माही की गूंज, झाबुआ/थांदला।
राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और ना ही स्थाई दुश्मन। राजनीति में अगर कुछ स्थाई होता है तो वह होता है निजी स्वार्थ, निजी स्वार्थ की आड़ में दोस्त भी दुश्मन बन जाते हैं और दुश्मन भी दोस्त। कुछ ऐसा ही मामला थांदला विधानसभा में भाजपा के भीतर चल रहा है। यहां भाजपा ने अपनी दूसरी लिस्ट में पूर्व विधायक कलसिंह भाभर को एक बार फिर टिकट देकर उन्हें थांदला विधानसभा में कमल खिलाने की जिम्मेदारी दी है। टिकट वितरण के तत्काल पश्चात तो किसी भी नेता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। खवासा क्षेत्र के अन्य दावेदार पूर्व मंडल अध्यक्ष रमेश बारिया ने जरूर पार्टी के इस निर्णय का स्वागत करते हुए घोषित प्रत्याशी को बधाई दी थी। लेकिन पिछले दिनों पलवाड क्षेत्र के वरिष्ठ नेता पूर्व जनपद अध्यक्ष और सांसद प्रतिनिधि दिलीप कटारा ने पार्टी के इस निर्णय को चुनौती देते हुए असंतुष्टों के साथ एक बैठक करते हुए पार्टी से टिकिट बदलने की मांग कर दी। दिलीप कटारा के अनुसार पार्टी कलसिंह भाभर के अलावा अन्य किसी भी व्यक्ति को टिकट दे तो वे पार्टी को जिताने का भरोसा दिलाने का दावा कर रहे है।ं वहीं उनका आरोप है कि, कलसिंह भाभर ने विभिन्न मोको पर भाजपा कार्यकर्ता का साथ देने के बजाय कांग्रेस का साथ दिया और क्षेत्र में भाजपा की जड़े कमजोर की है और इसका समर्थन अन्य असंतुष्ट नेताओं ने किया।
खेर भाजपा टिकट बदलती है या नहीं यह तो उनका आंतरिक मामला है लेकिन इतना तो तय है कि, पार्टी के लिए असंतुष्ट नेता खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ने वाली कहावत चरितार्थ कर सकते हैं। ऐसे में पार्टी प्रत्याशी कलसिंह भाभर को कांग्रेस के अलावा अपनी ही पार्टी के असंतुष्ट से मुकाबला करना पड़ सकता है। वही सांसद प्रतिनिधी दिलीप कटारा व मेघनगर जनपद के सांसद प्रतिनिधी तानसिंग मैड़ा को पार्टी के विरूद्ध गतिविधी करने पर सांसद प्रतिनिधी के पद से हटा दिया गया।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है पार्टी ने प्रदेश में 230 विधानसभा में से अभी तक एक प्रत्याशी भी घोषित नहीं किया है। लेकिन पार्टी के वर्तमान विधायक व अन्य क्षेत्रों में दावेदार सक्रिय होकर कार्यकर्ताओं के माध्यम से चुनाव प्रचार में लगे हैं। उसी अनुरूप थांदला विधानसभा में वर्तमान विधायक वीरसिंह भूरिया ने अपनी तैयारियां प्रारंभ कर दी है। अपनी सहज और सरल छवि के दम पर वे इस बार दुगने वोट से जीत का दावा अवश्य कर रहे हैं लेकिन वे विपक्ष के विधायक के रूप में क्षेत्र में कोई विशेष उपलब्धि नहीं दिला पाये हे। फिलहाल तो कांग्रेस में अन्य कोई दावेदारी पेश नहीं कर रहा है लेकिन विधायक को भी अपनी ही पार्टी के पास असंतुष्ट को साधना होगा और उन्हें पूरे मन के साथ चुनाव प्रचार में लगाना होगा।
अन्य दल का यहां कोई विशेष प्रभाव नहीं है लेकिन जयस अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कर सकता है। जिला पंचायत के वार्ड क्रमांक 9 से जिस प्रकार जयस उम्मीद्वार ने सभी राजनीतिक पंडितों को चोकाया था ऐसा ही कुछ करने का दावा जयस नेता अवश्य कर रहे हैं। वहीं आम आदमी पार्टी की उपस्थिति नगण्य ही रह सकती है। कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट नेता जरूर निर्दलीय रूप से खड़े होकर प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं।
वहीं भाजपा व कांग्रेस के बीच पेटलावद विधानसभा में भी रोचक मुकाबला हो सकता है। यहां भी भाजपा ने पूर्व विधायक निर्मला भूरिया को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस की ओर से वर्तमान विधायक वालसिंह मैडा ही संभावित उम्मीदवार माने जा रहे है। यहां जयस भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है और कांग्रेस व भाजपा के भी कुछ असंतुष्ट अपनी दावेदारी जता सकते हैं।
झाबुआ विधानसभा में यह देखना रोचक होगा कि, यहां कांग्रेस वरिष्ठ नेता कांतिलाल भूरिया को टिकट देती है या उनके पुत्र विक्रांत भूरिया को। जबकि भाजपा ने यहां गत उपचुनाव में पराजित उम्मीद्वार भानु भुरिया पर अपना विश्वास जताया है। यहां के मतदाताओं में रोचक चर्चा यह सुनने में आ रही है कि, लोग कह रहे की कांतिलाल भूरिया अपने बेटे के लिए सीट का त्याग करेंगे या इंदौर में भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय की तरह खुद टिकट लेकर लड़ेंगे।