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साहब का मान-मान है पर साहब के सामने किसी गरीब या किसान का कोई मान नहीं
13, Oct 2023 1 year ago

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अपने पदीय अधिकार का दुरुपयोग कर किसी का अपमान करना कहां तक न्याय संगत...?

माही की गूंज, झाबुआ/खवासा।

            भारतीय संविधान में चपरासी से लेकर कलेक्टर तक सभी सरकारी अधिकारी कर्मचारियों को लोक सेवक कहा गया है, यानी जनता का सेवक। यही नहीं सरकार के विभिन्न पदों पर निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी अपने आप को जनता का सेवक ही कहते हैं और जब ये सेवक जनता के हितों पर कुठारघात करते हैं या उनके अधिकारों का हनन करते हैं तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ (पत्रकारिता) अपने दायित्व का निर्वहन करता है, यही नहीं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सजक पहरी भी कहा गया है। जब आम जनता अपने आप को ठगा महसूस करती है तो उसके पास दो रास्ते है एक कोर्ट का है तो दूसरा इस सजग प्रहरी के माध्यम से अपनी आवाज को उच्च स्तर पर पहुंचाना। पहला रास्ता कठिन है तथा अपेक्षाकृत महंगा जबकि दूसरा रास्ता सहज व सरल है ऐसे में अधिकांश मामलों में लोग मीडिया का ही सहारा लेते हैं।

            कुछ ऐसा ही मामला खवासा क्षेत्र का है जिसको जिले के प्रमुख साप्ताहिक समाचार पत्र “माही की गूंज” ने 24 अगस्त व 5 अक्टुम्बर को प्रमुखता से उठाया तो खवासा क्षेत्र के नायब तहसीलदार साहब पलकेश परमार तिलमिला उठे और उन्होंने माही की गूंज की गूंज के विरुद्ध ही मोर्चा खोल दिया।

            माही की गूंज की न तो किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी हे और न ही किसी से दोस्ती लेकिन इतना अवश्य है कि अन्याय व अनीति के विरुद्ध यह कलम न झुकेगी न थकेगी और न ही थमेगी।

            हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि, “निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करें सुभाय”।

            स्वस्थ आलोचना को खुले दिल से स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि आलोचना करने वाला ही हमारा हितेषी होता है। जनहित के मुद्दे पर नायब तहसीलदार महोदय को कुछ बुरा लगा हो तो उनके लिए भी न्यायालय के दरवाजे खुले हैं... लेकिन पदीय अधिकारो का दुरूपयोग कर द्धेषपुर्ण कार्यवाही करना या करवाना किसी भी स्थिति में न्याय संगत नही है।

            वही किसी भी व्यक्ति को चाहे वह किताबी ज्ञान के साथ वह किसी भी बड़े पद पर आसीन हो तो उसे उतने ही ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान का भी होना आवश्यक है। अगर अपनी शिक्षा के साथ कोई भी व्यक्ति किसी भी पद पर आसीन हो जाए और उसमें व्यवहारिक ज्ञान न होकर अपने पद का गुरूर दिखाकर अपने नाम के आगे मै, लगाकर अहम रूपी कार्य शैली के साथ कोई कार्य करता है तो ऐसे में यही कहावत चरितार्थ होती है कि, साहब भणि़या पर गणिया नी।

         हमारी कोई भी सरकार रही हो उनका ध्येय एक ही रहा है कि, कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकारी के कार्यालय में अपनी गुहार लेकर जाए तो उनकी पूरी बात शालीनता से सुनी जाए और उनका पूरा सम्मान किया जाए। जिसके बाद अपनी संवैधानिक प्रक्रिया में जो भी सही हो वह अपना कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। खासकर सरकारों की अहम योजनाएं गरीब पीड़ित एवं किसानों के हित में बनाई गई है और हमारा कानून भी इन्हें हक दिलाने के लिए तत्पर है। किसी भी व्यक्ति या पदाधिकारी को कानून का मखौल उड़ान,े अपने पद का दुरुपयोग करने व अपने पद का दुरुपयोग कर भय युक्त वातावरण बनाने का किसी को भी अधिकार नहीं है।

          किसी भी व्यक्ति का मान व सम्मान उसके व्यवहारिक ज्ञान के साथ की जा रही कार्य शैली के आधार पर ही मिलता है। यदि कोई अधिकारी अपने व्यवहारिक ज्ञान को भुलकर सामने वाले को अपमानित करता है तो उसे भी सम्मान मिलना मुश्किल है।

        माही की गूंज में 5 अक्टूबर को “सीएम हेल्पलाइन समाधान की नहीं बल्कि पीड़ितों के लिए और ज्यादा पीड़ादायीं बन चुकी यह योजना”  नायब तहसीलदार अपने आप को स्वयं हड़किये... जैसा कर रहा प्रचलित...?  शीर्षक के साथ प्रकाशित समाचार की बात करें तो, उक्त समाचार प्रकाशित होने के बाद नायब साहब संवैधानिक व्यवस्था को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और समाचार प्रकाशित दिनांक 5 अक्टूबर को नायाब साहब की कचहरी में जमीन के नक्शा त्रुटि का सुधार कर उसके हक की जमीन उसे जो भी हो वह दी जाए का प्रकरण साहब की कचहरी में चल रहा है। जिसकी साहब द्वारा दी गई पेशी पर करीब 12 बजे पवन पाटीदार तालुका कचहरी खवासा में पहुंचा। समाचार प्रकाशित होने पर साहब तिलमिला उठे ऐसा हुआ कि, साहब ने पवन पाटीदार को माही की गूंज का ऑपरेटर मानकर 2 से 3 घटे तक खडा रख अपनी कचहरी में ही कई तरह की धोस-धमकी दी कि, उक्त समाचार तूने क्यों प्रकाशित करवाया। पवन पाटीदार ने कहा, साहब समाचार में नहीं प्रकाशित करता हूं ना ही मैं समाचार लिखता हूं माही की गूंज समाचार पत्र में समस्त आने वाले समाचारों का संकलन प्रधान संपादक द्वारा ही किया जाता है। हां, यह सही है कि, आपकी कचहरी में चल रहे प्रकरण के दौरान आपके द्वारा जिन शब्दों से हमें कहा गया वह बात सीएम हेल्पलाइन से लेकर सभी मेरे पापा द्वारा प्रधान संपादक को बताई गई। लेकिन साहब की हकीकत प्रकाशित होने के बाद अपना ईगो सैटिस्फाइट करने के लिए पवन पाटीदार को कई तरह से तहसील कार्यालय में धमकाने का प्रयास किया गया। फिर भी साहब संतुष्ट नहीं हुई तो पवन पाटीदार को बिना किसी अपराध के ही कोटवार को निर्देशित कर पवन पाटीदार को कोटवार की बाईक पर बिठाया और पीछे-पीछे नायब साहब चौकी पर पवन के विरुद्ध अपराध दर्ज करने हेतु ले गए। चूंकि चौकी पर करीब 3 घंटे से अधिक पवन पाटीदार को बिठा रखा। वहीं नारायण पाटीदार के खेत की सीमा को लेकर चल रहे मामूली विवाद व प्रकरण में विपक्षी को अपना मोहरा बनाकर मुकेश पाटीदार को कहकर उसकी मां दुर्गा देवी पाटीदार से लिखा हुआ गाली-गलौच संबंधी एक आवेदन स्वयं ने चौकी प्रभारी की अनुपस्थिति में प्राप्त किया।

         वहीं मामले की जानकारी माही की गूंज कार्यालय से थांदला एसडीएम तरुण जैन को दी गई कि, बिना अपराध के भी नायब साहब द्वारा पवन पाटीदार के विरुद्ध अपराध दर्ज करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके बाद नायब साहब पुलिस चौकी से रवाना हुए और स्थानीय पुलिस स्टाफ को आज के दिन के लिए पवन को छोड़ने के निर्देश दिए। जिसके बाद पुलिस ने पवन को छोड़ा। लेकिन साहब ने अपने ईगो को सेटिस्फाईट करने के लिए हर वो काम किया जो विधि सम्मत भी नहीं है। तहसील कार्यालय में पवन को धमकाना और बिना किसी अपराध के अपराधी की तरह चौकी में 3 घंटे से अधिक बिठा रखा। साहब का यहा भी ईगो सर्टिफाइड नहीं हुआ तो षंडयंत्र बनाकर 6 अक्टूबर को नारायण व पवन पाटीदार दोनों बाप-बेटे को धारा 151 की प्रतिधात्मक कार्यवाही करते हुए एसडीएम कार्यालय थांदला में पेश किया। चौकी प्रभारी रज्जत सिंह गणावा से बात हुई तो कहा, कस्बाई व्यवस्था में शांति बनाए रखने हेतु उक्त कार्रवाई की गई है और आज दिनांक ही एसडीएम कार्यालय से जमानत हो जाएगी। लेकिन हमारे द्वारा अंदाजा लगाकर स्पष्ट कहा गया कि, नायब साहब के प्रयास से आज किसी भी स्थिति में जमानत नहीं होकर जेल पहुंचा दिया जाएगा और हुआ भी वही। खैर, एसडीएम साहब का अपना अधिकार है कि, वे अपनी पदीय कार्य के दौरान किसी की जमानत ले, न ले, यह एसडीएम का अपना अधिकार है। वहीं बताया जा रहा है कि, दुर्गा देवी पाटीदार का आवेदन, पवन व नारायण पाटीदार के विरुद्ध नायब साहब द्वारा दुर्गा देवी के पुत्र मुकेश पाटीदार से प्राप्त किया था। जिसमें भी विभिन्न धाराओं में दोनों बाप-बेटों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कर लिया गया है बताया जा रहा है। वही जब एक जवाब देही के साथ क्षेत्र में शांति व्यवस्थाएं बनी रहे के उद्देश्य के साथ छोटे से आपसी विवाद को किसी अधिकारी के बहकावे में ना आकर, दी गई झूठी रिपोर्ट लेने की प्रतिनिधी ने समझाईस मुकेश पाटीदार को छोटे भाई की तरह दी। जिस पर मुकेश ने आश्वस्त किया कि, मैं घर पर जाकर बताता हूं। जिसके बाद जानकारी में आया कि, मुकेश पाटीदार ने हमारे खिलाफ भी नायब साहब के इशारों पर झूठी शिकायत आवेदन, घर पर बुलाकर धमकाने संबंधी दिया।

         नायब साहब द्वारा अपने इगो को सेटिस्फाईट करने के लिए इस तरह की द्वेषतापूर्ण कार्रवाई कहां तक नीति संगत है...? हमें न्यायालय में उक्त बातों के लिए कोई साक्ष्य पेश करने की आवश्यकता नहीं है। साहब अगर हमारी लिखी बात को गलत साबित करना चाहते हैं तो साहब ने ही खुद जो साक्ष्य छोड़े है। जैसे- तहसील कार्यालय से लेकर पुलिस चौकी तक या एसडीएम कार्यालय में लगे सीसीटीवी की फुटेज के साथ तमाम अपने अधीनस्थ व वरिष्ठ अधिकारियों व विपक्षीगण से हुई उक्त संबंध में टेलीफोन चर्चाओं का लेखा जो स्वतः ही एक प्रूफ है, पेश करेंगे तो साहब की द्वेषपूर्ण भावना स्पष्ट जाहिर होकर साहब की बचकानी हरकत सामने आ जाएगी। खैर, साहब की उक्त बचकानी हरकतों से किसी और को नहीं बल्कि स्यवं की प्रतिष्ठा को कम कर रही है और स्पष्ट हो रहा है कि “साहब आप का मान, मान है और किसी गरिब या किसान का कोई मान नही है”।

किसी भी व्यक्ति की कार्य शैली के आधार पर आम जनता ही देती है उपाधि यां संज्ञा न की कोई पत्रकार  

          रही बात किसी भी मीडिया संस्थान की तो, वह किसी को कोई उपाधि या संज्ञा नहीं देते है। बल्कि किसी की भी कार्यशैली के आधार पर आम जनता ही उस व्यक्ति को उपाधि या संज्ञा देता है और आमजनता द्वारा दी जाने वाली प्रचलित संज्ञा के नाम से पत्रकार उसे प्रकाशन करता है। जैसे- शिवराज चौहान को (घोषणा वीर) कमलनाथ को (कलंकनाथ) योगी आदित्यनाथ को (बुलडोजर बाबा) ज्योतिरादित्यसिंधिया को (गद्धार) आदि यह उपाधि आम जनता और राजनितिक विरोधियो के द्वारा ही दी गई है। जिसे समाचार संकलन के दौरान कई बार प्रकाशित किया जाता है। इसी प्रकार स्वयं नायब साहब की बोलने वाली कार्यशैली को आम जनता ने ही जो संज्ञा या उपाधि दी है उसे माही की गूंज में प्रकाशित किया गया है ना कि, हमारे द्वारा ऐसा कहा गया कि, आपकी शैली इस तरह की है।

         तय है आपने किसी भी तरह से जो गलती की है वह आम जनता द्वारा अखबार में प्रकाशित समाचार से आत्मसात कर किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते तो तय है आपका मान बढ़ता। यहां हम यही कहेंगे कि, आपका गुस्सा लाजमी है और गुस्सा आना भी चाहिए, लेकिन जब आपकी कार्य शैली से पदीय गरिमा को कम करने के साथ आम जनता को आपके द्वारा कही गई शब्दावली से कितना बुरा लगा होगा और उनको गुस्सा भी कितना आया होगा यह अब स्वतः आप भी समझ चुके होंगें। लेकिन वे बेचारी आम जनता है जो कार्यपालिका से अपमानित या असहाय होती है तो मीडिया से ही अपनी गुहार लगाती है और मीडिया अपने दायित्व का निर्वाह करती है और माही की गूंज ने भी अपनी कलम को जनता के हक में अपना निर्वाह किया है।

कलम किसी टाइटल की मोहताज नहीं रहती यह तो अनवरत जीवित रहती है

          हम उस कलम के धनी यशवंत घोडावत के चेले हैं, जिनकी कलम को कोई दबा नहीं सका, खरीद नहीं सका तो टाइटल तक खरीद लिए गए और 25 से अधिक अखबार चलाकर छोड़ दिए। आज खरीदे गए वो अखबार भी अपनी जमीनी मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहे है लेकिन यशवंत घोड़ावत की कलम आज भी धरातल पर अनवरत जीवित है। घोड़ावत जी की कलम को खरीदने व दबाने वाले कई माफिया वह भृष्टो को एक समय के साथ धूल ही चाटनी पड़ी थी। हमें जरूर हमारे गुरु ने यह बताया कि, हम आमजन के हक में भ्रष्टो, माफियाओ के विरुद्ध बेबाकी से अपनी कलम का निर्वाह करें और सत्य को कितना भी परेशान करने का प्रयास करेगा लेकिन सत्य परेशान हो जाएगा लेकिन पराजित नहीं। यानी साहब हम तो सिर्फ वही प्रकाशन करते हैं जिसकी वास्तविक शिकायतें आती है आपकी विचित्र कार्य शैली खवासा क्षेत्र ही नहीं बल्कि कुछ समय सारंगी में रहने के साथ ही सामने आई। जहां भी आपकी शिकायतों के बाद आपको कुछ समय में ही वहां से तबादला कर दिया गया। आप विधि सम्मत व व्यावहारिक ज्ञान व शलिनता के साथ लोगों से पेश आएंगे तो तय हैं आपका मान बढ़ेगा। अगर व्यवहारिक ज्ञान की सीख लेना हो तो आपके वरिष्ठ अधिकारी एसडीएम तरुण जैन साहब से भी ले सकते हैं। जिनमें किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान है और क्षेत्र में अपनी पदीय गरिमा को अपने व्यवहारिक ज्ञान के साथ बनाए रखते हैं और क्षेत्र में उनके कार्य शैली की सराहना भी करते हैं और हम भी इनकी व्यवहारिकता का दिल से सम्मान करते है। वही तहसीलदार अनिल बघेल के संबंध में भी यही कहेंगे कि, उनकी गलतियां सामने आने पर उन्होंने उन गलतियों को आत्मसात किया है और वह अपने दायित्व का निर्वहन बखुबी से कर रहे हैं जिन्हें भी आप चाहे तो अपने आदर्श के रूप में ले सकते हैं।

फाइल फोटो

सीएम हेल्पलाईन में शिकायत की है तो वह सबकुछ करेगे मैं अलग हूं और सीएम हेल्पलाईन अलग है- नायब साहब।


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