
माही की गूंज, बामनिया।
जय आदिवासी युवाशक्ति संगठन के कार्यकर्ताओं ने 5 अक्टूबर भीलराजा राणा पूँजाभील कि जयंती पर नगर के रतलाम रोड़ स्थित सर्कल पर स्थापित राजा पूँजा भील की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर जयंती मनाई गई। भील सरदार राणा पूँजा भील मेवाड़ राज्य के भौमट क्षैत्र के पानरवा ठिकाने के शासक थे। उन्होंने वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप को जीवन पर्यंत अपना अविस्मरणीय सहयोग दिया। मुगल शासक अकबर के सेनापति आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा को हल्दी घाटी के युद्ध में विजयी होने के उपरांत, देबारी के जंगल में राणा पूँजा भील की सैना का सामना करना पड़ा था। जिसमें मुगल सेनापति मानसिंह की विजयी सैना को हथियार ओर रसद सहित भील योद्धाओं ने लुट लिया था, अर्थात हरा दिया था। इसके पिछे भीलराजा राणा पूंजा भील के अदम्य साहस ओर उनके भील सैनिकों कि छापामार-गुरिल्ला युद्धनीति कारण रही थी। हल्दीघाटी युद्ध के उपरांत महाराणा प्रताप कि माताश्री राजमाता जयवंताबाई ने राजा पूँजा भील को अपना दुसरा बेटा कहा था ओर मेवाड़ के राजचिह्न पर भील सरदार राजा पूँजाभील को वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के साथ संयुक्त स्थान दिया था। जो कि आज भी मेवाड़ के राजचिह्न में मौजूद है। हल्दी घाटी युद्ध के उपरांत मेवाड़ की नवीन राजधानी गिर्वा के पहाड़ों में चावंड के रूप में बनाई गई। इसी नवीन राजधानी से भील सरदार पूँजाभील के सैनिक सहयोग से मेवाड़ राज्य का शासन महाराणा प्रताप ने संचालित किया ओर हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ के हारे हुऐ अधिकांश भू-भाग को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। भीलराजा पूंजा भील ने, महाराणा प्रताप को चौबीस वर्षों तक सतत् अपना सैनिक सहयोग दिया। इस प्रकार भीलराजा पूँजा भील का अविस्मरणीय गौरवशाली व्यक्तित्व जनमानस के लिए प्रैरणापुँज है। जिसमें उपस्थित जयस जिला प्रभारी कांतिलाल गरवाल, जयस उपाध्यक्ष कपिल डामोर, बीएपी प्रभारी धनराज भाभर, शैतान वसुनिया, संतोष निनामा गुमान ताड़ मांगीलाल मैड़ा आदि कार्यकर्त्ता उपस्थित थे।