माही की गूंज, संजय भटेवरा
झाबुआ। लोकतंत्र में चुनाव आते-जाते रहते हैं और सरकार भी बनती बिगड़ती रहती है। लेकिन देश की आन-बान और शान बरकरार रहना चाहिए। राजनीति में आरोप और प्रत्यारोप चलते रहते है,ं लेकिन जहां देश की बात आती है वहां पक्ष और विपक्ष को एक हो जाना चाहिए। वही विगत कुछ वर्षों में राजनीति का स्तर गिरता जा रहा हैैैं। राजनीतिक दल मुद्दे आधारित विरोध के साथ ही व्यक्तिगत विरोध पर उतर आए हैं। विशेष कर चुनाव के समय यह बयानबाजी और अधिक हो जाती है। मध्य प्रदेश में 2 से 3 महीने में चुनाव होना है और चुनाव को लेकर अभी से सरगर्मी तेज हो गई है। राजनेता, मुद्दों के साथ ही विपक्षी को व्यक्तिगत रूप से भी घेरने का प्रयास कर रहे है और यह व्यक्तिगत शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक पहुंच चुका है। शीर्ष स्तर पर तो मतभेद भुला दिए जाते हैं लेकिन निचले स्तर पर ये व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप आपसी रंजिश में बदल जाते हैं। मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद हुई घटनाएं इसके उदाहरण है। इसलिए राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि, वे राजनीति में सुचिता का पालन करें जिससे निचले स्तर पर भी एक स्वस्थ संदेश जाए।
भाजपा बेचैन, कांग्रेस सजग
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख दलों ने अपनी-अपनी तैयारी तेज कर दी है। जहां तक सत्ताधारी भाजपा का सवाल है वो चुनाव को लेकर बेचैन नजर आ रही है। मुख्यमंत्री सहित मंत्री और केंद्रीय मंत्री लगातार दौरे कर न केवल योजनाओं का बखान कर रहे वरन नई घोषणाएं भी करने आ रहे हैं। भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता खोना नहीं चाहती है, सत्ता की बेचैनी भाजपा नेताओं में साफ देखी जा सकती है। मुख्यमंत्री ताबड़तोड़ घोषणा और महा पंचायत आयोजित कर सभी वर्गों को साधने का प्रयास कर रहे है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह भी अपनी व्यापक तैयारी कर रही है। कांग्रेस के पास खोने को कुछ भी नहीं है वो लगातार शिवराज सरकार की घोषणाओं को झूठ साबित करने में लगी है। कांग्रेस पूरी सजगता के साथ फूक-फूक कर कदम रख रही है, क्योंकि वह जानती है कि, अगर कांग्रेस इस बार सत्ता में नहीं आती है तो उसे अपना कुनबा संभालना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। वही सत्ता प्राप्ति कांग्रेस को संजीवनी प्रदान करेगी और संगठन में नई ऊर्जा का संचार होगा। कांग्रेस के लिए यह चुनाव कांग्रेस की आगामी दशा और दिशा निर्धारित करने वाला रहेगा। वहीं मध्य प्रदेश में फिलहाल तो कोई तीसरी शक्ति उभर पाना संभव नहीं लग रहा है। कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट जरूर अपनी-अपनी पार्टी का नुकसान कर विपक्षी को फायदा पहुंचा सकते हैं।
झाबुआ जिले के संदर्भ में देखे तो दोनों ही दलों ने चुनाव को लेकर अपनी-अपनी तैयारियां तेज कर दी है। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री तो कांग्रेस की ओर से कमलनाथ जिले का दौरा कर चुके हैं। भाजपा ने दो सीट पर अपने प्रत्याशी तय कर दिए है,ं वहीं कांग्रेस की ओर से भी प्रत्याशी तय माने जा रहे हैं और उन्होंने तैयारियां प्रारंभ कर दी है। लेकिन दोनों ही दलों में असंतोष व्याप्त हैं। अब देखना यह है कि, इस असंतोष को कौन सा दल अधिक कंट्रोल कर पता है। जहां तक थांदला विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ओर से आधा दर्जन से अधिक नेता अपनी दावेदारी जता रहे हैं जिसको लेकर आम जनता में मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आ रही है। आम जनता का कहना है कि, थांदला विधानसभा सीट भाजपा के लिए सबसे मुश्किल सीटों में से एक है और इसलिए भाजपा यहां फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
अगर काम किया है तो इतनी बेचैनी क्यों
भाजपा का चुनाव को लेकर की जा रही तैयारियो को लेकर आम जनता में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है। लोग उदाहरण के माध्यम से बता रहे हैं कि, जो विद्यार्थी पूरे वर्ष पढ़ाई करता है वह परीक्षा के समय निश्चिंत रहता है कोई हडबड़ी नहीं करता है। उसी प्रकार पिछले 20 वर्षों (15 माह छोड़कर) से प्रदेश में भाजपा की सरकार है, पिछले 9 वर्षों से केंद्र में भी भाजपा की सरकार है और इस डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद चुनाव सर पर आते ही भाजपा इतनी बेचैन क्यों हो रही है। अगर आपने वाकई अच्छे कार्य किए हैं तो जनता आपको वोट देगी ही, इसमें इतनी हड़बड़ी दिखाने की क्या आवश्यकता है। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग भाजपा की चुनावी तैयारी पर भी चुटकी लेते नजर आ रहे है।ं तमाम योजनाओं के बावजूद अगर आपको वोट के लिए इतना कुछ करना पड़ रहा है तो इसके लिए कहीं न कहीं सिस्टम की खराबी है और योजना का सही-सही लाभ आम जनता को नहीं मिल पा रहा है। वहीं कई भाजपा समर्थक चुनाव को लेकर की जा रही तैयारी को जरूरी बनाकर पार्टी का समर्थन करते नजर आ रहे हैं।
लाडली बहना योजना मास्टर स्ट्रोक साबित होगी...?
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान अपने आप को प्रदेश के लड़के-लड़कियों को भांजे-भांजिया कहते हैं और इस हिसाब से वे महिलाओं के भाई बन गए हैं और भाई ने अपनी बहनों के लिए लाडली बहना योजना लागू की है। भाजपा ने 51 प्रतिशत मत प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है और महिलाओं के वोट पाने के लिए इसे मास्टर स्ट्रोक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। अब यह स्ट्रोक मास्टर स्ट्रोक साबित होता है या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि, नगद राशि हस्तांतरण के बजाये महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की योजना लागू करना चाहिए, उन्हें रोजगार दिया जाना चाहिए जिससे वो स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सके सरकारी सहायता आखिर कब तक...?
महिलाएं भी मुक्त की रेवड़ी के बजाये स्वाभिमान के साथ मेहनत करके अपना व परिवार का भरण पोषण करना चाहती हैं।