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यूसुफ से दिलीप कुमार तक का सफर थमा, अलविदा कह गए ट्रेजडी किंग
Report By: पाठक लेखन 07, Jul 2021 2 years ago

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    ट्रेजडी किंग का बुधवार 7 जुलाई को 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। इसी के साथ भारतीय सिनेमा से अभिनय का नायाब हीरा हमेशा के लिए जुदा हो गया। दिलीप कुमार प्रतिष्ठित फ़िल्म निर्माण संस्था बाम्बे टाकीज की उपज थे। 

    1943 में बाम्बे टाकीज की संचालिका देविका रानी से मुलाकात के दौरान यूसुफ ने उनसे लेखक के रूप में काम पर रखने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने उनके चेहरे का आकलन कर उन्हें एक हजार रुपए प्रतिमाह पर बतौर अभिनेता के नियुक्त कर उन्हें काम और नाम दिया। यहीं वे यूसुफ सरवर खान से दिलीप कुमार बने और अभिनय का ककहरा सीखा। दिलीप कुमार ने अपने अभिनय के माध्यम से अपनी छवि का सदैव ख्याल रखा और यही कारण रहा कि, उनका अभिनय स्तर कभी ढलान पर नहीं आया। उनके रहते कई स्टार, सुपर स्टार, मेगा स्टार आए और चले गए लेकिन दिलीप कुमार हमेशा पारसमणि की तरह बने रहे। भारतीय उपमहाद्वीप के करोड़ों लोग  पर्दे पर उनकी चमत्कारी अभिनय कला को महसूस कर चुके है। सभ्य, सुसंस्कृत, कुलीन इस अभिनेता ने रंगहीन से रंगीन सिनेमा के पर्दे पर अपने आप को कई रूपों में प्रस्तुत किया।

आत्मनिर्भरता की मिसाल

    दिलीप साहब की गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती थी लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला वे अपने आप में स्वनिर्मित इंसान (आत्मनिर्भर) की जीती जागती मिसाल थे। अपने फिल्मी जीवन में उन्होंने असफल प्रेमी के रूप में विशेष ख्याति पाई लेकिन यह भी सिद्ध किया कि, हास्य किरदार के मामले में भी वे किसी से कम नहीं थे। वे ट्रेजेडी किंग और आल राउंडर भी कहलाए। ट्रेजेडी फ़िल्म करते हुए दिलीप कुमार मनोरोगी हो गए। लन्दन के एक मनोचिकित्सक ने उन्हें हास्य भूमिका करने की सलाह दी। आजाद, कोहिनूर, लीडर, गोपी फिल्में इसी का प्रमाण हैं।

अभिनय का मदरसा

    अभिनय के प्रति उनका रवैया सदा पूर्णतावादी रहा। युवावस्था में वे फिल्मों का प्राणाधार होते थे तो प्रौढ़ भूमिकाओं में भी उन्होंने नवीनता दी। उन्होंने पूर्णता और श्रेष्ठता के नए मानदंड स्थापित किए। उनके अभिनय में सौंदर्यशास्रीय आनंद था। दिलीप कुमार को अभिनय का मदरसा भी कहा गया। वे अभिनय के हर शिक्षार्थी के लिए प्रेरणा और आदर्श थे। 

राष्ट्र के प्रति समर्पित 

    दिलीप कुमार ने अपने सशक्त अभिनय द्वारा राष्ट्र की जो सेवा की उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में "पद्म भूषण" से भी नवाजा। 1995 में फिल्मों का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान "दादा साहेब फाल्के अवार्ड" भी दिया गया। हमारे देश ही ने नहीं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी उनकी अभिनय योग्यता का लोहा माना और पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "निशान-ए-इम्तियाज" से 1997 में नवाजा। 1953 में  फ़िल्म फेयर पुरस्कार के श्री गणेश के साथ दिलीप कुमार को फ़िल्म "दाग" के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी मिला। उन्होंने सबसे अधिक आठ बार फ़िल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का  पुरस्कार पाने की योग्यता भी हासिल की, जो एक मिसाल है। 1993 में राजकपूर की स्मृति में लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड के साथ ही  एनटी रामाराव व रामनाथ गोयनका अवार्ड भी उन्हें प्राप्त हुआ।

    दिलीप कुमार ने अभिनय के साथ ही देश के पहले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव प्रचार भी किया।  वे कांग्रेस की ओर से राज्य सभा सदस्य भी रहे तथा उन्होंने फिल्म उद्योग की समस्याओं के निराकरण के लिए भी सक्रियता दिखाई। 

कभी काम कभी विश्राम

    अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों  की वजह से वैवाहिक जीवन की शुरुआत दिलीप कुमार ने लंबे इंतजार के बाद की। उम्र के 44 वें वर्ष में 11 अक्टूबर 1966 को उन्होंने अपनी उम्र से कहीं कम उम्र की व  गुजरे जमाने की अभिनेत्री नसीम बानो की बेटी सायरा बानो से की। विवाह करने तक दिलीप साब वे सब फिल्में कर चुके थे जिनके लिए उन्हें याद किया जाता है। बाद में उन्होंने कभी काम और कभी विश्राम की कार्यशैली अपनाई। अपनी लोकप्रियता और प्रतिष्ठा को कभी उन्होंने पैसा कमाने का जरिया नहीं बनने दिया।

लेखक - निशिकांत मंडलोई

सत्यदेव नगर, इंदौर। 


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