कही दूसरे देशों से भयावह नही हो जाए स्थिति
चरित्र की बात जब आती है तो एक बात बड़ी आसानी से जेहन में आती है और वह है तिरया चरित्र। जिसे समझ पाना मुश्किल होता है। उसी प्रकार जब भारतीय शासन व्यवस्था की बात आती है यहां भी तीन तत्व उभर कर सामने आते हैं यानी पीएम, सीएम और डीएम यानी प्राइम मिनिस्टर(प्रधानमंत्री), चीफ मिनिस्टर(मुख्यमंत्री) और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (कलेक्टर)। *यानी तीन तिगाडा काम बिगाड़ा* वाली लोकोक्ति सामने आती है। भारत मे कोरोना वायरस प्रकोप के परिप्रेक्ष में भी इस तिकड़ी द्वारा चली गई हर तरकीब नाकाम ही साबित हुई है। इस महामारी के दौरान *एपिडेमिक डिजिजेज एक्ट* और *डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट* का सहारा लेकर जो शक्तियां हासिल की वह दो माह के दौरान चौथे लॉकडाउन के बाद भी अंतिम दिनों में स्थिति नियंत्रण में आने के बजाय पहले से कहीं ज्यादा बदतर होती जा रही है। यानी इन तीन तिगड़ी ने काम बिगाड़ा यही जनमानस के भाव उजागर कर रहा है। सरकार भले ही अन्य देशों की तुलना कर अपने देश की स्थिति को बेहतर बताए लेकिन देश के हालात कोरोना को लेकर अच्छे नही कहे जा सकते। अगर यही हालात बने रहे तो वह दिन दूर नही जब अन्य देशों में कोरोना से जंग की जीत में सभी की स्थिति भारत से बेहतर होगी।
एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने का रोना कब तक रोएँगे
कोरोना वायरस की समाप्ति भारत मे कभी हो पाएगी इस पर भी संशय है। यह बात किसी आयुर्वेदिक काढ़े से भी बहुत कड़वी है लेकिन इसके घूंट तो सरकार को हलक के नीचे उतारने ही पड़ेंगे। बुद्धिजीवियों को लिखने की छूट दी जाए और फिर उस पर सरकार को मंथन करना चाहिए। क्योंकि भारत मे कोरोना वायरस का आगाज वाकई में पहले 21 दिनी लॉकडाउन के बहुत पहले हो चुका था। लेकिन हमारा देश उस समय *अमेरिका से आया मेरा दोस्त, दोस्त को नमस्ते करो* के राग की महफ़िल में गाफिल था। उसके बाद जहां कांग्रेस की या उसके सहयोग से चलने वाली सरकार को अस्थिर कर भाजपा अपना प्रभुत्व जमाने की जुगाड़ में लगी रही। मध्यप्रदेश में तो सफलता भी हासिल कर ली। इसके लिए नैतिकता को जितना गिराना था उससे
कहीं ज्यादा गिरा दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद ही लॉकडाउन किया गया। प्रधानमंत्री ने कहा जो जहाँ है वहीं रहेगा लेकिन मप्र में शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री बनते ही शिवाष्टक के माध्यम से अधिकारियों को इधर से उधर लुडकाना शुरू किया। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। निर्णय और निर्देश के फरमान ही निकलते रहे । आज विभिन्न राज्यो से भुखमरी का शिकार हुए मजदूरों का पलायन जारी है। क्या समय रहते इन मजदुरो को अपने गंतव्य तक पहुँचाना केंद्र व राज्य सरकारों की जवाबदारी में नही आता, उसमें में भी राजनीतिक द्वेष की भावना को बलवती रखा। देश मे इस मामले में अराजक स्थिति निर्मित हुई। लॉकडाउन के दो महीने के बाद भी वायरस का संक्रमण रुकने के बजाय दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ता ही जा रहा है।
मप्र में तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी ज्यादा भयावह होने की आशंका होती प्रतीत हो रही है क्योंकि यहां जल्द ही हमारे सत्तालोलुप मुख्यमंत्री उपचुनाव का बिगुल कभी भी बजवा सकते हैं। ये उपचुनाव सामान्य चुनावो से अलग काफी दिलचस्प तो रहेंगे साथ ही आगे आने वाले समय के लिए घातक भी साबित होंगे। क्योकि एक दो नही पूरे 24 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव होंगे।
ऐसे में प्रदेश में कोरोना वायरस का भविष्य कैसा होगा यह बात जनमानस को झकझोर रही है।
क्योकि दिल्ली , मुम्बई जैसे शहर के साथ ही अन्य राज्यो के हालात बर्बादी की कगार पर जाते दिख रहे है। देश के अमूमन सभी राज्यो के जिले कोरोना से अब अधिक प्रभावित होते दिखाई दे रहे है।
लॉक डाउन आखिर खोलना तो पड़ेगा। सभी सरकारी व निजी कम्पनियां अपने कार्यालय खोलेंगे तब ज्यादा लोग एक साथ आयेगे तो लोगो मे भी डर रहेगा लोगो की जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
लोग भूख से बर्बाद होंगे क्योंकि सरकार जब रोजगार नही देगी तो लोग भोजन की व्यवस्था कहा से कर पाएंगे । केंद्र सरकार कहेगी की हमने रोक दिया है काफी लेकिन अब नही रोक सकते , लेकिन भारत टॉप वन देशों की लिस्ट में शामिल हो जायेगा क्योंकि टॉप सेकंड में जाने के लिए तो केवल 2 लाख और केस चाहिए जो 3 लाख के बाद दूसरे नम्बर पर भारत आ जायेगा जो बहुत नार्मल बात है भारत के लिए ।
सरकार अगर ऑफिस , कंपनियां खोलती है तो कोरोना और फैलेगा। लोगो की मजबूरी है और बड़े कम्पनियों को जरूरत है लोगो की। वह लोगो की फिक्र करेगी या अपने व्यापार से मतलब रखेगी।जनता परिवार के खर्च और मजबूरी के वश जॉब करेगी भले ही उनको अपना जीवन खतरे में डालना पड़े । स्कूल जैसे ही खुलेंगे वैसे कोरोना फैलेगा फिर बन्द हो जाएँगे । सरकार इसलिए खोलेगी क्योंकि काफी महीनों से बन्द है जबकि बच्चों की जिंदगी से बढ़कर कोई चीज नही है ।जब जिंदगी रहेगी तभी तो किसी चीज का महत्व है यानी जान है तो जहान है।
राज्य के पास बजट रहेगा नही , आगे आने वाले साल के लिए भी उनके पास कोई फण्ड नही रहेगा । अगर दिसंबर तक किसी प्रकार का वैक्सीन नही बनेगा और ये वाइरस ऐसे ही रहेगा तो अगले साल 2021 से जिंदगी बर्बाद हो जानी शुरू हो जाएगी ।
बड़े शहर तो बर्बादी की कगार पर रहेगे । देश की अर्थव्यवस्था बिल्कुल बर्बाद हो जाएगी ।
भारतीय शासन व्यवस्था की इस तिकड़ी भी इस स्थिति को समझ नही पा रही। जैसे असहाय हो कह रही जो वह कुछ नही कर सकती जिसको जो करना वह करे ।
सवाल यह है कि जब 500 केस थे तो खतरा था लोगो को गाँव-गाँव भेजने का, लेकिन अब जब डेढ लाख के ऊपर केस हो गए है तो क्या अब वायरस नही फैलेगा?
जबकि 500 केस जब थे तब सभी राज्य सरकार को आदेश होता कि अब जो भी गाँव आएगा वह कोरन्टीन रहेगा चाहे जो भी हो जैसे अब हो रहा है वैसे तब भी होता ।
लॉकडाउन के पूर्व लगभग 10 दिन का समय दे देते ।उसके बाद लॉकडाउन किया जाता तो ज्यादतर मजबूर वर्ग अपने-अपने गाँव जा चुका होता। ट्रेन में सामान्य दिन में 1 करोड़ लोग ट्रेवल करते है ।
10 दिन में 10 करोड़ हो जाते बसों से भी लगभग पूरे देश मे 40 से 50 करोड़ लोग जा सकते थे ।
जबकि कुल 5 करोड़ लोगों ने ही गाँव-गाँव जाना था तो समस्या ही नही थी लेकिन ऐसा हुआ नही ।
सोचो कि एक परिवार एक साथ रह रहा है तो वह जब बस में अलग-अलग भी बैठेंगे तो क्या वह घर जाएंगे तो अलग -अलग रहेगे? जवाब नहीं। मतलब इस तरह अलग-अलग बैठाना भी इतना कुछ खास नही है, बल्कि ये तो फालतू का फार्मूला है बल्कि गाड़ियां ओर ट्रेन वाइरल फ्री होनी चाहिए थी तो यात्रा सुरक्षित होती।
जिस तरह से प्रवासी मजदूरों का घर वापसी का जो सफर रहा उससे अब तो शहर-शहर कोरोना फैल गया है अब ऐसे में कैसे क्या होगा, अब तो एक जगह लॉक करो तो दूसरी जगह निकल रहा है । कितने जगह स्टॉप करेगा कोई ।
कुल मिलाकर अभी भी सरकार ने कुछ बड़ा कदम नही लिया तो सरकार के लिए मुश्किल होने वाली है।
अगर हम देश के विभिन्न प्रदेशों की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर अपने मध्यप्रदेश की बात करे तो यहां भी हालात सुधरने के बजाय बिगड़े ही हैं।
अगर हम इंदौर की ही बात करें तो कोरोना संक्रमण को छोड़कर चाहे वह नगर में हो या रिंग रोड ओर बायपास से गुजरने वाले नागरिक हो या मजबूर प्रवासी मजदूर की जो सेवा यहां के समाजसेवियो, स्वयंसेवी संस्थाओं ने की वह जरूर तरीफेकाबिल रही है। जिन प्रदेशो से ये प्रवासी हजारों मील दूर अपने घर लौटने के लिए पैदल निकले तो उनके राज्य सीमा तक उन्हें, पानी, भोजन के लिए तरसना पड़ा। तपती दोपहरी में पैरों में छाले लिए इन बेसहारा लोगो को भोजन -पानी के साथ, दवा, चप्पल व छाते तक यहां के नरो ने उन्हें नारायण समझ सेवा की। और यह सेवा अपने दिलो में लेकर कदमो के साथ यहां से लेकर गए और छोड़ गए दुआओ के ढेर।
दूसरी तरफ प्रशासन की सख्ती ने नागरिकों के साथ इस तरह व्यवहार किया जैसे वे बलवा करने वाले या दंगाई हो।
प्रशासन ने जो पास बांटे उसमें जरूरत से ज्यादा अपात्रों के पास भी पहुंच गए। यानी नकली पास भी खूब बटे। तीसरे लॉकडाउन में कलेक्टर को समझ आया कि अब सब्जी बेचना चाहिए। और वह किराना व्यापारी के साथ सब्जी विक्रेता भी बन गया। गांवों से किसान अपनी सब्जी खराब ना हो उसे लेकर शहर की तरफ आये तो नगरीय सीमा में उनकी सब्जी जब्त कर ली जाती और चिड़ियाघर पहुंचा दी जाती। अखबारों में एक फोटो देखा कि जानवर भी इतनी सब्जी देख अघा गए। एक चित्र प्रकाशित हुआ था जिसमे कई सारे तरबूज को पैरों तले रौंदे एक हाथी खड़ा था। यह स्थिति थी और नगर में नागरिक तरबूज खाने को तरस गए। यहां यह बात उजागर हुई कि नंगर में प्रवेश स्थलों पर जब बैरिकेट लगा रखे थे पुलिस थी तो फिर फल व सब्जी के वाहन प्रवेश कैसे कर जाते थे। इन वाहनों को चिड़ियाघर में खाली करने के पीछे भी गणित काम कर रहा था। समझ गए होंगे आप। अच्छा होता सब्जी फल लेकर कुछ दाम किसान को चुका देते।
कुल मिलाकर तिगड़ी की तीसरी कड़ी की यहां चली। एरोड्रम रोड पर तो दोबारा एक शराब दुकान में चोरी की खबर भी थी और उसी एरिया में कुछ खाकी वर्दीधारी मजलिस के साथ शराब गटकते भी धराये।लालबाग के पास टीन शेड की दुकान के पीछे वाले हिस्से से जमीन खोद कर शराब की आपूर्ति तक कि खबर थी। सब कुछ बंद था पर आश्चर्य शराब भी खूब बिकी। अभी भी सब्जियों में छिपकर बिक रही है।
कुल मिलाकर कोरोना वायरस ने अपने होने का प्रमाण दिया तो इंसान ने भी अपने को पीछे नही रखा और जरूरी सामान की पूर्ति की आड़ में हर इंसान ने हर इंसान को लूटने में भी कोई कसर ना छोड़ी। नगर निगम इंदौर के कर्ताधर्ता भी अपने कारनामे से बाज नही आये।
जहां तिगड़ी की तीसरी कड़ी अब सोच में है कि इतनी तरकीबें ओर तरह-तरह के प्रयोग कर लिए लेकिन कोरोना संक्रमण तो कम होने का नाम ही नही ले रहा बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। अब ऐसे हालात मे 31 मई के बाद भी क्या लॉकडाउन किसी नए कलेवर के साथ पेश करना होगा। उधर लंबे लॉकडाउन और नवतपा की तपन से बेहाल नागरिक भी अब घरों से निकलने को बेताब हैं।
अब तो शायद यही हो सकता है कि जान तुम्हारी जहान भी तुम्हारा। नियम पालन करो नही तो मरना भी तुम्हे ही है और जीना भी तुम्हे है। अब तो हमे भी हमारी सुध लेना है तुम्हारी सुध लेते-लेते तो हम खुद बेसुध हो गए हैं।
पाठक लेखन
निशिकांत मंडलोई इंदौर