माही की गूंज, झाबुआ।
लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा के पहले ही भाजपा ने सभी को चोकाते हुए सांसद का टिकट काटकर अलीराजपुर जिले की जिला पंचायत अध्यक्ष अनिता नागर सिंह चौहान को टिकट दिया। वहीं कांग्रेस ने लंबे चिंतन के पश्चात वरिष्ठ नेता कांतिलाल भूरिया को टिकट दिया। तब हर क्षेत्र में यह चर्चा थी कि, क्या अनीता चौहान, कांतिलाल भूरिया को टक्कर दे पाएगी? लेकिन अपनी सरल छवि व नरेंद्र मोदी के नाम पर अनीता ने नया इतिहास रच कर अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करते हुए संसदीय सीट पर भाजपा की पहली महिला सांसद होने का गौरव प्राप्त किया। तथा 1962 में जमुना देवी के बाद दूसरी महिला सांसद बनी।
क्यों जीती अनीता...
प्रत्याशी की घोषणा, चुनाव की घोषणा के पूर्व ही हो चुकी थी और नाम घोषित होते ही प्रचार करना प्रारंभ कर दिया। मंडल स्तर तक पहुंचकर पुराने कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया, छोटी-मोटी नाराजगी को दूर किया, सबसे बड़ी बात पूरे प्रचार में केवल और केवल मोदी के नाम पर वोट मांगे। प्रदेश में भाजपा सरकार होने का भी लाभ मिला। सरल और सहज छवि और शालीनता से केवल मोदी के लिए वोट मांगे। विरोधी उम्मीदवार पर व्यक्तिगत हमले नहीं किए, केवल और केवल कमल के निशान के लिए मत याचना की। जब तक कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित होना था, तब तक अनिता प्रचार का एक राउंड पूरा कर चुकी थी। पति नागर सिंह चौहान का मंत्री होना भी अनीता के लिए प्लस पॉइंट रहा। आदिवासी अंचल की बेटी व बहू बनकर छोटे-बड़े से आशीर्वाद मांगा और लोगों के दिल में जगह बनाई। बड़ी संख्या में कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता और कार्यकरता भाजपा में शामिल हुए जिससे भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली और चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। बूथ मैनेजमेंट मजबूत रहा, कार्यकर्ताओं ने तन-मन से कार्य किया।
क्यों हारे कांतिलाल भूरिया..?
कांग्रेस का बड़ा चेहरा लेकिन टिकट प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा, जिससे कार्यकर्ता में गलत संदेश गया। बड़े नेता की छवि से बाहर नहीं निकल पाए, पुराने संबंधों के भरोसे बैठे रहे, नए संबंधों को पूर्ण जीवित नहीं किया। बड़ी संख्या में पुराने सहयोगियों ने साथ छोड़ दिया, चुनाव प्रचार में कार्यकर्ताओं का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। विधायक पुत्र का विरोधियों पर व्यक्तिगत हमला जनता को रास नहीं आया साथ ही चुनाव प्रचार में वरिष्ठ नेताओं का भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया। जिसकी वजह से संसदीय इतिहास की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पुत्र विक्रांत भूरिया ने पूरे प्रचार की बागडोर अपने हाथ में रखी, वरिष्ठ नेताओं की जिम्मेदारी तय नहीं की। साथ ही समय-समय पर भाजपा प्रत्याशी अनीता चौहान के पति वन मंत्री नागर सिंह चौहान व उनके परिवार के सदस्यो पर व्यक्तिगत आरोप लगाए तथा उनके खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया जिसे आम जनता ने पसंद नही किया।
आठ में से सात विधानसभा में बढ़त
चुनाव परिणाम के पहले तमाम सर्वे रतलाम सीट पर करीबी मुकाबला बता रहे थे। खुद कांग्रेस आशंकित थी कि, उसे मध्यप्रदेश में 5 से 6 सीट मिल सकती है, जिसमे रतलाम सीट भी शामिल थी। लेकिन परिणाम, तमाम क्यासो और अटकलों के विपरीत निकला। केवल सैलाना विधानसभा से कांग्रेस लीड ले पाई। वहीं भाजपा ने अलीराजपुर, रतलाम शहर और रतलाम के ग्रामीण से बड़ी लीड ली। जोबट, थांदला, पेटलावद, झाबुआ विधानसभा में भी सम्मानजनक लीड के साथ पूरे संसदीय क्षेत्र में अपने जीत का आंकड़ा 2 लाख के पार कर लिया। कांग्रेस को झाबुआ विधानसभा के साथ ही पेटलावद और थांदला में बड़ी उम्मीदें थी लेकिन आम मतदाताओं पर कांतिलाल भूरिया की भावनात्मक अपिल (आखरी चुनाव) का भी प्रभाव नहीं पड़ा। इस हार के साथ ही कांतिलाल भूरिया के लंबे राजनीतिक जीवन पर भी विराम लग सकता है। आगे पार्टी कोई मौका देगी इसकी संभावना कम ही है, लेकिन राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं है। वही अब अलीराजपुर, जिला संसदीय क्षेत्र का नया राजनैतिक केंद्र बिंदु बनेगा। नागर सिंह चौहान का प्रदेश की राजनीति में दखल बढ़ेगा, अलीराजपुर जिले का नाम राष्ट्रीय राजनीति में भी चमकेगा।