देश में मुआ कोरोना का रोना तो सभी रो रहे हैं ऊपर से इसका एक ही इलाज लॉकडाउन और वह भी कब तक कुछ कह नहीं सकते। पहले तब्लीकी जमात का रोना और उसके बाद अब तलब लगी जमात का दुख। सरकार करे तो आखिर क्या करे? तब्लीकी जमात के सरगना को सरकार सामने आने का कहते-कहते थक गई तो, तलब लगी जमात के कई सारे मुखिया खुद होकर सामने आ गए। तलब लगी जमात ने तो 8 p m ( शराब ब्रांड और मुखिया का देश को संबोधित करने का प्राइम टाइम)के साथ देश के ब्रांड नेता प्रधानमंत्री को ही मय चित्र के सामने ला दिया। सरकार भी क्या करती देश की जनता को आर्थिक पैकेज का नायाब तोहफा देने के साथ आत्मनिर्भर बनने का पाठ भी दे बैठी।सोचा बात तो सही है, स्थिति वाकई गंभीर है शराब नहीं बिकी तो तलबगार तो मरेंगे ही साथ में सरकार भी मर जाएगी। तो तलब लगी जमात का स्वयं सरकार का एक टंटा तो दूर हुआ। तलब लगी जमात ने अपनी जीत पर तो यह तक कह दिया कि देखा शराब अंदर गई और एक बड़ा पैकेज बाहर आ गया। सरकार आत्मनिर्भर बनने के लिए लाख स्वदेशी को बल दे, लेकिन विदेशी शराब का बैनर कैसे रोकती है? यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन एक दूसरा तबका है जो ना देशी ना विदेशी का तलबगार है वह दो जून की रोटी के लिए तरस रहा है। इन किस्मत के मारो को घरों में कैद रहना पड़ रहा है और एक तबका प्रवासियों का सड़को पर भरी गर्मी में घर तक का लंबा सफर पैदल तय करने को मजबूर है। पर सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं। सरकार को तो बस अपनी ही पड़ी है। खैर जो भी हो लेकिन तलबगारों की तो चांदी है ऐसे में तलबगारों को बुरा कहना बेतलबगारो की मजबूरी है। लेकिन तलबगारों के बारे में एक बार फिर विचार करें, सरकार की तरह सोचें।
शराब पीने वालों की बुराई या खिंचाई ना करें और ना ही उनका मज़ाक उड़ाएँ कारण, एक बोतल के पीछे, शासन का राजस्व, सोडा, कोल्ड ड्रिंक, बर्फ उद्योग, पानी बोतल उद्योग, फ़ूड इंडस्ट्री, पोल्ट्री उद्योग, नमकीन गृह उद्योग, पापड़ उद्योग, होटल उद्यो, कबाड़ी आदि-इत्यादि ये सब शराबी लोगों पर ही निर्भर हैं।
अगर ज़्यादा पी ली तो दवाई लेनी पड़ती है इससे दवा विक्रेताओं की सेल में योगदान देते हैं, ज़्यादा पीने के बाद झगड़ा होने पर पुलिस कर्मियों, वकीलों और कोर्ट कचहरी में काम करने वालों को भी काम मिलता है।
शराब से जुड़े इस पूरे अर्थ चक्र को समझिए और शराबियों को प्रोत्साहित करिए न कि उनकी आलोचना, जरा सोचिए...