माही की गूंज। संजय भटेवरा
झाबुआ। बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा लिखित भारतीय संविधान में पक्ष और विपक्ष गाड़ी के दो पहिए है, जिसमें संतुलन के लिए दोनों को समान रूप से सक्रिय रहना आवश्यक है।और देश की गाड़ी की सरपट तभी दौड़ सकती है जब पक्ष और विपक्ष अपने दायित्वो का निर्वहन ईमानदारी से करें। जितना महत्व पक्ष (सरकार का है) उतना ही नहीं बल्कि उससे ज्यादा महत्व विपक्ष का है। क्योंकि विपक्ष जौहरी की भूमिका में होता है, सरकार के हर फैसले का सूक्ष्मता से मूल्यांकन करना उसका दायित्व है। लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि विपक्ष, सरकार का विरोध करते-करते देश का विरोध करने लग जाए।
हमारे संविधान के अनुसार देश में विपक्ष के नेता को भी वे सारी सुविधाएं मिलती है जो सरकार के एक कैबिनेट मंत्री को मिलती है। पिछले दस वर्षों में कांग्रेस के पास विपक्ष के नेता बनने लायक सीटे भी नहीं थी लेकिन 2024 के चुनाव में राहुल गांधी कि भारत जोड़ो यात्रा के कारण कांग्रेस को अपेक्षाकृत अच्छी सीटे मिली। कांग्रेस संसदीय दल के नेता राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व मिला। निः संदेह राहुल गांधी कांग्रेस में निर्विवादित नेता है। लेकिन शायद राहुल गांधी यह भूल रहे हैं कि, वे कांग्रेस के नेता के अलावा वे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक जिम्मेदार पद (नेता प्रतिपक्ष) भी है। हाल ही में उन्होंने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत विरोधी नेताओं के साथ न केवल तस्वीर खिंचवाई बल्कि कुछ अमर्यादित टिप्पणी भी की जो भारतीय दृष्टिकोण के साथ सही नहीं कहीं जा सकती है।
कहते हैं कि दोस्त का दोस्त भी दोस्त हो सकता है, विरोधी का विरोधी भी दोस्त हो सकता है, लेकिन विरोधी का दोस्त कभी हमारा दोस्त नहीं हो सकता। भारत विरोधी बयान देने वाले के साथ एक भारतीय और जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति के लिए सही नहीं कहा जा सकता है।
इसी प्रकार विदेश में जाकर भारत में रहने वाले एक संप्रदाय को असुरक्षित बताना भी नेता प्रतिपक्ष को शोभा नहीं देता है। हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि, घर की बातें घर में ही रहनी चाहिए। क्योंकि घर की बातें घर में बैठकर ही सुलझाई जा सकती है बाहर वाले के लिए तो वे केवल मनोरंजन बातें ही रहती है। ठीक इसी प्रकार अगर राहुल गांधी को लगता है कि, भारत में कोई असुरक्षित है तो उन्हें उनके लिए सड़क से लेकर संसद तक आवाज उठाना चाहिए, धरना देना चाहिए, रेलिया करनी चाहिए, यहां तक की अनशन का विकल्प भी खुला है। हमारे देश के राष्ट्रपिता ने अनशन (उपवास) को सबसे बड़ी शक्ति बतलाया है और इसी बल पर उन्होंने अंग्रेजों से न केवल लोहा लिया बल्कि अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
आजाद भारत में भी एक नौकरशाह अनशन या उपवास के बलबूते मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच चुका है। स्वतंत्रता देश का मौलिक अधिकार है और अगर किसी को लगता है कि, वह देश में सुरक्षित नहीं है तो वह सरकार से सुरक्षा की मांग कर सकता है। यानी इस समस्या का समाधान देश में ही है इसलिए इस मुद्दे को विदेश में उठाने का क्या औचित्य...?
निःसंदेह 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी एक परिपक्व नेता के रूप में उभरे है। भाजपा के अबकी बार 400 पार वाले नारे को किसी नेता ने पूरा नहीं होने दिया है तो वह निः संदेह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने। ऐसे राहुल गांधी को चाहिए कि, वह एक जिम्मेदार पद पर बैठने के बाद ऐसा कोई बयान न दे जिससे न केवल उनकी पार्टी को बल्कि देश को भी शर्मिंदा होना पड़े। राहुल गांधी सरकार की नीतियों का चाहे जितना विरोध करना हो करें लेकिन इस सरकार का विरोध, भारत देश का विरोध नहीं होना चाहिए। भारतीयता देश के हर नागरिक के रोम- रोम में बसी है और भारत का विरोध कोई भी भारतीय नागरिक सहन नहीं कर सकता है।