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सुर्खियों की कलेक्टरीः एक जाते-जाते सुर्खियों में तो एक आने से पहले ही सुर्खियों में
08, Apr 2023 1 year ago

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जहां से आई थी वहीं पहुंच गई रजनीसिंह, कलेक्टरी का कार्यकाल लगभग नगणन्य ही रहा, 6 माह में कोई उपलब्धी नहीं

माही की गूंज, झाबुआ।

         जिले के इतिहास में अच्छे कलेक्टरों की सूची बहुत छोटी ही देखने को मिलती है। जबकि इसके उलट नाकाम और भ्रष्ट कलेक्टरों की सूची काफी लंबी है। इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि, प्रदेश सरकार इस जिले के विकास को लेकर कितनी संवेदनशील है। एक बहुत लंबा समय गुजर गया लेकिन जिले में कोई ऐसा कलेक्टर देखने को नहीं मिला जो जिले में अपना तय कार्यकाल तीन वर्ष सफलतम रूप से पूरा कर सका हो। हां यह जरूर है कि, कुछएक कलेक्टर जिले में 2 वर्ष से अधिक समय तक रहे और अपने अनुभव व कुशलता का परिचय देते हुए जिले की अच्छी तरह से कमान संभाले हुए थे। मगर समय के साथ ये भी राजनीति का शिकार हुए और आरोपों के चलते हटाए गए। इसके अलावा जिले में आए तमाम कलेक्टर सालभर या उससे थोड़ा ज्यादा ही रह पाए और किसी न किसी कारण के चलते उन्हे जिले से रवानगी दे दी गई। इनमें कईयों की कार्यप्रणाली का लचर होना था, तो कईयों की भ्रष्ट कार्यशैली उनके जिले से रवानगी का कारण बनी। यहां दो प्रश्न उठते है कि, क्या सरकार इस आदिवासी बाहुल्य जिले के लिए कोई अच्छे अधिकारी नहीं भेज पा रही है, या फिर यहां आने के बाद अधिकारियों की नियत में खौट पैदा हो जाती है...? वैसे भी यह माना जाता है कि, आईएएस अधिकारी झाबुआ जिले में सिर्फ पैसा कमाने आते है और जमकर भ्रष्टाचार करते है। इसके कई उदाहरण झाबुआ जिला देख भी चुका है। कुछ अधिकारी जो भ्रष्ट नहीं भी होते तो इस जिले को आदिवासी जिला होने के चलते समझ नहीं पाते है या राजनीतिक लोगों को उनकी कार्यशैली समझ नहीं आती और शिकायतों के चलते उनकी रवानगी हो जाती।

         जिले में पिछले एक साल में जिस तरह का घटना क्रम हुआ है वह इस बात की पूरी-पूरी और बिल्कुल स्पष्ट गवाही भी देता है। पिछले सात माह में तीन कलेक्टर जिला देख चुका है। जिसमें कलेक्टर सामेश मिश्रा अपने भ्रष्ट कार्यशैली के लिए जिले से रवाना हुए। अप्रेल 2021 में जिले में कलेक्टर के रूप में पदस्थ हुए पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा का कार्यकाल कुछ ठीक नहीं रहा। इनके कार्यकाल में बड़े-बड़े भ्रष्टाचार इनकी मौन स्वीकृति से हुए और इस तरह के भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों को भी इसका हिस्सा बना लिया गया। एक लंबी फेहरिस्त भ्रष्टाचार, घपलों और घोटालों की कलेक्टर सोमेश मिश्रा के कार्यकाल में दिखाई पड़ती है। भ्रष्टाचार इतना चरम पर रहा कि कोई भी सरकारी काम-काज बिना लेन-देन के हो ही नहीं सकता। मिश्रा के कार्यकाल में सिर्फ चापलूसों, चाटूकारों के ही वारे-न्यारे हुए मगर जनता के साथ जिले का बेड़ा गर्क ही नजर आया। कलेक्टर मिश्रा के कार्यकाल के तमाम छोटे-बड़े भ्रष्टाचार लोगों में चौराहों पर चर्चा का विषय बने रहे। हालांकि यह जिला इससे पहले भी कई भ्रष्ट अधिकारियों व कलेक्टरों को झेल चुका है। मगर कलेक्टर मिश्रा इस जिले में सबसे भ्रष्ट कलेक्टर के रूप में याद रखे जाएंगे।

         मिश्रा के जाने के बाद जिले में पहली बार कलेक्टर बनकर आई आईएएस रजनीसिंह से काफी उम्मीदें आमजन को थी, लेकिन  ऐसा कुछ हुआ नहीं और आमजन की उम्मीदों पर कलेक्टर रजनींसह ने पानी ही फेर दिया। बिल्कुल ढीली और लचर कार्यशैली के चलते वे अपनी जगह आमजन के बीच तो ठीक अपने ही अधिकारियों में बनाने में सफल नहीं हो पाई। आमजन का तो यह मानना था कि, वे कलेक्टर है ही नहीं, उनमें कोई भी गुण कलेक्टर जैसा है ही नहीं। पिछले 6 माह में उन्होने जिले में ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिसे याद किया जा सके या जिसके बारे में बात की जा सके। हां यह जरूर हुआ कि, अपने सरकारी दुमछल्ले पत्रकार से मेडम ने अपनी खूब वाहवाही करवाई। सरकारी पत्रकार ने भी मेडम को खूब धोग दिया और जमकर चापलूसी की। मगर मेडम यह भूल गई कि, इस तरह की वाहवाही कोई मायने नहीं रखती। असल में मायने रखती है आमजन की राय और मीडिया का नजरिया जो आपकी कार्यशैली को देखते हुए आपकी अच्छाई या कमी दिखाता है। यही वह तय करता है कि, आप कितने सफय या असफल है।

         यहां यह जरूर कहा जा सकता है कि, कलेक्टर रजनीसिंह को शायद यह समझ ही नहीं आया कि, इस आदिवासी बाहुल्य जिले में किस तरह से कार्य किया जाए। वे पूरी तरह से अपने ही अधिनस्तों और चापलूसों के बुने जाल में उलझी रही। जिले में बैठे अधिकारियों ने रजनीसिंह को सावन का अंधा बनाकर सबकुछ हरा-हरा ही दिखाया। लोग जब भ्रष्टाचार की शिकायत लेकर कलेक्टर रजनीसिंह के पास पहुंचते थे तो बजाय भ्रष्टाचार की जांच करवाने के वे शिकायतकर्ता की ही क्लास लगा देती थी। आमजन और जनप्रतिनिधि भी जब उनको अवगत कराते कि भ्रष्टाचार हो रहा है, तब भी कलेक्टर रजनीसिंह का यह आलम था कि, वह आमजन और जनप्रतिनिधियों को गलत ठहराती और भ्रष्टाचार और अनियमितता को सही और अच्छा बताते हुए शिकायतकर्ताओं को टरकाती ही नजर आती थी।  रजनीसिंह में एक आईएएस इसलिए भी दिखाई नहीं देता था कि, वे छोटी-छोटी बातों पर एक दम से उत्तेजित होकर गुस्से में हो जाती थी। अखबारों और मीडिया में उनकी कमियो की छपी खबर के बाद तो वे अपने आपको काबू में नहीं रख पाती थी। फिर जो भी पत्रकार सामने आ जाए उसकी तो खैर नहीं, चाहे उसने कोई भी खबर ना छापी हो। मगर उसे मेडम के गुस्से का शिकार होना पड़ता था। यही रवैया आमजन के साथ भी देखने को मिला है। आमजन और मीडिया से मेडम ने इन 6 महीनों में कोई जीवित संपर्क नहीं बनाए। केवल सरकारी मीडिया जनसंपर्क में ही उलझकर रह गई। कलेक्टर रजनीसिंह जिले में जनप्रतिनिधियों को भी हल्के में ही लेती रही। जिसका परिणाम यह हुआ कि, उन्हे जिले से रवानगी लेना पड़ी। शारदीय नवरात्र के पहले जिले में आई कलेक्टर रजनीसिंह चेत्र नवरात्र करके जिले से रवाना हो गई। अब मेडम की स्थिति ऐसी हो गई कि, वे जहां से आई थी वहीं पहुंच गई। मतलब पहली बार कलेक्टर बनकर झाबुआ आने से पहले रजनीसिंह अपर आयुक्त (राजस्व) इंदौर संभाग के पद पर कार्यरत थी और अब झाबुआ से रवानगी के बाद भी वे इसी पद पहुंच गई। हालांकि राजनीसिंह जिले से जाते हुए भी कई तरह की बातों को लेकर सोशल मीडिया की पोस्टों में सुर्खियां बनी रही। कलेक्टर रजनीसिंह के तबादले को लेकर कई तरह की बातें अखबारों और सोशल मीडिया पर हुई। जिसमें कई तरह के तर्क-कुतर्क सामने आए। कलेक्टोरेट में कलेक्टर रजनीसिंह द्वारा बनवाए जा रहे नए चेंबर को लेकर भी यह कहा जा रहा है कि, जिले में जितने भी कलेक्टरों ने अपने कार्यालयों में परिवर्तन किया वे कुछ ही दिनों में जिले से रवाना हो गए। खैर जो भी हो लेकिन मेडम जाते-जाते भी सुर्खियों में रही।

         अब जिले में आई नई कलेक्टर से कई उम्मीदें है, लेकिन उम्मीदों का क्या है, यह जिला तो हर अधिकारी से उम्मीदे लगाता ही आया है। मगर अब तक जिले की उम्मीदों पर कुछेक अधिकारी ही खरे उतरे है। जिले में जयश्री कियावत, अरूणा गुप्ता, और अब रजनीसिंह की रवानगी के बाद चौथी महिला कलेक्टर के रूप में 2014 बैच की सुश्री तन्वी हुड्डा ने झाबुआ पहुंचकर पदभार संभाला है। वैसे जिले में अब तक आई महिला कलेक्टरों की बात करें तो केवल जयश्री कियावत का ही कार्यकाल अच्छा रहा है। बाकी महिला कलेक्टरों के कार्यकाल को अच्छा तो नहीं कहा जा सकता। चूंकि अब चौथी महिला कलेक्टर के रूप में तन्वी हुड्डा आई है तो यह एक चुनौती भी है कि, वे सफल महिला कलेक्टर के रूप में अपनी छवि जिले में चौका मारकर छोड़ सके। तन्वी हुड्डा इससे पहले अपर आयुक्त वाणिज्यिक कर, इंदौर तथा अपर आयुक्त (राजस्व) इंदौर संभाग, इंदौर (अतिरिक्त प्रभार) के पद पर कार्यरत थी। इसके पहले वे मंडला जिला पंचायत सीईओ और सतना नगर निगम कमिश्नर भी रह चुकी है। इसके अलावा सतना जिले के मैहर तहसील में एसडीएम भी रह चुकी है। मैहर में एसडीएम के पद रहकर सुर्खियों में आई तन्वी हुड्डा ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम के लिए मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी ने मां शारदा प्रबंध समिति का यात्री निवास मांगा था। उस वक्त आईएएस तन्वी हुड्डा समिति की प्रशासक थी। उन्होने आयोजकों को एक लाख 30 हजार रुपये किराया जमा करने को कह दिया। संघ के कार्यक्रम के लिए विधायक यात्री निवास मुफ्त में ही चाहते थे। लेकिन प्रशासक तन्वी हुड्डा ने साफ इन्कार कर दिया था। विधायक ने तत्कालीन कलेक्टर नरेश पाल को मामले में हस्तक्षेप करने को कहा, लेकिन एसडीएम तन्वी हुड्डा ने नियमों का हवाला देते हुए राशि जमा करवाने की बात कह दी थी। आखिर कार विधायक को पूरा किराया जमा करवाना पड़ा। इस मामले के बाद हुड्डा को मैहर से हटाते हुए नरसिंहगढ़ जिला राजगढ़ का एसडीएम बना दिया गया था। यह पूरा मामला मेडम के झाबुआ कलेक्टर बनने की खबर के बाद से ही सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटौर रहा है। सोशल मीडिया की इस पोस्ट के बाद हर कोई अपने दिमाग पर जोर डालकर कलेक्टर की कार्यप्रणाली और छवि को आंकने में लगा हुआ है। हालांकि अभी तक जो रूझान सोशल मीडिया से आए है उसके मुताबित तो मैडम तन्वी हुड्डा का रवैया सख्त ही मालूम हो रहा है। मगर फिर भी जमीनी हकीकत तो कुछ समय बाद ही पता चल पाएगी। क्योंकि जिस सख्त रवैये की बात सोशल मीडिया पर हो रही है वह तो 2016 का मामला है और हुड्डा मैडम 2014 बैच की अधिकारी है। तो यह भी कहा जा सकता है कि, ‘‘नया मुल्ला जरा जोर से ही आजान पढ़ता है’’। समय के साथ उसकी आवाज में नमी और नरमी दोनों ही आ जाती है। अब देखना यह है कि, आईएएस तन्वी हुड्डा की आजान में कितना दम बचा है।

         खैर जो भी हो लेकिन मैडम तन्वी हुड्डा जिले में कदम रखने के पहले ही सुर्खियों में बनी हुई है। झाबुआ कलेक्टर के रूप में पदस्थ हुई तन्वी हुड्डा के लिए यह जिला चुनौती भरा हो सकता है। क्योंकि यहां भ्रष्टाचार व माफियाई राज अपने चरम स्तर पर फैल चुका है। यहां की राजनीति भी नई कलेक्टर के सामने एक चुनौती ही साबित होगी। भ्रष्ट अधिकारियों के दम पर जिले में फैला माफियाओं का साम्राज्य किसी से छुपा नहीं है। रेत माफिया, खनिज माफिया, शराब माफिया, अवैध डीजल माफिया आदि कई माफियाओं का जाल जिले में पसरा पड़ा है जो नई कलेक्टर को चुनौती देगा। इसके अलावा पिछले कलेक्टरों की धुमिल छवि से भी पार पाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। इसके अलावा अपने अधिनस्तों को परख कर चापलूसों और चाटूकारों से बचना भी एक चुनौती है। मगर माही की गूंज का यह मानना है कि, ‘‘जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो फिर मुसल से क्या डरना’’। जिले की नई कलेक्टर को माही की गूंज परिवार की और से हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यही उम्मीद की भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। माफियाओं की नाक में नकेल कसी जाएगी। जिले की गरीब जनता की सुनवाई होगी और जिले का सर्वांगिण विकास होगा। इन्ही शुभकामनाओं के साथ माही की गूंज परिवार आपका जिले में हार्दिक स्वागत करता है....


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