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सुनिल भूरिया
अनिल भूरिया
माता-पिता की गलती को उनके मरने के बाद भी भुगत रहे दो युवक, परिवार कर रहा तिरस्कार
माही की गूंज, खवासा।
किसी भी व्यक्ति को समाज में सम्मान के साथ जीवन-यापन करने हेतु परिवार में होना व परिवार का अपनाना आवश्यक होता है। अगर कहीं किसी को जीने का यह सम्मान किसी की गलती या किसी कारणवश नहीं मिलता है तो हमारे संविधान अनुसार प्रथम दृष्टिया कार्यपालिका का दायित्व है कि, समाज में जीने के लिये यह सम्मान दिलवाएं। अगर कार्यपालिका के प्रयास असफल होने पर न्यायालय से न्याय की दरकार रहती है। और वहां न्याय मिलता ही है यह तय है।लेकीन अगर कार्यपालिका के नुमाइंदे, व्यक्ति को सम्मान दिलाने की बजाय गड़े मुर्दे उखाड़ने की बात कही जाए तो उसे हम क्या कहें...? यह हमारे भी समझ से परे हैं।
परिवार की बेटी को बनाया पत्नि पर भुगतना पड़ रहा बैगुनाह बेटो को
मामला है, माता-पिता की गलतियों को बेटों द्वारा भुगता जा रहा है। तथा यहां वही कहावत चरितार्थ हो रही है कि, गलती करता कोई और है और भुगतता कोई और है।
थांदला थाने की खवासा चैकी के अंतर्गत ग्राम पंचायत मादलदा के ग्राम कदवाली के रहवासी हवसिंग भूरिया ने सामाजिक परंपरागत राजस्थान के ग्राम वडलीपाड़ा की कांताबाई से शादी की थी। शादी के बाद में हवसिंग भूरिया ने गांव में ही अपने ही भूरिया परिवार की लड़की कुंवरी बाई भूरिया के साथ आंख मिली और प्रेम प्रसंग होकर पत्नी के रूप में रखा। परिवार की ही लड़की से विवाह रचना किसी भी सामाजिक परंपरानुसार गलत माना गया है। वही कानून के दायरे में भी इसे गलत माना गया है यह भी सही है। पर माता-पिता की गलती की सजा उनके पुत्रों को तिरस्कार कर नहीं दी जा सकती है क्योंकि यह कानूनी अपराध है।
हवसिंग की बड़ी पत्नी कांता से एक लड़की व एक लड़का है जो भूरिया परिवार के साथ रहकर समाज में सम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर रहे हैं । वहीं हवसिंग का दूसरा प्रेम प्रसंग व भूरिया परिवार की ही होकर पत्नी बनाया उससे भी दो पुत्र सुनील (25) व छोटा भाई अनिल (23) है। लेकिन इन दोनों जैविक पुत्रों को आज तक उसके दादा-दादी व परिवार ने नहीं अपनाया व इनका तिरस्कार किया जा रहा है। जिस वजह से सुनील व अनिल समाज से सम्मान के साथ अपना जीवन यापन नहीं कर पा रहे हैं । तथा अब प्रथम दृष्टिया समाज व उसके बाद अब पुलिस प्रशासन से परिवार द्वारा किया जा रहा तिरस्कार का समाधान कर उन्हें परिवार द्वारा अपनाकर समाज में सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया जाए की गुहार लगा रहे हैं।
समाज में सम्मान से जीने के लिए परिवार का अपनाना आवश्यक
सुनील भूरिया ने माही की गूंज कार्यालय में आकर अपनी व्यथा बताई कि, मेरे पिता ने या मेरी जन्म देने वाली मां दोनों एक ही परिवार के थे और उन्होंने प्रेम प्रसंग के साथ संबंध बनाया और हमें जन्म दिया, जिसमें हमारी दोनों भाई की क्या गलती है...? सवाल किया। अपने सवाल के साथ बताया कि, मेरा जन्म सन 2000 का है तथा मेरा छोटा भाई 2 वर्ष छोटा है। मेरे पिता की मृत्यु मेरे 5 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी। जिसके बाद मेरी मां कुँवरि बाई ने मुझे 2005 में ही पिता की मृत्यु के बाद इंदौर में श्रद्धानन्द बाल आश्रम में भर्ती करवा दिया। वहीं करीब दो वर्ष बाद मां की भी मृत्यु हो गई। मां की मृत्यु के बाद नानीजी बसंती बाई ने मेरे छोटे भाई अनिल को भी बाल आश्रम में ही भर्ती करवा दिया।
हम दोनों भाई अनाथ आश्रम में ही बड़े हुए और 2016 में सुनील ने 10वीं पास की। जिसके बाद मामा हुरसिंग पिता फुलजी भूरिया कदवाली के संपर्क में आया और सुनील कदवाली हुरसिंग के यहां रहकर इंदौर या स्थानीय स्तर पर कार्य कर अपना जीवन यापन कर रहे थे। लेकिन माता-पिता के कारण समाज में सम्मान नहीं मिल पाया। समाज में सम्मान व जीवन यापन करने के लिए दादा-दादी से गुहार लगाई। जिसके बाद भील भांजगड़ी के साथ समाधान का प्रयास किया लेकिन दादा-दादी व परिवार वहां उपस्थित नहीं हुआ।
इतना ही नहीं दादा सकरिया पिता रादु भूरिया ने स्पष्ट कहलवा दिया कि, हम इन सुनील व अनिल को नहीं जानते हैं यह कौन है। हम उन्हें नहीं अपनाएंगे कह कर तिरस्कार कर दिया।
वही दादा एवं परिवार ने पिता के रिश्ते से काका व मां के रिश्ते से मामा हुरसिंग पिता फूलजी भूरिया व परिवार पर भी दबाव बनाया कि, तुम इन लड़कों को तुम्हारे पास रखोगे तो कल से कुछ अच्छा-बुरा हुआ तो तुम्हारी जवाबदारी रहेगी, कहकर धमका दिया। जिसके बाद मामा परिवार ने भी घर से निकाल दिया, यह सुनील ने बताया।
जिसके बाद सुनील ने समाज में सम्मान दिलवाने हेतु पुलिस प्रशासन से गुहार इस आशय से लगाई कि, वह उसकी पीड़ा समझेगी व परिवार को पुलिस, कानून की समझाइस देकर परिवार में उन्हें अपनाने के लिए सहायता करेगी। जिस संबंध में 25 मार्च को खवासा चैकी में एक लिखित आवेदन सुनील भूरिया ने दिया। वहीं खवासा पुलिस ने दादा एवं परिवार को खवासा चैकी में बुलवाया, पर परिवार ने आने से मना कर दिया।
जिसके बाद 1 अप्रैल को एसपी की जनसुनवाई में सुनील अपनी गुहार लेकर गया और प्रतिवेदन में अपना आशय व्यक्त किया कि, परिवार द्वारा अपनाकर उन्हें समाज में सम्मान के साथ जीने का अधिकार नहीं मिलेगा तो सुनील के पास आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।
जनसुनवाई में उपस्थित एडिशनल एसपी ने सुनील के द्वारा दिया गया प्रतिवेदन पड़ा। सुनील ने बताया कि, प्रतिवेदन पढ़ने के बाद साहब जिनका फोटो खींचकर में लाया हूं जिनको मैं नहीं पहचानता हूं कि वह कौन है। पर इन साहब ने कहा कि, गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए आए हैं, तुम्हारा दादा तुमको जमीन क्यो देगा...? तुम अपने पैरों पर खड़े हो। सुनील ने साहब से कहा, साहब एक बार बात कर लेते...? जिस पर फोटो वाले साहब ने कहा, यह हमारा काम नहीं है, तुम्हारी अलग परेशानी है घर बार की, कहकर प्राप्ति लेकर रवाना कर दिया।
सुनील ने माही की गूंज को फोटो दिया वह एडिशनल एसपी पीएल कुर्वे का है। सुनील ने माही की गूंज को जानकारी दी कि, उसे व उसके भाई को परिवार की किसी संपत्ति से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। बस हमें समाज में सम्मान के साथ जीने के लिए हमें परिवार का अपनाना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमारे पास आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
उक्त विकट समस्या को सुन माही की गूंज की ओर से सुनील को आश्वस्त किया गया कि, परिवार द्वारा अपनाया जाए इस बात पर हम आपके साथ हैं। साथ ही जीवन यापन करने के लिए आवश्यकता पड़ी तो रोजगार या कार्य देने के लिए आस्वस्त किया है। समाचार संकलन के साथ माही की गूंज अपने कहे अन्य दायित्व को भी करने से पीछे नहीं रहेगा। लेकिन एक एसपी स्तर का अधिकारी ऐसे संवेदनशील मामले में अपने दायित्व से मुकरते हैं यह कहां तक सही है...?
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री को भी देना पड़ा था अपने जैविक पुत्र को अधिकार
हमारे पाठकों के साथ एडिशनल एसपी श्री कुर्वे को भी अवगत करवाते हैं कि, पूर्व सांसद एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी पर 2008 में रोहित शेखर तिवारी ने दावा किया था कि, एनडी तिवारी उनके जैविक पिता है। जिसके बाद एनडी तिवारी ने रोहित शेखर तिवारी के दावे को खारिज करते रहे थे। जिसके बाद न्यायालय ने रोहित शेखर ने दावा पेश किया व डीएनए टेस्ट के साथ रोहित शेखर तिवारी को न्याय मिला और एनडी तिवारी को उनका जैविक पिता व उज्जवला तिवारी को उनकी जैविक मां के रूप में व्यक्त किया गया।
जिसके बाद 3 मार्च 2014 को पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने रोहित शेखर को उसका बेटा स्वीकार किया व 89 वर्ष की आयु में एनडी तिवारी ने रोहित शेखर की मां उज्ज्वला तिवारी से शादी की थी। व रोहित तिवारी को एनडी तिवारी की संपत्ति में हिस्सा भी दिया गया था।
जब न्यायालय ने जैविक पुत्र को पूर्व मुख्यमंत्री से अपना अधिकार दिलवाया ऐसे में एडिशनल एसपी, सुनील व अनिल को उनका अधिकार दिलवाने की बजाय अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं, जो सही नहीं है।
उक्त मामले को प्रशासन गंभीरता से ले और सुनील व अनिल को सम्मान के साथ समाज में जीवन यापन करने हेतु उनके अधिकार दिलवाए। क्योकि कानून सभी के लिए समान है जब रोहित तिवारी को उसका अधिकार मिल सकता है तो सुनील व अनिल को क्यों नहीं...?
सुनिल ने समाज में सम्मान के साथ जिने के लिये लगाई जनसुनवाई में गुहार एएसपी कुर्वे ने कह दिया गढ़े मुर्दे खोद रहे हो हमारा कोई लेना-देना नही है।