श्रीमद्भागवत कथा श्रवण से प्रभुनाम में द्रढ़ निष्ठा और भगवान् के चरणारविन्दों में जागृत होता है प्रेम- डॉ. शर्मा
माही की गूंज, थांदला।
श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप का ज्ञान कराने वाला उत्तम साधन है। इसमें समस्त वैदों का सार समाहित है ओर यह भव रोग की उत्तम औषधि है। इसलिए संसार में आसक्त जो लोग अज्ञान के घोर अंधकार से पार जाना चाहते हैं। उनके लिए आध्यात्मिक तत्वों को प्रकाशित कराने वाला यह अद्वितीय दीपक है। यह श्रीमद्भागवत गोपनीय और रहस्यमय महापुराण है, किन्तु जब हम मनोयोग पूर्वक इसका श्रवण करते हैं, तो रहस्य उजागर होने लगते हैं। प्रभु नाम में हमारी निष्ठा द्रढ़ होने लगती है और भगवान् के चरणारविन्दों में प्रेम जागृत हो जाता है।
उक्त कथन डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा ने जिले के थांदला में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अन्तर्गत आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत सप्ताह महोत्सव में स्थानीय श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर सभागार में श्री मद्भागवत कथा के दौरान व्यक्त किए। डॉ. शर्मा ने हिरण्यकश्यपु, हिरण्याक्ष, जय विजय और महाराज परीक्षित की कथा के संदर्भ में कहा कि, आध्यात्मिक साधना में अहंकार सबसे बड़ा अवरोध है।हिरण्यकशिपु ओर हिरण्याक्ष ने साधना के बल पर ब्रह्मा से वरदान तो हासिल कर लिए, किंतु अहंकार के वशीभूत होकर उन्होंने प्राप्त वरदान का दुरूपयोग किया ओर ब्रह्म की महान् सत्ता को अस्वीकार करते हुए प्रभु भक्तों, साधु पुरूषों और धर्म पर आरूढ़ महात्मा जनों को त्रास देना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप उनका सर्वनाश हो गया।अहंकार के ही कारण मनुष्य अहिंसात्मक प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर होते हैं ओर ऐसे कार्य कर बैठते हैं,जिसकी सभ्य समाज सदैव निंदा किया करता है।
शर्मा ने कहा कि, महाराज परीक्षित ने भी अहंकार के वशीभूत होकर राजमद में ध्यानरत शमीक मुनि का अपमान करते हुए उनके गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया ओर उन्हें श्रंगी ऋषि से शापित होना पड़ा। किंतु जैसे ही परीक्षित ने अहंकार का त्याग करते हुए अपने कृत्य पर पश्चात्ताप किया वैसे ही उन्हें महायोगी शुकदेवजी महाराज का शिष्यत्व ओर फिर प्रभु कृपा की प्राप्ति हो गई।
वहीं बिहारी मंदिर में पंडित बालकृष्ण आचार्य, शांति आश्रय में पंडित किशौर आचार्य, सांवरिया सेठ मंदिर गवली मोहल्ला में पंडित नरेश शर्मा द्वारा भागवत कथा का वाचन किया जा रहा है।