माही की गूंज, थांदला।
अंचल सहित सीमावर्ती राजस्थान, गुजरात के दूरस्थ आदिवासी अंचल की आस्था का केंद्र श्री स्वयंभू माता मंदिर देवीगढ़ छोटा पावागढ़ के मेला प्रांगण में स्थित सदियों पुराना प्राचीन वट वृक्ष गुरुवार सावन पूर्णिमा के दिन सायं 6 बजे धराशाई हो गया।
सदियों से प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले चैत्र पूर्णिमा मेले में आने वाले श्रद्धालुओं व भक्तों के लिए छांव का एकमात्र साधन था। जिस की छांव में बैठकर लोग स्वयंभू माता मेले का दर्शन लाभ लेते थे। सामान्य दिनों में पार्टी करते थे। वृक्ष अंदर से खोखला हो चुका था। करीब 2 वर्षों से इसके संरक्षण का कार्य किया जा रहा था। लेकिन प्रकृति के आगे सभी शून्य है। संयोग से कल जब यह वृक्ष अपनी जड़ों सहित जमीन से अपना अस्तित्व छोड़ रहा था। तो कोई जनहानि नहीं हुई।
अंचल सहीत दूरदराज से मेले में आने वाले व्यापारियों की महत्वपूर्ण यादें वटवृक्ष पेड़ से जुड़ी हुई है l क्योंकि प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले मेले में व्यापारी अपनी दुकान लेकर जाते थे l तो इस पेड़ ने बरसो अपनी छांव में आश्रय प्रदान किया था।
वट वृक्ष को खोखला देखकर गत वर्ष ही विकल्प के तौर पर समीप ही एक नवीन वटवृक्ष का रोपण मंदिर के सेवादार अध्यक्ष बाल कल्याण समिति जिला झाबुआ अशोक अरोरा, सब्बू भूरिया द्वारा किया गया है। जिसकी देखरेख सब्बू भूरिया एवं ग्राम वासियों द्वारा की जा रही है l संभवत: भविष्य में आमजन को अपनी छांव प्रदान करने हेतु विशाल वृक्ष के रूप में स्थापित होगा ।