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माही की गूंज, झाबुआ।
सरकार एक देश एक चुनाव, एक देश एक राशन कार्ड जैसी योजना पर कार्य कर रही है। वहीं एक ही देश में एक शिक्षा व्यवस्था लागू करना तो दूर एक छोटे से गांव में अगर चार निजी स्कूल चल रहे हैं और चारों विद्यालय में अलग-अलग पुस्तक चल रही है तो, पूरे भारत में एक शिक्षा नीति की बात करना हास्यास्पद लगता है। सरकार निजी स्कूलों के हितों के आगे नतमस्तक होती जा रही है। सरकार कुछ भी नियम बनाए लेकिन कुछ ना कुछ गेप अवश्य छोड़ती है और उन्ही गेप का फायदा निजी संस्था अपने हित के लिए कर लेती है।
जैसे सरकार ने नियम बनाया है कि, कोई भी स्कूल संचालक अपनी स्कूल से कोई सामग्री नही बेचेगा साथ ही कोई भी स्कूल, बच्चों को किसी विशेष दुकान से पुस्तक, कापी, ड्रेस आदि खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है, इसके लिए भी बकायदा नियम कायदे बनाए गए हैं। जैसे नमूना प्रति स्कूल के नोटिस बोर्ड पर होना चाहिए, कम से कम दो स्टेशनरी विक्रेताओं के नाम होना चाहिए आदि। लेकिन निजी स्कूल तो ठहरे निजी स्कूल उन्होंने इसका तोड़ भी निकाल लिया और छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ने की बजाय सीधे बड़ी मछली पर ही हाथ डाल दिया। यानी सीधे बुक सेलर या पब्लिसर से ही संपर्क कर लिया और डायरेक्ट बुक सेलर या पब्लिसर से ही कमीशन लेकर दो या तीन स्थानीय व्यापारियों को माल दिलवा दिया। अब बेचारे स्टेशनरी बेचने वाले निजी विद्यालय द्वारा बतलाए गए बुक सेलर से ही बुक लेने के लिए बाध्य हो जाते हैं और जो 100 रूपये का माल उन्हें बाजार में 50 से 60 रुपए में मिल सकता है वही माल उन्हें निजी विद्यालय द्वारा तय किए बुक सेलर या पब्लिसर से 85 से 90 रुपये में खरीदने को बाध्य होना पड़ता है। यही नहीं अगर कोई स्थानीय स्टेशनरी व्यापारी इसका विरोध करें तो अन्य दूसरे व्यापारी को जिसका स्टेशनरी से कोई लेना-देना नहीं निजी विद्यालय तैयार कर उन्हें माल दिलवा देते हैं।
ऐसे में जो व्यापारी सालभर स्टेशनरी का व्यापार करता है वह निजी विद्यालयों की मांग मानने पर मजबूर हो जाता है। ऐसे में सारा अन्य खर्च व्यापारी को वहन करना पड़ता है। साथ ही पालकों के आक्रोश, टुट-फूट व ट्रांसपोर्ट जैसे अन्य तमाम खर्च करने के बाद बमुश्किल 8 से 10 प्रतिशत तक ही मुनाफा कमा सकता है। वहीं निजी विद्यालय सरकारी नियमों का तोड़ निकालकर तगड़ा कमिशन लेने के बावजूद शासन व पालकों की नजर में शरीफ नजर आते हैं।
नियंत्रण से परे निजी विद्यालय
शिक्षा और स्वास्थ्य शासन द्वारा दी जाने वाली निःशुल्क तथा अनिवार्य सेवाएं है, बावजूद सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार इन्हीं दो योजनाओं में होता है। 1 अप्रैल से नए शिक्षण सत्र प्रारंभ होने वाला है। उसके पूर्व ही प्रदेश में शिक्षा माफिया सक्रिय हो गए हैं। सरकार द्वारा भले ही नई शिक्षा नीति लागू कर दी गई है लेकिन कमीशन खोर अधिकारी व शिक्षा माफिया का खेल बदस्तुर जारी है। पुस्तकों की पिं्रटिंग से लेकर बच्चों तक सप्लाई सब में संबंधितों का कमीशन तय है, यानि भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन चुका है।
कई बार पालक को छूट नहीं मिलने पर दुकानदार के साथ होता विवाद
एक स्टेशनरी दुकान पर 12 महीने कोई न कोई स्कूल की सामग्री पालक को या बच्चों को लेने जाना होता है लेकिन उक्त सामग्री की खरीदी पर स्टेशनरी वाली दुकान संचालक के साथ विवाद का कोई कारण नहीं बनता है न ही कोई शिकवा या शिकायत होती है। लेकिन प्रतिवर्ष स्कूल के नए सत्र की शुरुआत के साथ स्कूली बच्चों के लिये लेने वाली किताबो को लेकर कई तरह की शिकवा-शिकायत व स्टेशनरी संचालकों से विवादों के कई वाकिये सामने आते हैं। साथ ही स्कूल की सॉठ-गांठ का भी आरोप लगते हैं।
सत्र के शुरुआती दौर में उक्त विवाद व शिकवा शिकायत का कारण जानने का प्रयास किया तो यही सामने आया कि, सरकार कितने भी नियम कायदे बना दे लेकिन भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बना चुके हैं इस सिस्टम का गढ़जोड़ बहुत ही मजबूत है। हमने जब कुछ स्टेशनरी संचालको से जानने का प्रयास किया तो सामने आया कि, स्थाई रूप से स्टेशनरी व्यवसाय करने वाले निजी स्कूलों की कमीशन खोरी से परेशान है। उसी कमीशन के चलते स्टेशनरी दुकानदार कापियों व रजिस्टरों पर छपी पिं्रट से कम मे बेचता है। पर प्राइवेट कंपनी की महंगी किताबें पर 5 से 10 प्रतिशत की छूट भी नहीं दे पाता है। जिसके कारण पालको के द्वारा विवाद उत्पन्न होता है और फिर स्कूल व दुकानदार की सॉठ-गॉठ के आरोप के साथ छूट नहीं मिलना बताया जाता है।
पूर्व में अधिकांश निजी स्कूले अपने स्कूलों से ही किताबें यूनिफॉर्म यहां तक की जूते-मोज़े भी बच्चों व पालकों को बेची जाती थी। विरोध होने के बाद स्टेशनरी दुकानों पर स्कूलों के माध्यम से किताबें निर्धारित कमीशन के साथ दी जाने लगी। जिस पर पालकों को प्राइवेट किताबों पर छूट नहीं मिलने पर विवाद व स्कूल के साथ सॉठ-गॉठ के आरोप लगने लगे। ऐसे में स्टेशनरी संचालको ने निजी स्कूलों के संचालकों को कहा जाता रहा कि, वह किताबें मार्केट से सीधा खरीदेंगे। आप तो सिलेक्ट की गई किताबों की सूची दे दे। ताकि हम पालकों को महंगी व प्राइवेट किताबें पर सीधे रूप से छूट भी दे सकेंगे, जिसके बाद किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं होगा।
वही स्कूल संचालकों को यह बात हजम नहीं हुई। वही सरकार व प्रशासन से भी एक से अधिक दुकानों पर किताबें मिलने के निर्देश आ गए। ऐसे में स्कूल संचालको ने बुक एजेंट व पब्लिशर से ऐसी सॉठ-गॉठ कि की, गांवो में स्टेशनरी दुकान वाला अगर 10 से 15 प्रतिशत में किताब बेचने को तैयार हो तो उन्हें किताब दे दी जाए और नहीं तो बिना किसी भी स्टेशनरी दुकान वाले को इतने कमीशन में दे दी जाए। यानिकी जनरल स्टोर्स हो, कपड़े की दुकान हो, किराना दुकानों हो, फोटोकॉपी दुकान हो आदि वह सत्र के दौरान किताबें बेच दे और स्कूल, पब्लिशर व बुक्स ऐजेंट का उद्देश्य पूरा हो जाए। और शासकीय गाईड लाईन भी पूरी हो जाए। पर सत्र पूरा होने के बाद उन दुकानों पर 12 महीने न तो रबड़, पेन्सिल मिलता है और न ही बुक्स।
एक छोटे से उदाहरण के रूप में हम मय प्रमाण के यह सार्वजनिक करते हैं कि, जिले में मिशनरी स्कूल व एमडीएच स्कूल जो की एक सामाजिक व दुसरी वैदिक संस्कार वाली संस्था के साथ संचालित हो रही है। यह भी इस कमीशन खोरी से अछुते नहीं है। ऐसे में अन्य निजी स्कूलों व संचालको के बारे में कोई बात करना बेमानी ही होगी।
उदाहरण के रूप में हम खवासा व बामनिया की बात करें। खवासा में एक मिशनरी स्कूल है तो खवासा क्षेत्र के भामल में ही एमडीएच स्कूल की एक संस्था संचालित हो रही है, तो वही बामनिया में जिले की मुख्य एमडीएच स्कूल संचालित है। इन तीनों स्कूलो में इंदौर का मनीष भटनागर नाम का एक बुक सेलर गौरव बिजनेस सॉल्यूशंस फर्म के नाम से बुक्स सप्लाय कर दुकानदारों को देता है। बता दे कि, खवासा में एक नवकार स्टेशनरी दुकान पर मिशनरी स्कूल की किताबें पिछले 6-7 वर्षों से भटनागर दे रहा था। कमीशन के नाम पर 40-60 प्रतिशत वाली किताबें 10 प्रतिशत में दे रहा था। जिसके चलते पालकों को प्राइवेट किताबें पर किसी प्रकार की छूट नहीं दे पाने पर विवाद की स्थिति बनने पर पिछले दो-तीन वर्षों से उक्त स्कूल की किताबें रखना बंद कर दिया। ऐसे में एक होटल संचालक को 10- 15 प्रतिशत का कमीशन देकर भटनागर ने मिशन स्कूल की किताबें बिकवाई। ऐसे में एक से अधिक दुकान का फंडा सामने आने पर पिछले वर्ष मिशन स्कूल ने नवकार स्टेशनरी, ओम श्री साई स्टेशनरी व होटल संचालक की पत्नी को मीटिंग रख किताब रखने का आग्रह किया। जिसमें नवकार ने तो यह कह कर मना कर दिया कि, बुक सेलर भटनागर की मनमानी के चलते किताबें नहीं बेचुगा। वहीं ओम श्री साई स्टेशनरी के संचालक को भटनागर ने कहा, आपको कमीशन में दिक्कत नहीं आएगी। ऐसे में इस स्टेशनरी संचालक ने पालकों को 5 से 10 प्रतिशत की छूट भी प्राइवेट किताबों पर दी। परंतु आखिरी में भटनागर ने 15 प्रतिशत कमीशन देकर कहां कि, हमारे द्वारा सेटिंग कर स्कूलों में किताबें दी जाती है। इसलिए बड़ा कमीशन स्कूलों को हमारे माध्यम से दिया जाता है। ऐसे में हम दुकानदारों को ज्यादा कमीशन नहीं देते हैं।
इतना ही नहीं यही स्थिति भामल की एमडीएच स्कूल में भी भटनागर ने पिछले वर्ष किताबें दी और संत तेरेसा स्कूल की तरह ही 15 प्रतिशत कमीशन दिया गया और भटनागर ने उक्त स्टेशनरी के संचालक को कहा कि, एमडीएच बामनिया व भामल ही नहीं बल्कि देश में 35 स्कूल संचालित होती है और उन 35 स्कूलों पर मैं मनीष भटनागर ही किताबें सप्लाई करता हूं। चाहे स्टेशनरी दुकान वाले किताबें रखना बंद कर दे कोई बात नहीं, मैं अन्य दुकानो पर स्कूलों की किताबें रखवाकर बिकवा दूंगा। भटनागर यही नहीं रुका बच्चों व पालकों का हक छीनने वाला भटनागर ने कहां, मैं एमडीएच की 35 स्कूलो का कमीशन एमडीएच संस्था दिल्ली ऑफिस में बैठे खट्टर को कमीशन देता हूं वह भी एक नंबर में। अब दो नंबर का पैसा कमीशन के रूप में देने वाला भटनागर एक नंबर में केसे देता होगा यह जाच का विषय है। वहीं बामनिया की बात करें तो यहां मुख्य रूप से स्टेशनरी की दुकान अरिहंत स्टोर्स है। लेकिन भटनागर व स्कूल की कमीशन खोरी के चलते यहां भी किताबें बेचने से मना कर दिया। वहीं अन्य स्टेशनरी की दुकान वाले किताबें रखने को तैयार नहीं है। दो वर्ष तक एक फोटोकॉपी संचालक को किताबें बेचने को दी। कमाई के बजाय घाटा का हवाला यह संचालक ने दिया व किताबें रखने से मना कर दिया।
ऐसे में बामनिया में अब स्कूल व भटनागर किसी कपड़े की दुकान पर तो किसी जनरल की दुकान पर किताबें बिकवा रहा है। वही खवासा में ओम श्री साई स्टेशनरी की मुख्य दुकान है लेकिन इस नए सत्र में भामल की एमडीएच स्कूल हो या मिशनरी की स्कूल दोनों स्कूलों में भटनागर द्वारा मनोपाली के साथ किताबें दिए जाने पर दुकान पर नहीं बेचेंगे। अगर स्कूल, किताबों की सूची देकर बिना मनोपाती के साथ बाजार में खुली किताब मिलने पर ही किताबें बेची जाएगी। ताकि प्राइवेट किताबों पर पालकों को छूट दी जा सके।
भटनागर व स्कूल का कमीशन फर्जीवाड़ा
बता दे की, ओम श्री साई स्टेशनरी की दुकान पर भामल एमडीएच, संत तेरेसा के साथ अन्य स्कूलों की किताबें बेची जाती है। वहीं अन्य स्कूल की किताबें जिसमें एडवाइजर कंपनी की किताब भटनागर से सेल्फ मंगवाई तो 40 प्रतिशत कमीशन के साथ किताबें दी गई थी। वहीं उसी एडवाइजर कंपनी की संत तेरेसा स्कूल की किताबें दुकानदार को 15 प्रतिशत कमीशन के साथ दी गई। यानीकि सीधा 25 प्रतिशत कमीशन स्कूल को दिया यह भटनागर का कहना है।
वही बात बुक्स एजेंट की ही नहीं पब्लिकशर की भी सामने आई। जिसमें इंदौर की गुप्ता पब्लिशिंग हाउस ( जीबीएच ) की किताबे खवासा की निजी स्कूल एनएचपीएस में लगाई गई थी, जिसका कमीशन दुकानदार को 15 प्रतिशत दिया।इस संबंध में जब पब्लिशर से बात की तो कहा, बाकी का कमिशन सिस्टम के आधार पर स्कूल में जाएगा।
इस संबंध में जब स्कूल संचालक से बात की तो, कहां मुझे कोई कमीशन नहीं चाहिए। और स्कूल संचालक ने सीधे पब्लिशर से बात की। जिसके बाद जीपीएच पब्लिशर ने दुकानदार को 30 प्रतिशत कमीशन दिया गया।
ऐसे में भटनागर जैसे बुक ऐजेंट व जीपीएच जैसे पब्लिशर व स्कूल की सॉठ-गॉठ ही स्टेशनरी दुकान पर प्राइवेट किताब पर छूट नहीं मिलने व विवाद का कारण है। अगर सेवार्थ चलने वाली संस्थाओं का यह हाल है तो फिर अन्य निजी विद्यालय के क्या हाल होंगे यह सहज ही कल्पना की जा सकती है...?
प्रकाशन पर भी नियंत्रण हो
आमतौर पर अलग-अलग संस्थाओं में अलग-अलग प्रकाशन की पुस्तक चलती है, और उन पुस्तकों पर अधिकतम विक्रय मूल्य बहुत ज्यादा अंकित रहता है। पूर्व प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों तक की पुस्तकों में 500 रूपये से 800 रूपये मूल्य अंकित रहता है और मजे की बात यह है की इसमें 80 से 90 प्रतिशत तक कमिशन बिचैलियों में बट जाता है। यानी पुस्तक की असल कीमत 10 से 20 प्रतिशत तक ही रहती है। ऐसे में वह पालक ठगा जाता है जो भ्रम में रहता है कि, मेरा पुत्र महंगी कॉन्वेंट स्कूल में महंगी पुस्तकों से पढ़ रहा है। सरकार को चाहिए कि, वह पुस्तक प्रकाशन के लिए मापदण्ड स्थापित करे।ं जैसे पुस्तक में पृष्ठ के आधार पर उसकी कीमत तय होनी चाहिए।
सेल्फ मंगवाने पर 40 प्रतिशत कमिशन, वही भटनागर की साठ-गाठ वाली संत तेरेसा स्कूल की उसी पब्लिशर की पुस्तक पर 15 प्रतिशत कमिशन।
भामल एमडीएच स्कूल की प्राईवेट पुस्तक पर भटनागर द्वारा दिल्ली में खट्टर को कमिशन देने के बाद दुकानदार को 15 प्रतिशत कमिशन।
30 मई 2024 का बिल जिसमें जीपीएच पब्लिसर ने 15 प्रतिशत कमिशन दिया, स्कूल संचालक ने कमिशन लेने से मना किया उसके बाद 7 जुन 2024 को 30 प्रतिशत दिया कमिशन दुकानदार को।