देवीय प्रकोप से रक्षा के लिए व्रत
माही की गूंज खवासा।
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के चलते दुनियाभर के वैज्ञानिक इसके इलाज हेतु टीका, वैक्सीन आदि की खोज में जुटे हैं और तमाम तरह की सावधानियों के साथ ही सामाजिक दूरी ही इसके बचाव का एकमात्र उपाय बतला रहे हैं। इसीलिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा में तनिक भी देरी नहीं की यही नहीं 21 दिन के बाद भी इसे 3 मई तक आगे बढ़ा दिया।
लेकिन भारत एक धार्मिक विविधताओं का देश है, यहां पर अलग-अलग मान्यताओं के लोग है, पूरा विश्व इस वायरस को महामारी मान रहा है। वही खवासा के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में इसे देवीय प्रकोप माना जा रहा है, उनका मानना है कि कुलदेवी मां, शीतल माता कुछ कारणों से हमसे रूठ गई है और उनके प्रकोप का सामना देशवासी कर रहे हैं। देवीय प्रकोप का सामना उनके गांव के लोगों को न करना पड़े और यह बीमारी उनके गांव तक ना पहुंचे, इसके लिए गांव की महिलाएं व्रत कर 5 दिन के उपवास कर रही है। शीतला माता को जल चढ़ा रही है और 5 दिन के उपवास के पश्चात कुलदेवी माताजी की पूजा अर्चना कर माताजी के पुरे श्रंगार का सामान, नारियल, अगरबत्ती के साथ अनाज व दलहन को बाफ जिसे आदिवासी भाषा में बाकला कहा जाता है चढ़ाकर अपने व अपने परिवार के साथ गांव व क्षेत्र की रक्षा की कामना कर रही है। यही नहीं लॉकडाउन के चलते व्रत करने वाली महिलाए बाजारों में पैदल चलकर पहुंच रही है और यहां उन्हें महंगे दामों पर पूजन सामग्री व नारियल मिल रहे हैं। बावजूद इसके आस्था अटूट है, वे महंगी पुजा सामग्री भी खरीद कर माताजी को प्रसन्न करने का प्रयास कर रही है और शायद यही आस्था ही हमें मजबूत बनाती है और कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए शासन के दिशा निर्देशों के अतिरिक्त मजबूत इच्छाशक्ति की भी आवश्यकता है और हमारी यही आस्था हमें मजबूती के साथ दृढ इच्छाशक्ति भी प्रदान करती है।