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उसको छोटा कहकर मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा...।
Report By: पाठक लेखन 30, May 2021 3 years ago

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      प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी का एक चर्चित शेर है-'अपने हर लफ्ज़ का खुद आईना हो जाऊँगा, उसको छोटा कहकर मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा।' यह शेर अपने आप मे बेहद नैतिक अर्थ लिए हुए है। इसके उलट तात्कालिक समय में अनेकों वाद-विवादों में अपने प्रतिस्पर्धी को छोटा बताकर खुद को बड़ा बताने की कोशिश करने का जतन बढ़ गया है। ऐसा करते हुए तमाम नैतिकताओ और मर्यादाओं की सीमा के पार चले जाने की स्थिति अक्सर निर्मित हो जाती है।
      ताजातरीन घटनाक्रम में एलोपैथी ओर आयुर्वेद के मध्य स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने का विवाद जारी है। इस विवाद में दोनों तरफ से कीचड़ उछाल प्रतियोगिता चल रहीं है। अपनी कमीज को अधिक उजली ओर श्वेत बताने के लिए हददर्जे की निकृष्टता की जा रही है। वह भी ऐसे समय जब महामारी के कहर से जनजीवन मानसिक भय सन्ताप ओर पीड़ा की स्थिति से गुजर रहा है। बाबा रामदेव का कहना है कि एलोपैथी की तुलना में आयुर्वेद ने कोरोना के इलाज में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बाबा रामदेव ने एलोपैथी की दवाइयों के साइड इफेक्ट बताए उन्होंने वेक्सीन की गुणवत्ता और क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े किए। जवाब में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बाबा रामदेव के विरुध्द एफआईआर करने की मांग की है। इस पूरे एपिसोड में स्वयं को श्रेष्ठ जतलाने के लिए अपने प्रतिस्पर्धी को छोटा बतलाने की कोशिश हो रहीं है। आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला अभी जारी है। 
      दरअसल देश मे जारी तमाम बहसों, विवादों में नैतिकता की हदो को पार कर अपने प्रतिस्पर्धी को पूरी तरह छोटा और निम्न साबित करने की कोशिश की जाती रही है। वसीम बरेलवी के शेर की पहली पंक्ति 'अपने लफ्ज़ो का खुद आईना हो जाऊंगा।' याने स्वयं के कार्यो एवं उपलब्धियों का प्रदर्शन कर ही अपनी श्रेष्ठता योग्यता और गुणवत्ता साबित करने की बजाए अपने प्रतिस्पर्धी की आलोचना करने लगते है। इस क्रम में प्रायः इतने आगे निकल जाते है कि नैतिकता के दायरे को भी पार कर जाते है। स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की इस दौड़ में अपने प्रतिस्पर्धी की आलोचना का सहारा लेने की यह प्रवृत्ति आम हो गयी है। याने अपनी लकीर बड़ी करने के बजाए प्रतिस्पर्धी की मिटाकर छोटी करने का प्रयास किया जा रहा है। यह स्थिति आमतौर हर मसले में दिखाई देने लगी है। इस प्रकार की अप्रासंगिक बहसों को जन्म देने का काम सबसे अधिक टीवी चैनलों के माध्यम से किया गया। इन टीवी चैनलों के स्टूडियो में देश के जरूरी मुद्दों पर जारी बहस के विषयों को इतना विवादित ओर निम्नस्तरीय बना दिया जाने लगा कि ऐसी बहसों से उबाई आना शुरू हो गयी। देश के जरूरी मुद्दे राजनैतिक दलों की बहस में पीछे छूट जाने लगे। आरोप-प्रत्यारोप का नवीन सिलसिला आरम्भ हो जाता है। मसलन भाजपा के नेता अपने 7 साल के शासन की उपलब्धियां बताने के बजाय कांग्रेस या विपक्षी नेताओं की निजी आलोचना में अधिक वक्त  बरबाद करते है। यानी उनसे पूछा गया सवाल तो मोदी सरकार की 7 वर्ष की उपलब्धि के बारे में था। किन्तु नेताजी ने अपनी उपलब्धि कम कांग्रेस और विपक्षी सरकारों के समय की आलोचनाओं पर अधिक फोकस किया। इस मौके पर सोनिया, राहुल, ममता, अखिलेश, तेजस्वी, उध्दव ठाकरे की बुराई करने में अधिक रुचि दिखलाई। यही हाल विपक्षी नेता ओर प्रवक्ताओं का है। जो संवेदनशील विषयों पर भी निजी आलोचनाओं का सहारा लेते है। विपक्षी राजनैतिक दलों के नेताओं के टारगेट पर नीति नहीं, नेता होते है। सोनियां हो या ममता, अखिलेश हो या मायावती, तेजस्वी या फिर उध्दव सभी के निशाने पर प्रधानमंत्री होते है। यही हाल योग गुरु बाबा रामदेव और इंडियन मेडिकल ऐसोशियेशन के विवाद में दिखाई दे रहा है।
      ऐलोपैथी ओर आयुर्वेद दोनों चिकित्सा की श्रेष्ठ प्रणालीया है। जिनका उदेश्य मानव को स्वस्थ्य ओर निरोगी रखना है। दोनों ही चिकित्सा प्रणालियों की अपनी-अपनी उपलब्धियां है, उनका गौरवशाली इतिहास है, महामारी के दौरान दोनों ही नहीं अपितु दुनियां में व्याप्त चिकित्सा की तमाम प्रणालियों ने मानव स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कार्य किया है।
      योग गुरू बाबा रामदेव का ऐलोपैथी की दवाइयों पर प्रश्न खड़े करना, वेक्सीन की गुणवत्ता पर प्रश्न खड़े करने का अभी उचित समय नही कहा जा सकता है। राष्ट्र जब गम्भीर महामारी से जूझ रहा है, तब उक्त बयानों के मायने बदल जाते है। उक्त विवाद में आईएमए के अध्यक्ष जानरोज जयलाल ने बाबा रामदेव को फार्मा इंडस्ट्री का बड़ा कारपोरेट खिलाड़ी बताते हुए कहा कि, वह ऐलोपैथी पर इसलिये सवाल उठा रहे है कि हालात का फायदा उठाए ओर भय का माहौल बनाकर अपनी अवैध ओर बिना मंजूरी की तथाकथिक दवाएं बेचकर पैसा कमा सके।
      कुलमिलाकर दोनों ही पक्ष अपने लफ्ज़ो का आईना बनने की बजाए दूसरे पक्ष को छोटा करने का प्रयास कर रहे है। समय गम्भीर है,इन बहसों का कैसा असर जनता पर होगा कहा नही जा सकता है। आईएमए एवं बाबा रामदेव को अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करने का वक्त है। आयुर्वेद और ऐलोपैथी की श्रेष्ठता जनसामान्य के स्वास्थ्य की बेहतरी से जुड़ी है। यह सच्चाई है कि, आर्थिक लाभ कमाने की अंतहीन दौड़ ने दोनों ही पैथी को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की पहुच से दूर कर दिया है। इन दोनों ही पध्दतियों के विद्वानों को माहमारी को पराजित करने के अभियान में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करने की जरूरत है। स्वास्थ्य की तमाम पध्दतियों को व्यर्थ की बहसों में पढ़ने के बजाए आम जनता के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। अपने स्वास्थ्य की चिंता में डूबे आमजन को यह सुविधा कम खर्चे पर कैसे उपलब्ध हो सकें, यह प्रयास होने चाहिए। कोरोना संक्रमण से ग्रसित परिवारों ने अपने इलाज में अपनी जमा पूंजी दांव पर लगा दी है। यह समय आरोप प्रत्यारोप का नहीं अपने कार्यो से अपनी श्रेष्ठता साबित करने का है। 

लेखक- नरेंद्र तिवारी
सेंधवा जिला बड़वानी मप्र


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