माही की गूंज, संजय भटेवरा
झाबुआ। 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा दिए गए नारे अबकी बार 200 पार का वही हश्र हुआ था जो अटल जी के समय इंडिया शायनिग और फील गुड नारे का हुआ था।कुछ ऐसा ही हश्र बंगाल में भी हुआ था, जहां भाजपा ने 200 से ज्यादा सीट जीतने का दावा किया था, लेकिन वहां पर भाजपा सरकार बनने लायक बहुमत तक नहीं जुटा पाई थी। कहावत "दूध का जला छाछ भी फुक–फुक कर पिता है" की तर्ज पर इस बार मध्य प्रदेश सहित किसी भी राज्य में सीट संबंधी कोई दावा नहीं किया जा रहा है।
शिवराज का काम मोदी का नाम
अपनी लिंक से हटकर भाजपा ने इस बार किसी भी चेहरे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। "एमपी के मन में मोदी और मोदी के मन में एमपी" की थीम पर चुनाव प्रचार चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के मध्यप्रदेश चुनाव के पहले दौर में इसकी झलक देखने को मिली। मोदी के भाषण में केंद्र की योजना के साथ मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा किए गए जनकल्याण कारी योजनाओं को गिनाया, लाड़ली लक्ष्मी और लाडली बहना का श्रेय मामाजी को दिया,लेकिन वोट कमल के निशान पर ही मांगे। यही नहीं उन्होंने योजनाओं की ग्यारंटी भी खुद के नाम पर ही दी,अपनी वाक चातुर्यता के बल पर हम हर घर में अपनी बात पहुंचाने का आह्वान भी उपस्थित श्रोताओं से कर गए। लेकिन सरकार बनाने के लिए संख्या संबंधित कोई भी दावा करने से वह बचते नजर आए।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से ज्यादा स्थानीय प्रचारको का ज्यादा प्रभाव है । राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जरूर हवा का रुख बदलने की ताकत रखते हैं, लेकिन उससे ज्यादा प्रभावशाली दिग्विजय सिंह और कमलनाथ साबित हो रहे हैं। स्थानीय नेता और स्थानीय मुद्दे व कमलनाथ की ग्यारंटी आम लोगों में कांग्रेस के प्रति विश्वास पैदा कर रही है। वहीं स्थानीय प्रत्याशी जनसंपर्क व खाटला बैठक के माध्यम से सीधा जनता से रूबरू हो रहे हैं। जहां तक आंकड़ों का सवाल है कांग्रेस भी इस बार आंकड़ों संबंधित कोई दावा नहीं कर रही है, लेकिन आत्मविश्वास के साथ सरकार बनाने का दावा अवश्य किया जा रहा है।