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पुलिस का खुफिया तंत्र और स्थानीय प्रशासकीय तंत्र पूरी तरह फैल या मामला साठ-गाठ का....?
Report By: इमरान शेख 24, Oct 2024 1 month ago

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मामलाः औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्री से 168 करोड़ की मेफेड्रोन ड्रग जब्त 

क्या अपनी  साख बचाने के लिए  जाच के नाम पर प्रशासन कर  रहा लिपा-पोती...! 

माही की गूंज, मेघनगर।  

    बीते शनिवार को केंद्रीय जांच एजेंसी  डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस की 15 से ज्यादा सदस्यों की एक टीम ने मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र स्थित मेघनगर फार्मकेम फैक्ट्री पर तड़के सुबह 5 बजे छापामार कार्रवाई की थी और प्रतिबंधित ड्रग्स होने के शक के आधार पर सेंपल लेकर जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजे गए। उक्त सैंपलों की जांच में प्रतिबंधित ड्रग्स मैफेड्रॉन की पुष्टि हो गई। उसके बाद फैक्ट्री के डायरेक्टर विजय पिता गोविंदसिंह राठौर सहित तीन अन्य लोगों को नारकोटिक्स ड्रग एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 के प्रावधानों के अंतर्गत हिरासत लिया  गया। जिसके बाद सभी उपकरणों और कच्चे माल को जप्त कर पंचनामा बनाकर फैक्ट्री को सील कर दिया था। जांच एजेंसी ने कारखाने से कुल 112 किलो प्रतिबंधित मैफेड्रॉन ड्रग्स जप्त की थी जिसमें 36 किलोग्राम पावडर के रूप में और 76 किलोग्राम लिक्विड के रुप में जप्त की थी। जिसकी बाजार कीमत लगभग 168 करोड़ रुपए बताई जा रही है।

जांच एजेंसी ने पूरी कार्यवाही से पुलिस व प्रशासन को भी रखा दूर

    नशे के इस अवैध एवं गोरख कारोबार के इनपुट पर कार्यवाही करते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस व प्रशासन के अलावा जिला प्रशासन के भी किसी अधिकारी को सूचना देना या सम्मिलित करना उचित नहीं समझा । ये कहीं न कहीं  इस बात की और भी इशारा करता है की डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू  इंटेलिजेंस के अधिकारियों को स्थानीय तंत्र के अधिकारियों के अलावा जिला प्रशासन के अधिकारियों पर भी भरोसा  नहीं था। या फिर इन्ही के संरक्षण में जिले  में जिस तरह से  अवैध शराब का कारोबार चल रहा है उसी तरह से  ड्रग्स का यह कारोबार भी चल रहा है और यही जाच एवं कार्यवाही करने वाली  इस एजेंसी को भी अवगत हुआ हो इसीलिए इतनी बड़ी कार्यवाही को अंजाम देते हुए स्थानीय प्रशासन व जिला प्रशासन को भनक तक नहीं लगने देना ही कहीं ना कहीं शंका जो जन्म देता है।

जिम्मेदारो की अनदेखीः बाहर इंटरमीडिएट डाय का बोर्ड अंदर मैफेड्रॉन ड्रग्स का निर्माण...?

    प्लॉट नंबर 98 का पंजीयन अजीत सिंह राठौर के नाम है उसने इंटरमीडिएट डाय के लिए भू-खण्ड का आवंटन करवाया था। 2 साल पहले उक्त भू-खण्ड आरोपीत विजय पिता गोविंदसिंह राठौर को बेच दिया था लेकिन लीज  ट्रांसफर प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाई।

   सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आरोपी तभी से उक्त इकाई में मैफेड्रॉन ड्रग्स का निर्माण कर रहा था। इन 2 सालों में ना तो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी ने कभी ये देखना मुनासिब समझा कि, कंसर्न ऑर्डर के अधीन अंदर उसी उत्पाद का निर्माण किया जा रहा है या नहीं, ना ही कभी नमूने लेना उचित समझा। न कभी औद्योगिक केंद्र विकास निगम के निरीक्षण अधिकारी ने ये देखना उचित समझा की जिस उत्पाद हेतु भूमि की लीज आवंटित की गई है उसी का निर्माण हो रहा है या नहीं। या लीज शर्तों का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। न कभी ड्रग इंस्पेक्टर ने इन फार्मा इकाइयों की सुध लेकर जाना कि, इनमें कौनसी औषधि बन रही है। ना कभी पुलिस ने कोई क्रॉस वेरिफिकेशन करना उचित समझा। स्थानीय प्रशासन  में तहसीलदार, एसडीएम ने भी कई बार निरीक्षण कर सिर्फ पंचनामा-पंचनामा का खेल खेला। लेकिन पूर्ण निष्पक्ष , न्यायिक और विधि सम्मत जांच किसी विभाग ने न  पहले की, न ही अब कर रहे हैं। जिसके ऐसे दुष्परिणाम सामने आए है और भविष्य में और भी जानलेवा और गंभीर परिणाम आ सकते हैं।

मुख्य आरोपी को रिमांड, 3 अन्य को भेजा जेल

    अवैध ड्रग्स के इस पूरे मामले में डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस द्वारा नारकोटिक्स ड्रग  एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 की धारा 8/21, 25सी, 27, 29 में एक एफआईआर दर्ज कर विजय पिता गोविंदसिंह राठौर मूल निवास बड़ौदा को बतौर मुख्य आरोपी और तीन अन्य  रतन पिता मेवा नलवाया, वैभव पिता रतन नलवाया दोनों निवासी दाहोद, रमेश पिता दतिया निवासी बेड़ावली को विशेष न्यायाधीश झाबुआ की अदालत में पेश किया गया। जहां जांच एजेंसी ने ड्रग के इस अवैध कारोबार के आगे के तार जोड़ने और बड़े खुलासे करने के लिए मुख्य आरोपी की रिमांड मांगी थी। जिस पर न्यायालय ने मुख्य आरोपी विजय की 18 तारीख तक की रिमांड दी तथा  अन्य आरोपियों को जेल भेज दिया।

ड्रग्स का इतना बड़ा जखीरा पकड़ाने के बाद भी जांच में औपचारिकता  दिखा रहा  प्रशासन 

     पहले भोपाल के ओद्योगिक क्षेत्र  से 1800 करोड़ के ड्रग्स की खेप  और उसके बाद केंद्रीय जांच एजेंसी डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस द्वारा इस आदिवासी जिले के आद्योगिक क्षेत्र मेघनगर  की फैक्ट्री से 168 करोड़ का मैफेड्रॉन ड्रग पकड़े जाने के बाद जिला प्रशासन के निर्देश पर सोमवार को मेघनगर एसडीएम मुकेश सोनी, नायब तहसीलदार मृदुला सचवानी, ड्रग इंस्पेक्टर गीतम पाटोदिया, एसडीओपी पुलिस थांदला रविंद्र सिंह राठी, नगर परिषद मेघनगर सीएमओ राहुल सिंह वर्मा, थाना प्रभारी मेघनगर एल बरखड़े आदि अपने के साथ  मेघनगर की राठौर फार्मा, मेघनगर ऑर्गेनिक, ब्रह्मोस ,विनी सहित 9 केमिकल व अन्य फार्मा कंपनियों की जांच की, मगर मानो ये जांच न होकर सिर्फ औपचारिकताए पूरी करने आए थे । ये पूरा  जांच का घटनाक्रम जांच कम मजाक ज्यादा लग रहा था।

  जहां राठौर फार्मा पर  बाहर एच एसिड बनाने का बोर्ड लगा था। जबकि अंदर वो कोई और प्रोडक्ट का उत्पादन का निर्माण करना सामने आया। वही वो कह  रहे थे, फैक्ट्री के अंदर जिप्सम भी संधारित था। जब माही की गूंज संवाददाता ने उत्पादों के विरोधाभास और जिप्सम संधारण वाली बात एसडीएम के संज्ञान में लाकर अनुमतियां देखने की बात पर  फैक्ट्री संचालक द्वारा सिर्फ पीसीबी का कंसर्न ऑर्डर दिखाया गया। 

 जबकी प्रशासन ने  उत्पाद के ड्रग विभाग का अनुज्ञा पत्र व जिप्सम  संधारण की अनुमति देखना उचित नहीं समझा न ही  जिप्सम के उपयोग, आगमन का स्त्रोत जाना । पूरी टीम की जांच मात्र 3 बिंदु पर केंद्रित रही। पहला उद्योग क्या बनाता है और उसका रॉ मैटीरियल क्या है और प्रदूषित पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट है या नहीं। कुल मिलाकर  जांच करने के तरीके से साफ जाहिर हो रहा था कि, इन उद्योगों को खुला प्रशासकीय सरंक्षण है और प्रशासन को लोगों के स्वास्थ्य व उनकी जान की कोई फिक्र नहीं है। ना ही प्रशासन अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी ईमानदारी से कर रहा है। 

ना उत्पादों के नमूने लिए, ना दस्तावेजों की जांच की, उद्योगों को कार्रवाई से बचाने हेतु जांच के कई मुख्य बिंदु छोड़ दिए 

जिन 9 उद्योगों में एसडीएम के नेतृत्व वाली टीम ने सोमवार को जांच की उसमें जांच के कई बिंदु छोड़ दिए व  दल में कई खामियां भी थी। 

 (1) उद्योगों को मिली भूमि की लीज आवंटन के दस्तावेजों का उत्पादों से क्रॉस वेरिफिकेशन नहीं किया। 

 (2) उद्योगों के कंपनी एक्ट के तहत होने वाले रजिस्ट्रेशन के दस्तावेजों की जांच नहीं की।

 (3) उद्योग संचालकों के कहने मात्र से मान लिया कि, वो उसी उत्पाद का निर्माण कर रहें है, किसी भी उद्योग से उत्पाद के नमूने लेकर प्रयोगशाला में नहीं भेजे, जिससे सत्यता का पता चल सके कि, वास्तव में वे उन्हीं उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं या नहीं। 

(4)  टिम ने जिस उत्पाद का निर्माण इकाई में किया जा रहा है उस उत्पाद से संबंधित विभाग के अनुज्ञा पत्र को देखना तक उचित नहीं समझा।

(5)  राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वाटर, एयर  के अंतर्गत मिले अनापत्ति प्रमाण पत्रों व उनकी निर्धारित तय शर्तों की जांच नहीं की। 

(6) उद्योगों के उत्पादों के स्टॉक रजिस्टर, वितरण रजिस्टर, बिलों, किसी की जांच नहीं की जिस से पता लगाया जा सके कि, उद्योग जो कह रहे हैं वहीं बना और बेच भी रहे हैं या नही।

 (7)  केमिकलों की जांच करने गए दल में कोई रसायन शास्त्री ही नहीं था जो  मौके पर ही केमिकलों के समीकरणों को समझ पाता।

(8) उद्योगों की, जिला उद्योग विभाग द्वारा दिए गए अंडरटेकिन के दस्तावेजों की भी टीम द्वारा जांच नहीं की गई। कुल मिलाकर पूरी जांच किसी औपचारिकता से ज्यादा प्रतीत नहीं हो रही थी।

पॉल्यूशन अधिकारी फोन उठाते नहीं, व्हाट्सएप पर कर देते हैं ब्लॉक, ड्रग इंस्पेक्टर का अजीब  विरोधाभासी जवाब जनता किस से शिकायत करे

    जब उक्त पूरी कार्रवाई के बीच ड्रग इंस्पेक्टर गीतम पाटोदिया से माही की गूंज प्रतिनिधि ने जानना चाहा कि, इस क्षेत्र के ड्रग अधिकारी आप है क्या,,,?

     तो उनका जवाब था हां धार, झाबुआ मेरे ही अधीन आता है। 

    लेकिन जब उनसे पूछा गया कि, आपके द्वारा पिछले कुछ सालों में इन फार्मा उद्योगों का कितनी बार निरीक्षण  किया गया...?

      तो उनका जवाब था ये उद्योग मेरे अधीन नहीं आते है मुझे अधिकार नहीं है ,वो एसडीआई (सीनियर ड्रग इंस्पेक्टर)इंदौर देखते हैं! जब उनका मोबाइल नंबर एक अन्य पत्रकार साथी द्वारा उनसे मांगा गया तो उन्होंने  साफ इनकार कर दिया। 

     वही धार, झाबुआ के पॉल्यूशन अधिकारी मनोज कुमार मंडराई किसी का भी  फोन  नहीं उठाते हैं। व्हाट्सएप पर खबर या कोई सूचना दो तो ब्लॉक कर देते हैं। अब जब ऐसे अधिकारी सरकारी तंत्र में होंगे तो फिर कोई व्यक्ति कैसे किसी अवैध गतिविधि की सूचना सम्बन्धित विभाग के जिम्मेदार तक पहुंचा पाएगा,,,? समझ से परे हैं। क्या ऐसे लोग सिविल सर्विस में रहने लायक है? जो जिस जिम्मेदारी के लिए उन्हें नियुक्त किया गया है उसका निर्वहन ठीक से कर ही नहीं रहे हैं। जहा इतने गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं फिर भी जनता की बात सुनना ही नहीं चाहते। क्या उस ड्रग अधिकारी जिस ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं किया और उसी तरह जिम्मेदार इन समस्त प्रशासकीय अधिकारियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई नहीं होनी चाहिए जो नजीर बने या फिर प्रशासन कार्रवाई  के लिए पेटलावद ब्लास्ट या नशे की लत के साथ किसी बड़ी घटना होने का इंतजार कर रहा है...?




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