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जिले में चल रहे धर्मांतरण के मुद्दे, प्रशासन ने जांच के बाद निकाली हवा
14, Jan 2023 1 year ago

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धर्मांतरण के मुद्दे पर विहिप को खानी पड़ रही मुंह की, अवैध चर्च का दावा खारिज

माही की गूंज, संजय भटेवरा

           झाबुआ। जिले में वर्षों से चल रहे धर्मांतरण के मुद्दे पर चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। विहिप और तमाम हिंदूवादी संगठनों की लाख कोशिश के बावजूद प्रशासन ने जांच के बाद धर्मांतरण का मुद्दा मिथक साबित कर दिया है। या यूं कहें कि इस जांच रिपोर्ट के बाद विहिप और उससे जुड़े हिन्दुवादी संगठनों की प्रशासन ने हवा निकाल कर रख दी है। धर्मांतरण का मुद्दा जिले में कोई नया मामला नहीं है। इस मुद्दे को राजनीतिक दलों और हिन्दुवादी संगठनों ने हमेशा ही भुनाया है। असल में यह मुद्दा जिले में सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ और कुछ लोगों की अपनी रोटियां सेकने के अलावा कुछ नहीं रहा। जिले की सीधी-साधी आम जनता ने इसमें कभी अपनी गंभीर रूची नहीं दिखाई है। राजनीतिक रोटियों और स्वार्थ सिद्घी के अलावा इस मामले में ठोंस होता कुछ दिखाई नहीं दिया। तमाम हो हल्ले के बाद विहिप और उससे जुड़े तमाम हिन्दुवादी संगठन हमेशा पिछले पैर ही नजर आए है।

           धर्मांतरण का यह मुद्दा वर्षों से जिले में चला आ रहा है लेकिन बावजूद इसके इसे रोका नहीं जा सका। इसमें सीधे तौर पर हो हल्ला करने वाले हिन्दुवादी संगठन ही जिम्मेदार दिखाई पड़ते है। धर्मांतरण के नाम पर ईसाई मिशनरी को निशाना बनाने वाले यह संगठन कभी भी धर्मांतरण के इस मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं दिखाई दिए। हालांकि विहिप द्वारा रैलियों और आमसभाओं के माध्यम से इसे रोकने का ढकोसला जरूर किया गया। जिले में हिंदूवादी संगठन अवैध धर्मांतरण और जिले में अवैध रूप से सरकारी जमीनों पर प्रार्थना स्थल और चर्च निर्माण का दावा करते रहे है। मगर जिले में जमीनी स्थिति इससे कोसो दूर ही नजर आ रही है। भले ही अधिकृत रूप से या कागजी तौर पर धर्मांतरण जिले में नहीं हुए लेकिन यह हकीकत है कि जिले में कई गांव ऐसे है जो पूरी तरह से धर्मांतरित हो चुके है। पिछले दो दशक में इस परिस्थिति में खासा बदलाव आया है जब कई ग्रामीणों और आदिवासियों ने धर्मांतरित होकर ईसाई धर्म अपनाया है। इस मुद्दे पर तमाम हिन्दुवादी संगठनों की कवायद सिफर ही नजर आई है या ये तमाम संगठन सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने मात्र के लिए इस मुद्दे को भुनाते आए है। इसके अलावा जमीनी स्तर पर जो चल रहा है वह तो चल ही रहा है...। वैसे भी आंकड़े यह बताते है कि, भाजपा के शासन काल में जिले में धर्मांतरण लगातार बढ़ा ही है।

         इधर ईसाई मिशनरी हिन्दुवादी संगठनों के तमाम विरोधों के बावजूद अपनी लाईन लंबी करने में लगी हुई है। ग्रामीण आदिवासियों तक शिक्षा, स्वास्थय और तमाम तरह की सुविधाओं को लगातार पहुंचा रही है। यही वह कारण है जो ग्रामीणों को धर्मांतरित होने पर मजबूर कर रहा है। हालांकि इससे से इंकार नहीं किया जा सकता कि, यह धर्मांतरण के लिए प्रलोभन हो। मगर यह भी एक हकीकत है कि मिशनरी की तरह हिंदूवादी संगठन या सरकार इन आदिवासी ग्रामीणों तक यह सुविधाएं पहुंचाने में पूरी तरह से नाकाम नजर आ रहे है। स्थितियां तो यही बताती है कि, जिले में सिर्फ रैलियों और सभाओं के जरिए धर्मांतरण को नहीं रोका जा सकता। धर्मांतरण को रोकने के लिए सरकार व हिन्दुवादी संगठनों को कुछ अलग करके दिखाना होगा।

यह हुई शिकायत

             पिछले साल अक्टूबर माह में विहिप धर्म प्रसार के आजाद प्रेमसिंह डामोर ने सीएम हेल्प लाईन पर शिकायत की थी कि, तहसीलदार रामा सुनील डावर और पटवारी अंजलि खतेडिय़ा ने गांव टिचकिया में आदिवासी के अवैध ईसाई धर्मांतरण और अवैध चर्च से जुड़े तथ्य छुपाकर गलत जांच की है। सत्यता को छुपाकर ईसाई मिशनरी संस्था और अवैध चर्च का सहयोग किया। आदिवासी की जमीन पर सर्वे नंबर 127 पर अवैध चर्च निर्माण किया गया। यह भू-राजस्व संहिता का उल्लंघन है। आदिवासी की जमीन गैर आदिवासी को हस्तांतरित नहीं की जा सकती। अवैध चर्चों में सामुहिक रूप से आदिवासियों का धर्म परिवर्तन किया जाता है। स्वेच्छा से धर्मांतरण के लिए भी जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक है। यहां न धर्मांतरण की अनुमति है और न ही चर्च निर्माण की।

        आजाद प्रेमसिंह की इस शिकायत के बाद राजस्व विभाग ने मामले में जांच शुरू की। जांच के बाद प्रशासन ने इस शिकायत को सिरे ही खारिज कर दिया।

           रिपोर्ट में बताया गया कि, प्रार्थना स्थल सरकारी जमीन पर नहीं है। अवैध धर्मांतरण की बात से भी रिपोर्ट में इंकार किया गया है। अधिकारियों ने जांच रिपोर्ट में लिखा कि, उन्हें लोगों ने बताया कि, वो आदिवासी है और धर्म नहीं बदला है। हां प्रार्थना जरूर ईसाई धर्म के अनुसार करते है। रिपोर्ट में प्रशासन ने बताया कि, जबरन धर्मांतरण के कोई तथ्य सामने नहीं आए है। रामा तहसील में 11 स्थानों पर प्रार्थना घर बने हुए है जो सभी निजी जमीन पर है और लगभग 20 वर्षो ंपुराने है। शिकायतकर्ता ने जो 56 चर्च बताएं है वह रामा तहसील क्षेत्र से बाहर के हैं। इसके अलावा धर्मांतरित आदिवासी को आरक्षण का लाभ नहीं देने की मांग भी सीएम हेल्प लाइन पर की गई थी। इस मामले में अधिकारियों ने लिखा कि, ऐसे प्रकरण जो कोर्ट में चल रहे है उनका निराकरण यहां किया जाना संभव नहीं है।

            जांच टीम के अनुसार सर्वे नंबर 127 पिदू के नाम पर दर्ज है, इसी पर प्रार्थना घर बना हुआ है जो पुर्णतः निजी भूमि है। रविवार और बुधवार को यहां ईसाई धर्म के अनुसार प्रार्थना की जाती है। भूमि स्वामी ने स्वेच्छा से अपनी जमीन पर प्रार्थना घर बनवाया है जो 30 वर्ष पुराना है। पिदू के वारिसों ने बताया कि, हम आदिवासी हैं। हमने ईसाई धर्म में धर्मांतरण नहीं किया है। हम केवल ईसाई धर्म की प्रार्थना के लिए एकत्रित होते है। रविवार को ग्राम टिचकिया, झिरावदिया, धांधलपुरा, गोमला सहित आसपास के गांवों से लोग शामिल होते है। प्रार्थना करवाने वाले रमेश नलवाया या किसी और के द्वारा आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक लालच नहीं दिया जाता। डरा धमका कर भी प्रार्थना में नहीं बुलाया जाता। इस रिपोर्ट के आधार पर एसडीएम सुनील कुमार झा ने शिकायत का निराकरण किया।

               इसके पहले भी विहिप ने कई साल से अवैध धर्म स्थल तोडऩे को लेकर भी आंदोलन किए, रैलियां निकाली। पिछले वर्षों में जिला मुख्यालय पर बन रहे बड़े चर्च को लेकर हंगामा किया था, जिसके बाद चर्च निर्माण का मामला खटाई में पड़ गया था। मगर बहुत थोड़े समय में ही विहिप का बड़े चर्च निर्माण के खिलाफ छिड़ा आंदोलन ढाक के तीन पात साबित हो गया। उच्च न्यायालय तक पहुंची इस लड़ाई का निर्णय भी मिशनरी के पक्ष में आया और आज जिला मुख्यालय का बड़ा चर्च का निर्माण पुर्ण हो चुका है। ईसाई धर्मावलंबि अब नए बने इस चर्च में अब अपनी प्रार्थनाएं और तमाम त्यौहार उत्साह के साथ मना रहे है।

               इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद यह तो स्पष्ट है कि, विहिप और तमाम हिंदूवादी संगठनों के मुंह पर यह करारा तमाचा है। यह दूसरा मौका है जब ऊंट हिंदूवादी संगठनों को छोड़ ईसाई मिशनरी की करवट पर बैठा है। यह सबक भी है कुछ सीखने और अपने आपको मजबूत करने का। मगर यहां सबसे पहले स्वार्थ सिद्धी को दरकिनार करना होगा। राजनीतिक रोटियां सेकनी बंद करनी होगी। तब ही संभव हो पाएगा धर्म को बचाना। वैसे भी एक लोकप्रिय संस्कृत वाक्यांश है जो महाभारत और मनुस्मृति में मिलता है ‘‘धर्मा रक्षति रक्षित’’ इसका अर्थ है ‘‘रक्षित धर्म ही रक्षक की रक्षा करता है’’। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह तय है कि, जिले में किसी भी सूरत में धर्मांतरण रोका ही नहीं जा सकता।


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