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अनेक मर्ज की एक औषधि गिलोय, आत्म निर्भरता के साथ प्रकृति पर निर्भरता भी जरूरी
Report By: पाठक लेखन 25, May 2020 4 years ago

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शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए वन औषधियां ही एकमात्र सहारा

 कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान हर इंसान को संक्रमण से बचाव के लिए शरीर से शरीर की दूरी, अभिवादन में केवल नमस्ते, नाक व मुह पर मास्क व बार-बार हाथों को सेनेटाइज करने के अलावा और भी बाहरी तौर तरीके अपनाने पर जोर तो दिया गया, लेकिन एक और बात पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर जो जोर दिया गया और वह है अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना। इसके लिए खान पान, शारीरिक कसरत के साथ वन औषधियों(जड़ी बूटियां) का उपयोग करने की बात भी सामने आई।
 मध्यप्रदेश की सरकार ने तो प्रदेश में 100 करोड़ रुपए की एक योजना भी बना ली इसके तहत प्रदेश में प्रति वर्ष 10 हजार हेक्टेयर भूमि में औषधीय खेती का रकबा तक बढ़ाए जाने का प्रावधान रखा है। इसमे नए किसानों को जोड़कर उपज की मार्केटिंग के साथ प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाने की बात कही है। इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी और देश आत्मनिर्भर भी बनेगा। इन दिनों एक बात उभरकर आई कि गिलोय, अश्वगंधा, शतावरी, ग्वारपाठा जैसी औषधियां इंसानों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी कारगर साबित हो रही हैं। वैसे प्रदेश में पहले से ही करीब 20 हजार किसान औषधीय खेती कर रहे हैं। यहां का अश्वगंधा अमेरिका, जर्मनी और अरब देशों में निर्यात होता है।

गिलोय बहुत कारगर
औषधी के रूप में गिलोय एक चिरपरिचित नाम है। इसका उपयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही शरीर की अनेक बीमारियों को भी ठीक करता है। यह हमें तय कर लेना है कि अन्य संक्रामक बीमारियों की तरह ही कोरोना वायरस का संक्रमण भी आसानी से समाप्त होने वाला नही है । कोरोना से निबटने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने की खोज में लगे हैं। इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह व  योग गुरु बाबा रामदेव के बीच भी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपायों पर चर्चा हुई है उससे पहले आज हम  यह जान लेते हैं कि गिलोय मनुष्य के लिए कितनी उपयोगी है इसके बारे में आपको बताते हैं। 

गरीब के घर की डॉक्टर गिलोय
गिलोय बेल गरीब के घर की डॉक्टर है जो 70 रोगों को जड़ से मिटाती है, ये आसानी से गाँव तथा शहरी क्षेत्र में मिल जाती है।
गिलोय एक प्रकार की लता/बेल है, जिसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते है। यह इतनी अधिक गुणकारी होती है, कि इसका नाम अमृता रखा गया है। आयुर्वेद में गिलोय को बुखार की एक महान औषधि के रूप में माना गया है। गिलोय का रस पीने से शरीर में पाए जाने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ दूर होने लगती हैं। गिलोय की पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन तथा फास्फोरस पाए जाते हैं। यह वात, कफ और पित्त नाशक होती है।  इसमें विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक तथा एंटीवायरल तत्व पाए जाते है जिनसे शारीरिक स्वास्थ्य को लाभ पहुँचता है। यह गरीब के घर की डॉक्टर है क्योंकि यह गाँवो में सहजता से मिल जाती है। गिलोय में प्राकृतिक रूप से शरीर के दोषों को संतुलित करने की क्षमता पाई जाती है।

शीघ्र फलती फूलती है
गिलोय एक बहुत ही महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। गिलोय बहुत शीघ्रता से फलने फूलने वाली बेल होती है। गिलोय की टहनियों को भी औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गिलोय की बेल जीवन शक्ति से भरपूर होती है, क्योंकि इस बेल का यदि एक छोटा-सा टुकडा भी जमीन में डाल दिया गया तो वहाँ पर एक नया पौधा बन जाता है। गिलोय की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसमें गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा अल्कोहल ग्लिस्टेराल, बर्बेरिन एल्केलाइड, अनेक प्रकार की वसा अम्ल एवं उड़नशील तेल पाये जाते हैं। इसका तना लता या बेल से अलग होकर करीब 6माह से 8 माह तक जीवित रहता है। पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस और तने में स्टार्च भी मिलता है। कई प्रकार के परीक्षणों से ज्ञात हुआ की वायरस पर गिलोय का प्राणघातक असर होता है। इसमें सोडियम सेलिसिलेट होने के कारण से अधिक मात्रा में दर्द निवारक गुण पाये जाते हैं। यह क्षय रोग के जीवाणुओं की वृद्धि को रोकती है। यह इन्सुलिन की उत्पत्ति को बढ़ाकर ग्लूकोज का पाचन करना तथा रोग के संक्रमणों को रोकने का कार्य करती है।

गिलोय से  शारीरिक फायदे 
गिलोय में हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गुण पाए जाते है। गिलोय में एंटीऑक्सीडंट के विभिन्न गुण पाए जाते हैं, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है, तथा भिन्न प्रकार की खतरनाक बीमारियाँ दूर रखने में सहायता मिलती है। यह लीवर तथा किडनी के रासायनिक विषैले पदार्थों को बाहर निकालने तथा शरीर में होनेवाली बीमारियों के कीटाणुओं से लड़कर लीवर तथा मूत्र संक्रमण जैसी समस्याओं से हमारे शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है।

ज्वर के लिए उत्तम औषधी
यह हमारे शरीर में होने वाली जानलेवा बीमारियों के लक्षणों को उत्पन्न होने से रोकने में बहुत ही सहायक होता है।  रक्त के प्लेटलेट्स की मात्रा को बढ़ाता है जो कि किसी भी प्रकार के ज्वर से लड़ने में उपयोगी साबित होता है। डेंगु जैसे ज्वर में भी गिलोय का रस बहुत ही उपयोगी साबित होता है। यदि मलेरिया के इलाज के लिए गिलोय के रस तथा शहद को बराबर मात्रा में मरीज को दिया जाए तो मलेरिया का इलाज होने में काफी मदद मिलती है।

पाचन क्रिया दुरुस्त करता
हमारे पाचनतंत्र को सुनियमित बनाने के लिए यदि एक ग्राम गिलोय के पावडर को थोडे से आंवला पावडर के साथ नियमित रूप से लिया जाए तो काफी फायदा होता है।

बवासीर में कारगर
बवासीर से पीडित मरीज को यदि थोडा सा गिलोय का रस छांछ के साथ मिलाकर देने से मरीज की तकलीफ कम होने लगती है।

डायबिटीज का उपचार
अगर आपके शरीर में रक्त में पाए जाने वाली शुगर की मात्रा अधिक है तो गिलोय के रस को नियमित रूप से पीने से यह मात्रा भी कम होने लगती है।

उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण
गिलोय हमारे शरीर के रक्तचाप को नियमित करता है। इसके साथ ही अस्थमा 
के लक्षणों को दूर करने का सबसे आसान उपाय है, गिलोय का प्रयोग करना। जी हाँ अक्सर अस्थमा के मरीजों की चिकित्सा के लिए गिलोय का प्रयोग बडे पैमाने पर किया जाता है, तथा इससे अस्थमा की समस्या से छुटकारा भी मिलने लगता है।

आंखों की रोशनी बढ़ाए
यह हमारी आंखों की दृष्टी को बढाता है, जिसकी वजह से हमे बिना चश्मा पहने भी बेहतर रूप से दिखने लगता है। यदि गिलोय के कुछ पत्तों को पानी में उबालकर यह पानी ठंडा होने पर आंखों की पलकों पर नियमित रूप से लगाने से काफी फायदा होता है।

सौंदर्यता को बढ़ाता
गिलोय का उपयोग करने से हमारे चेहरे पर से काले धब्बे, कील मुहांसे तथा लकीरें कम होने लगती हैं। चेहरे पर से झुर्रियाँ भी कम होने में काफी सहायता मिलती है। यह हमारी त्वचा को युवा बनाए रखने में मदद करता है। गिलोय से हमारी त्वचा का स्वास्थ्य व सौंदर्य बना रहता है। तथा उस में एक प्रकार की चमक आने लगती है।

रक्त भी शुद्ध करता
कई लोगों में खून की मात्रा की कमी पाई जाती है। जिसकी वजह से उन्हें शारीरिक कमजोरी महसूस होने लगती है। गिलोय का नियमित इस्तेमाल करने से शरीर में खून की मात्रा बढने लगती है, तथा  खून को भी साफ करने में बहुत ही लाभदायक है। इसके अलावा गिलोय और बबूल की फली समान मात्रा में मिलाकर पीस लें और सुबह-शाम नियमित रूप से इससे मंजन करें इससे आराम मिलेगा।

खूनी पित्त में 
10-10 ग्राम मुलेठी, गिलोय, और मुनक्का को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को 1 कप रोजाना 2-3 बार पीने से रक्तपित के रोग में लाभ मिलता है।

खुजली दूर करे
हल्दी को गिलोय के पत्तों के रस के साथ पीसकर खुजली वाले अंगों पर लगाने और 3 चम्मच गिलोय का रस और 1 चम्मच शहद को मिलाकर सुबह-शाम पीने से खुजली पूरी तरह से खत्म हो जाती है।

मोटापा रोके
नागरमोथा, हरड और गिलोय को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 1-1 चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से मोटापे के रोग में लाभ मिलता है। हरड़, बहेड़ा, गिलोय और आंवले के काढ़े में शुद्ध शिलाजीत पकाकर खाने से मोटापा वृद्धि रुक जाती है। 3 ग्राम गिलोय और 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता जाता है।

हिचकी रोके
सोंठ का चूर्ण और गिलोय का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर सूंघने से हिचकी आना बंद हो जाती है।
इसके साथ ही सोंठ, धनियां, गिलोय, चिरायता तथा मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोजाना दिन में 3 बार 1-1 चम्मच की मात्रा में लेने से हर प्रकार के बुखार में आराम मिलता है

कान का मैल साफ करे
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके कान में 2-2 बूंद दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है और कान साफ हो जाता है।
 गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।

संग्रहणी (पेचिश) में
अती, सोंठ, मोथा और गिलोय को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20-30 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से मन्दाग्नि (भूख का कम लगना), लगातार कब्ज की समस्या रहना तथा दस्त के साथ आंव आना आदि प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।
कब्ज  की शिकायत पर गिलोय का चूर्ण 2 चम्मच की मात्रा गुड़ के साथ सेवन करें इससे कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
 इसके रस का सेवन करने से ऐसीडिटी से उत्पन्न अनेक रोग जैसे- पेचिश, पीलिया, मूत्रविकारों (पेशाब से सम्बंधित रोग) तथा नेत्र विकारों (आंखों के रोग) से छुटकारा मिल जाता है। गिलोय, नीम के पत्ते और कड़वे परवल के पत्तों को पीसकर शहद के साथ पीने से अम्लपित्त समाप्त हो जाती है।

खून की कमी (एनीमिया)दूर करे
गिलोय का रस शरीर में पहुंचकर खून को बढ़ाता है और जिसके फलस्वरूप शरीर में खून की कमी (एनीमिया) दूर हो जाती है।
इसके रस का सेवन करने से हृदय की निर्बलता (दिल की कमजोरी) दूर होती है। इस तरह हृदय (दिल) को शक्ति मिलने से विभिन्न प्रकार के हृदय संबन्धी रोग ठीक हो जाते हैं। गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर इसमें से 3 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी से सेवन से हृदय के दर्द में लाभ मिलता है।

बवासीर, कुष्ठ और पीलिया ठीक
7 से 14 मिलीलीटर गिलोय के तने का ताजा रस शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बवासीर, कोढ़ और पीलिया का रोग ठीक हो जाता है।

बवासीर  में लाभकारी
मट्ठा (छाछ, तक्र) के साथ गिलोय का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और शाम लेने से बवासीर में लाभ मिलता है। 20 ग्राम हरड़, गिलोय, धनिया को लेकर मिला लें तथा इसे 5 किलोग्राम पानी में पकाएं जब इसका चौथाई भाग बाकी रह तब इसमें गुड़ डालकर मिला दें और फिर इसे सुबह-शाम सेवन करें इससे सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है। इसके साथ ही इसका रस वृक्कों (गुर्दे) की क्रिया को तेज करके पेशाब की मात्रा को बढ़ाकर इसकी रुकावट को दूर करता है। वात विकृति से उत्पन्न मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) रोग के अलावा इसके सेवन से रक्तप्रदर में बहुत लाभ मिलता है।

त्वचा को निखारे
 गिलोय की बेल पर लगे फलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे के मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है। सफेद दाग के रोग में 10 से 20 मिलीलीटर गिलोय के रस को रोजाना 2-3 बार कुछ महीनों तक सफेद दाग के स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है।

पेट के रोग में आराम
18 ग्राम ताजी गिलोय, 2 ग्राम अजमोद और छोटी पीपल, 2 नीम की सींकों को पीसकर 250 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में फूलने के लिए रात के समय रख दें तथा सुबह उसे छानकर रोगी को रोजाना 15 से 30 दिन तक पिलाने से पेट के सभी रोगों में आराम मिलता है।

गठिया में 
गिलोय के 2-4 ग्राम का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से गठिया रोग ठीक हो जाता है। वातज्वर में  गम्भारी, बिल्व, अरणी, श्योनाक (सोनापाठा), तथा पाढ़ल इनके जड़ की छाल तथा गिलोय, आंवला, धनियां ये सभी बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें से 20-30 ग्राम काढ़े को दिन में 2 बार सेवन करने से वातज्वर ठीक हो जाता है।
शीतपित्त (खूनी पित्त) में 10 से 20 ग्राम गिलोय के रस में बावची को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को खूनी पित्त के दानों पर लगाने तथा मालिश करने से शीतपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
जीर्णज्वर (पुराने बुखार)   या 6 दिन से भी अधिक समय से चला आ रहा बुखार व न ठीक होने वाले बुखार की अवस्था में उपचार करने के लिए 40 ग्राम गिलोय को अच्छी तरह से पीसकर, मिटटी के बर्तन में 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर रात भर ढककर रख दें और सुबह के समय इसे मसलकर छानकर पी लें। इस रस को रोजाना दिन में 3 बार लगभग 20 ग्राम की मात्रा में पीने से लाभ मिलता है। 20 मिलीलीटर गिलोय के रस में 1 ग्राम पिप्पली तथा 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जीर्णज्वर, कफ, प्लीहारोग (तिल्ली), खांसी और अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

वमन यानी उल्टी में गिलोय का रस और मिश्री को मिलाकर 2-2 चम्मच रोजाना 3 बार पीने से वमन (उल्टी) आना बंद हो जाती है। गिलोय का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
पेचिश (संग्रहणी) में 20 ग्राम पुनर्नवा, कटुकी, गिलोय, नीम की छाल, पटोलपत्र, सोंठ, दारुहल्दी, हरड़ आदि को 320 मिलीलीटर पानी में मिलाकर इसे उबाले जब यह 80 ग्राम बच जाए तो इस काढ़े को 20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेचिश ठीक हो जाती है। 1 लीटर गिलोय रस का, तना 250 ग्राम इसके चूर्ण को 4 लीटर दूध और 1 किलोग्राम भैंस के घी में मिलाकर इसे हल्की आग पर पकाएं जब यह 1 किलोग्राम के बराबर बच जाए तब इसे छान लें। इसमें से 10 ग्राम की मात्रा को 4 गुने गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम पीने से पेचिश रोग ठीक हो जाता है तथा इससे पीलिया एवं हलीमक रोग ठीक हो सकता है।
आंखों की बीमारी में लगभग 11 ग्राम गिलोय के रस में 1-1 ग्राम शहद और सेंधानमक मिलाकर, इसे खूब अच्छी तरह से गर्म करें और फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाने से आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। इसके प्रयोग से पिल्ल, बवासीर, खुजली, लिंगनाश एवं शुक्ल तथा कृष्ण पटल आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं। गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है तथा और भी आंखों से सम्बंधित कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।

क्षय (टी.बी.) भी ठीक
गिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन, इलायची आदि को बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में 1 कप दूध के साथ कुछ हफ्तों तक रोजाना सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है। कालीमिर्च, गिलोय का बारीक चूर्ण, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन और भिलावा समान भाग कूट-पीसकर कपड़े से छान लें। इसमें से 130 मिलीग्राम की मात्रा मक्खन या मलाई में मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से टी.बी. रोग ठीक हो जाता है।
इसके अलावा वातरक्त में गिलोय के 5-10 मिलीमीटर रस अथवा 3-6 ग्राम चूर्ण या 10-20 ग्राम कल्क अथवा 40-60 ग्राम काढ़े को प्रतिदिन निरन्तर कुछ समय तक सेवन करने से रोगी वातरक्त से मुक्त हो जाता है तथा रक्त कैंसर से पीड़ित रोगी को गिलोय के रस में जवाखार मिलाकर सेवन कराने से उसका रक्तकैंसर ठीक हो जाता है। गिलोय लगभग 2 फुट लम्बी तथा एक अंगुली जितनी मोटी, 10 ग्राम गेहूं की हरी पत्तियां लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर पीस लें फिर इसे कपड़े में रखकर निचोड़कर रस निकला लें। इस रस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।

आन्त्रिक (आंतों) के बुखार में 5 ग्राम गिलोय का रस को थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाटने से आन्त्रिक बुखार ठीक हो जाता है। गिलोय का काढ़ा भी शहद के साथ मिलाकर पीना लाभकारी है।
इसके साथ ही अजीर्ण (असाध्य) ज्वर में गिलोय, छोटी पीपल, सोंठ, नागरमोथा तथा चिरायता इन सबको पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से अजीर्णजनित बुखार कम होता है।

पौरुष शक्ति बढ़ाए
गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ खाने से पौरूष शक्ति में वृद्धि होती है।
वात-कफ ज्वर होने के 7 वें दिन की अवस्था में गिलोय, पीपरामूल, सोंठ और इन्द्रजौ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
दमा  की शिकायत में इसकी  जड़ की छाल को पीसकर मट्ठे के साथ लेने से श्वास-रोग ठीक हो जाता है। 6 ग्राम गिलोय का रस, 2 ग्राम इलायची और 1 ग्राम की मात्रा में वंशलोचन शहद में मिलाकर खाने से क्षय और श्वास-रोग ठीक हो जाता है।

मलेरिया बुखार का शर्तिया इलाज
गिलोय 5 अंगुल लम्बा टुकड़ा और 15 कालीमिर्च को मिलाकर कूट कर 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें। जब यह 58 ग्राम बच जाए तो इसका सेवन करें इससे मलेरिया बुखार की अवस्था में लाभ मिलेगा।
बुखार में गिलोय 6 ग्राम, धनिया 6 ग्राम, नीम की छाल 6 ग्राम, पद्याख 6 ग्राम और लाल चंदन 6 ग्राम इन सब को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस बने हुए काढ़े को सुबह और शाम पीते रहने से हर प्रकार का बुखार ठीक हो जाता है।
कफ व खांसी में गिलोय को शहद के साथ चाटने से कफ विकार दूर हो जाता है।
जीभ और मुख का सूखापन होने पर गिलोय (गुरुच) का रस 10 मिलीलीटर से 20 मिलीलीटर की मात्रा शहद के साथ मिलाकर खायें फिर जीरा तथा मिश्री का शर्बत पीयें। इससे गले में जलन के कारण होने वाले मुंह का सूखापन दूर होता है।
जीभ की प्रदाह और सूजन में गिलोय, पीपल, तथा रसौत का काढ़ा बनाकर इससे गरारे करने से जीभ की जलन तथा सूजन दूर हो जाती है।

मुंह  के छालें (मुखपाक) ठीक करे
धमासा, हरड़, जावित्री, दाख, गिलोय, बहेड़ा एवं आंवला इन सब को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। ठण्डा होने पर इसमें शहद मिलाकर पीने से मुखपाक दूर होते हैं।
शारीरिक कमजोरी होने पर 100 ग्राम गिलोय का लई (कल्क), 100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण, दोनों को एक साथ 1 लीटर उबलते पानी में मिलाकर किसी बंद पत्ते में रख दें। 2 घंटे के बाद मसल-छान कर रख लें। इसे 50-100 ग्राम रोजाना 2-3 बार सेवन करने से बुखार से आयी शारीरिक कमजोरी मिट जाती है।

एड्स होने पर
गुरुच (गिलोय) का रस 7 से 10 मिलीलीटर, शहद या कड़वे नीम का रस अथवा दाल चूर्ण या हरिद्रा, खदिर एवं आंवला एक साथ प्रतिदिन 3 बार खाने से एड्स में लाभ होता है। यह उभरते घाव, प्रमेह जनित मूत्रसंस्थान के रोग नाशक एवं जीर्ण पूति केन्द्र जनित विकार नाशक में लाभदायक होता है।
भगन्दर: में गिलोय, सोंठ, पुनर्ववा, बरगद के पत्ते तथा पानी के भीतर की ईट- इन सब को बराबर मात्रा में लें, और पीसकर भगन्दर पर लेप करने से यदि भगन्दर की फुंसी पकी न हो तो वे फुंसी बैठ जाती है। गिलोय, सांठी की जड़, सोंठ, मुलहठी तथा बेरी के कोमल पत्ते इनको महीन पीसकर इसे हल्का गर्म करके भगन्दर पर लेप करें इससे लाभ मिलेगा।

यकृत या जिगर की समस्या पर गिलोय, अतीस, नागरमोथा, छोटी पीपल, सोंठ, चिरायता, कालमेघ, यवाक्षार, हराकसीस शुद्ध और चम्पा की छाल बराबर मात्रा में लेकर इसे कूटकर बारीक पीस लें और कपड़े से छानकर इसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में लेने से जिगर से सम्बंधित अनेक रोग जैसे- प्लीहा, पीलिया रोग, अग्निमान्द्य (अपच), भूख का न लगना, पुराना बुखार, और पानी के परिवर्तन के कारण से होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
अधिक प्यास लगने के मामले में गिलोय का रस 6 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में कई बार लेने से प्यास शांत हो जाती है।
पित्त बढ़ाने पर गिलोय का रस 7 से 10 मिलीलीटर रोज 3 बार शहद में मिलाकर खायें इससे लाभ मिलेगा।

मधुमेह में
40 ग्राम हरी गिलोय का रस, 6 ग्राम पाषाण भेद, और 6 ग्राम शहद को मिलाकर 1 महीने तक पीने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है। या 20-50 मिलीलीटर गिलोय का रस सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी के साथ मधुमेह रोगी को सेवन करायें या रोग को जब-जब प्यास लगे तो इसका सेवन कराएं इससे लाभ मिलेगा। या 15 ग्राम गिलोय का बारीक चूर्ण और 5 ग्राम घी को मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को सेवन कराऐं इससे मधुमेह (शूगर) रोग दूर हो जाता है।

गठिया में 
 गिलोय और सोंठ को एक ही मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने से पुराना गठिया रोग में फायदा मिलता है या गिलोय, हरड़ की छाल, भिलावां, देवदारू, सोंठ और साठी की जड़ इन सब को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें तथा छोटी बोतल में भर लें। इसका आधा चम्मच चूर्ण आधा कप पानी में पकाकर ठण्डा होने पर पी जायें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द ठीक हो जाता है। या घुटने के दर्द दूर करने के गिलोय का रस तथा त्रिफला का रस आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से लाभ मिलता है।
पेट में दर्द  में गिलोय का रस 7 मिलीलीटर से लेकर 10 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।

पीलिया ठीक करे
गिलोय अथवा काली मिर्च अथवा त्रिफला का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम चाटने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। या गिलोय का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है। या गिलोय की लता गले में लपेटने से कामला रोग या पीलिया में लाभ होता है। या गिलोय का रस 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और शाम सेवन करें।
इसके अलावा सूखा रोग (रिकेटस) में हरी गिलोय के रस में बालक का कुर्त्ता रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चा कुछ ही दिनों में सही हो जायेगा।

मानसिक उन्माद (पागलपन) में
गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ पीने से उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है।
शरीर की जलन या हाथ पैरों की जलन में 7 से 10 मिलीलीटर गिलोय के रस को गुग्गुल या कड़वी नीम या हरिद्र, खादिर एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करने से शरीर में होने वाली जलन दूर हो जाती है।
कुष्ठ (कोढ़) होने पर 100 मिलीलीटर बिल्कुल साफ गिलोय का रस और 10 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण 1 लीटर उबलते हुए पानी में मिलाकर किसी बंद बर्तन में 2 घंटे के लिये रखकर छोड़ दें। 2 घंटे के बाद इसे बर्तन में से निकालकर मसलकर छान लें। इसमें से 50 से 100 ग्राम की मात्रा प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से खून साफ होकर कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।

खून में वृद्धि करे
360 मिलीलीटर गिलोय के रस में घी मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से शरीर में खून की वृद्धि होती है। या गिलोय (गुर्च) 24 से 36 मिलीग्राम सुबह-शाम शहद एवं गुड़ के साथ सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।
 मलेरिया के कारण होने वाले सिर के दर्द को ठीक करने के लिए गिलोय का काढ़ा सेवन करें।

ज्यादा पसीना या दुर्गन्ध होने पर 20 से 40 मिलीलीटर गिलोय का शर्बत 4 गुने पानी में मिलाकर सुबह-शाम के समय में पीने से बदबू वाला पसीना निकलना बंद हो जाता है।

शरीर की ताकत में वृद्धि
लगभग 4 साल पुरानी गिलोय जो कि नीम या आम के पेड़ पर अच्छी तरह से पक गई हो। अब इस गिलोय के 4-4 टुकड़े उंगली के जितने कर लें। अब इसको जल में साफ करके कूट लें और फिर इसे स्टील के बर्तन में लगभग 6 घंटे तक भिगोकर रख दें। इसके बाद इसे हाथ से खूब मसलकर मिक्सी में डालकर पीसें और इसे छानकर इसका रस अलग कर लें और इसको धीरे से दूसरे बर्तन में निथार दें और ऐसा करने से बर्तन में नीचे बारीक चूर्ण जम जाएगा फिर इसमें दूसरा जल डालकर छोड़ दें। इसके बाद इस जल को भी ऊपर से निथार लें। ऐसा 2 या 3 बार करने से एक चमकदार सफेद रंग का बारीक पिसा हुआ चूर्ण मिलेगा। इसको सुखाकर कांच बर्तन में भरकर रख लें। इसके बाद लगभग 10 ग्राम की मात्रा में गाय के ताजे दूध के साथ इसमें चीनी डालकर लगभग 1 या 2 ग्राम की मात्रा में गिलोय का रस डाल दें। हल्का बुखार होने पर घी और चीनी के साथ या शहद और पीपल के साथ या गुड़ और काले जीरे के साथ सेवन करने से शरीर में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा शरीर में ताकत की वृद्धि होती है।
गिलोय एक है लेकिन इसके फायदे अनेक हैं। लेकिन अगर आपको इसका इस्तेमाल करना है तो औषधि चिकित्सक या जानकार की सलाह से करें।

  पाठक लेखन 
निशिकांत मंडलोई इंदौर


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