
माही की गूंज, संजय भटेवरा।
झाबुआ। भारत में चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका कार्य है समय-समय पर होने वाले विभिन्न चुनावो को निष्पक्ष, पारदर्शी और भयमुक्त वातावरण में संपन्न करना होता है। आजादी के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं सभी चुनाव आयोग ने मुस्तेदी से संपन्न करवाए हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। जिसका उचित समाधान भी चुनाव आयोग ने समय-समय पर किया भी है लेकिन फिर भी चुनाव आयोग की कार्य शैली और व्यवहार पर सवाल उठते ही रहते हैं।
चुनाव आयोग को चुनाव करवाने के लिए मतदाता सूची की आवश्यकता पड़ती है इसलिए चुनाव आयोग हर बूथ पर अपना एक कर्मचारी नियुक्त करती है। जिसको बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर कहा जाता है जो सामान्यतः उसी मतदान केंद्र का मतदाता होता है जिस मतदान केंद्र के लिए उसकी नियुक्ति की जाती है। बीएलओ को मुख्य कार्य हर 6 माह में मतदाता सूची का अद्यतन (अपडेट) करना होता है और यह चुनाव आयोग की सतत चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन वर्तमान में बिहार में चुनाव आयोग के द्वारा मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है और आगामी 1 अगस्त को मतदाता सूची के प्रारूप का प्रकाशन होना है। ऐसा ही अभियान चुनाव आयोग द्वारा पूरे देश में चलाने की बात कही जा रही है। लेकिन बिहार में आगामी चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए चुनाव आयोग की यह कार्यवाही और राजनीतिक दलों द्वारा संदेह की दृष्टि से देखी जा रही है। यही नहीं मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की इस कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। लेकिन चुनाव आयोग को यह नसीहत अवश्य दी है कि, अगर बड़े पैमाने पर लोग मतदाता सूची से बाहर हुए तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा। चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है और वह अपना काम कानून के अनुसार करेगा। सुप्रीम कोर्ट केवल इस अभियान की न्यायिक निगरानी करेगा।
बिहार से चैंकाने वाले आंकड़े
चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण कार्यक्रम चल रहा है। लेकिन अपुष्ट खबरों के अनुसार चैंकाने वाले आंकड़े सामने आए जिसमें लगभग 50 लाख लोगों के नाम फर्जी जुड़े होने की खबर है। जिसमें लगभग 30 लाख लोग स्थाई रूप से विस्थापित हो चुके हैं, यानी दूसरी जगह जाकर बस गए हैं और उनका नाम स्थानीय मतदाता सूची में जुड़ गया है। उसके बाद भी बिहार की मतदाता सूची में शामिल है और लगभग 20 लाख मतदाता दिवंगत हो चुके हैं। अगर यह तथ्य सही है तो निश्चित रूप से ये आंकड़े चैंकाने वाले हैं। क्योंकि मतदाता सूची का अद्यतन हर 6 माह में होता है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के नाम न हटना संदेह अवश्य पैदा करता है।
यही नहीं इस सघन पुनरीक्षण अभियान में कई विदेशी नागरिकों के नाम बिहार में जुड़े होने की खबरें है जो निश्चित रूप से चिंतनीय है। ऐसे नागरिकों के नाम मतदाता सूची से हटना ही चाहिए। यही नहीं पूरे देश में अवैध रूप से निवासरत बांग्लादेशी, नेपाली व अन्य देश के नागरिकों की भी पहचान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अगर चुनाव आयोग निष्ठा और ईमानदारी से ऐसा कर रहा है, तो चुनाव आयोग की निष्ठा पर राजनीतिक दलों द्वारा सवाल उठाने सही नहीं है। यही नहीं विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की कार्य शैली पर भी कई सवाल उठाए गए। लेकिन राजनीतिक दल आज तक ईवीएम को गलत साबित नहीं कर पाए। ऐसे में चुनाव आयोग भी इस कार्यवाही पर राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब उचित मंच से उचित समय पर दिए जाने चाहिए ताकि राजनीतिक दल भी संतुष्ट हो सके। जहां तक विरोध का सवाल है तो विपक्ष को विरोध करने का संवैधानिक अधिकार है और विपक्ष को उनके सवालों के जवाब मिलना ही चाहिए।