग को सुविधाभोगी बना रहीं है। सरकारी कृपा पर जिंदा यह वर्ग परिश्रम करना भूलता जा रहा है। फ्री-फंड की सरकारी सुविधाएं धीमे जहर के रूप नागरिकों को पंगु बना रही है। राष्ट्र का नव निर्माण नागरिकों के परिश्रम से ही सम्भव है।


नरेंद्र तिवारी, सेंधवा 

जिला बड़वानी (म.प्र.)


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