आराधकों ने गुरुदेव से तप शुद्धि के लिए आलोचना कर लिया प्रायश्चित
माही की गूंज, थांदला।
इस पंचम आरें में संयम साधना के महा अवतार जैनाचार्य गुरु भगवंत पूज्य श्री उमेशमुनि जी म.सा. "अणु" की दिव्य दृष्टि कृपा दृष्टि में पूज्य श्री धर्मदास गण नायक बुद्धपुत्र प्रवर्तक देव पूज्य श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा., रोचक वक्ता पूज्य श्री सन्दीपमुनिजी आदि ठाणा एवं वात्सल्यमूर्ति मधुबलाजी व पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी आदि महासती वृंद आदि महासतियों की पावन छत्र छाया में वर्धमान पुर बदनावर में 300 वर्षीतप आराधकों के पारणें का आयोजन श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ बदनावर द्वारा किया गया। आयोजन में बुद्धपुत्र ने उपस्थित वर्षीतप आराधकों के 400 सौ दिन की उग्र तपस्या में लगे दोषों की आलोचना विधि करवाते हुए उन्हें उचित प्रायश्चित दिया। इस अवसर पर गुरुदेव ने वर्षीतप की महिमा बताते हुए आदि तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ऋषभदेव के 13 भवों के स्मरण सुनाते हुए उनकी प्रथम साधना व तप में 400 दिन बाद श्रेयांश कुमार के हाथों इक्षुरस से अभिग्रह फलने की पूरी यशोगाथा सुनाई। आपने कहा कि आदिकाल के तीसरे आरें के समाप्ति के कुछ वर्षों पूर्व इस भरत क्षेत्र में धर्म तीर्थ के संस्थापक प्रथम तीर्थंकर देव का आगमन हुआ। दानंतराय के कारण उन्हें 400 दिन तक आहार नही मिला उसके बाद उनके कर्म क्षय हुए व पारणा हुआ तब से ही तीर्थंकर प्रभु के जन्म व दीक्षा कल्याणक दिवस चैत्र विदी अष्टमी से तप का प्रारम्भ करने की प्रथा चली आ रही है जो वैशाख सुदी तृतीया (अक्षय तृतीया) तक चलती है। इस तरह आरधक भी अपनी शक्ति अनुसार 400 दिनों तक एकान्तर उपवास, आयम्बिल, निवि, एकासन आदि विविधता से वर्षीतप की आराधना करते है व अक्षय तृतीया को इक्षुरस से पारणा करते है। पूज्यश्री ने वर्षीतप के दौरान व इस तप को निरंतर करने वालों के लिए इक्षुरस का निषेध करते हुए आराधकों को बताया कि तप को 400 दिन निर्बाध रूप से पूर्ण करने पर ही वह वर्षीतप कहलायेगा। तप के दौरान शारीरिक या मानसिक कारणों से तप बीच में खण्डित कर उसे बाद में पूर्ण करने का इसमें विधान नही है ऐसे में उस आरधक का वर्षीतप नही मानते हुए उसने जितने दिन तप किया उतनी तपस्या मानी जाएगी। पूज्यश्री ने कहा कि वैसे तो प्रथम तीर्थंकर के जन्म व दीक्षा कल्याणक से तप शुरू करने का विधान है लेकिन यदि आप का मन बीच में ही वर्षीतप का हो रहा है तो आप तप शुरू करने के दिन से 400 दिन तक वर्षीतप की आराधना कर सकते हो। आराधना का महत्व बताते हुए पूज्यश्री ने कहा वर्षीतप आराधकों को तप के दिनों में ब्रम्हश्चर्य व्रत धारण करते हुए निरंतर अथवा एकान्तर 12 वंदना, 12 नमोत्थुणम, 12 लोगस्स का ध्यान व 12 माला आदिनाथाय नमः या ऋषभदेवाय नमः की गिनना आवश्यक है। शक्ति होने पर तपस्या में पक्खी पर्व पर उपवास नही आने पर बेला करें अन्यथा संवत्सरी पर तो आवश्यक रुप से बेला करना है। गुरुदेव ने कहा कि यह विधि स्थविर गुरुभगवंतों द्वारा परम्परा से चली आ रही है जिसका पालन हर वर्षीतप आराधकों को करना चाहिए। गुरुदेव ने स्पष्टता से सबकों सावधान करते हुए कहा कि तप आराधकों को तप व पारणें के दिनों में रात्रि चौविहार करना आवश्यक है। ठंड के छोटे दिनों में इसकी विशेष सावधानी रखना चाहिए। धर्मसभा में उपस्थित परिषद को धर्म प्रेरणा देते हुए गुरुभगवंतों ने व महासतियों ने वर्षीतप अनुमोदना का स्तवन फरमाया। अंत में गुरुदेव ने वर्षीतप आराधकों को क्रमशः 11 उपवास, 11 आयम्बिल, 11 निवि, 11 एकासन आदि का प्रायश्चित दिया व कहा जो तप निरंतर रख रहा है उसे अभी प्रायश्चित लेने की जरूरत नही है जब उसका तप पूरा होगा तब उसे प्रायश्चित लेना है। वर्धमान पुर में गुरुभक्ति का मेला लगा हुआ था ऐसे में सभी गुरुभक्तों व तप आराधकों के पारणें का सुंदर आयोजन संघ अध्यक्ष सुरेंद्र मूणत, उपाध्यक्ष द्वय उमरावमल चौपड़ा व अशोक बोकड़िया, सचिव द्वय अशोक नाहर व मनीष बोकड़िया, कोषाध्यक्ष मुकेश संघवी आदि के नेतृत्व में सकल संघ, नवयुवक मण्डल, महिला मण्डल व बालिका मण्डल ने किया। जिसकी तप आराधना में आये करीब 8 हजार श्रद्धालुओं ने मुक्त कंठ से अनुमोदना की। सभी तप आराधकों का श्रीसंघ सहित अनेक गुरुभक्तों ने तप व तपस्वी के जयकारें लगाते हुए पारणा करवाया व बहुमान करते हुए धर्म प्रभावना वितरित की।
थांदला में 70 तपस्वी कर रहे वर्षीतप की आराधना
उल्लेखनीय है कि, धर्म भूमि थांदला में लगातार 19 वें वर्षीतप के साथ श्रीसंघ अध्यक्ष भरत भंसाली व 13 वें वर्षीतप के साथ श्रीमती आशा देवी श्रीमाल सबके लिए प्रेरणा बने हुए है इसी कड़ी में लगातार चौथा एकासन वर्षीतप संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने पूर्ण किया तो संघ में श्रीमती सुचिता चौपड़ा, मधु बहन लोढ़ा, कामिनी पोरवाल, विनोद श्रीश्रीमाल, नीलेश पावेचा, ललित भंसाली आदि के निरंतर वर्षीतप चल रहे है वही इस बार थांदला की पुण्यधरा पर एक साथ 70 से अधिक वर्षीतप गतिमान है। जानकारी देते हुए वर्षीतप आराधना समिति की अनुपमा मंगलेश श्रीश्रीमाल व हितेश शाहजी, राकेश श्रीमाल ने बताया कि श्रीसंघ थांदला द्वारा थांदला में एक साथ 73 वर्षीतप आराधक वर्षीतप की आराधना कर रहे है जिनके एकांतर पारणें की व्यवस्था महावीर भवन पर की जा रही है जिसमें श्रीमती सम्पतबाई पीचा परिवार, राकेश प्रफुल्ल तलेरा परिवार, वर्धमान मयुर डॉ. देवेंद्र तलेरा परिवार, जिनेन्द्रकुमार अल्केश प्रांजल लोढ़ा परिवार, श्रीमती कमला बाई सेठिया परिवार, श्रीमती किरणबाला नरेन्द्र कुमार श्रीमाल परिवार, सुश्री राजकुमारी बाबूलाल भंडारी परिवार, नानालालजी श्रीमाल परिवार, नगीनलाल रमेशचन्द्र शाहजी परिवार, मोहनलाल शैलेश संजय पीपाड़ा परिवार रतलाम, जुहारमल सूरजमल बाबूलाल राजेन्द्र श्रीमाल परिवार, श्रीमती शकुंतला प्रकाशचन्द्र शाहजी परिवार, बुद्धिलाल कांकरिया परिवार, श्रीमती तारा बहन सुन्दरलाल भंसाली परिवार, स्व. श्रीमती राजलबाई कनकमलजी गादिया परिवार, गुप्त सहयोगी, सुजानमल हीरालाल कांकरिया परिवार, प्रकाशचंद्र चंद्रकांत गोपाल जितेंद्र घोड़ावत परिवार, श्रीमती ज्योति दिलीप शाहजी परिवार, सुरेश महेश प्रदीप संजय व्होरा परिवार, माणकलाल जयंतीलाल रजनीकांत लोढ़ा परिवार, अमृतलाल मनीष चोपड़ा परिवार आदि दान दाताओं के सौजन्य से व नित्य लाभार्थी परिवार लाभ ले रहे है। ललित जैन नवयुवक मंडल व धर्मलता महिला मंडल पारणें में सहयोग कर रहे है। थांदला से प्रेरणा पाकर अन्य स्थानों पर भी संघ में वर्षीतप आराधना के समाचार मिल रहे है।