माही की गूंज, संजय भटेवरा।
झाबुआ। किसी कार्य को लेकर आत्मविश्वास होना अच्छी बात है, लेकिन जब यह आत्मविश्वास अति आत्मविश्वास में बदल जाता है तो अहंकार का रूप ले लेता है और कहते हैं कि, अहंकार तो स्वयं भगवान का भी टूट जाता है।
पिछले कुछ चुनाव में भाजपा ने सीटें तय करके आंकड़े संबंधी नारे जारी किए थे, लेकिन उन नारों का हश्र भी ठीक वैसा ही हुआ था, जो अबकी बार 400 पार... नारे का हुआ है।
बंगाल चुनाव व 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अबकी बार 200 पर का नारा दिया था, लेकिन दोनों ही जगह सरकार भी नहीं बन पाई थी। 2024 के आम चुनाव में भाजपा के नारे "अबकी बार 400 पार" वाली बात तो सही नहीं हुई बमुश्किल सरकार अवश्य बन रही है, वह भी सहयोगी दलों की बैसाखी पर। आम जनता ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि, वह किसी पर भी आंख मूंद कर भरोसा नहीं कर सकती और यही भारतीय लोकतंत्र की खूबी भी है। चारों ओर मोदी की गारंटी और 400 पार के नारे के बीच आम जनता ने अपना फैसला सुनाया है कि अबकी बार मजबूत विपक्ष वाली सरकार देश में होगी।
खटाखट और गारंटी का संतुलन बनाया
राहुल गांधी के खटाखट और मोदी के बीच गारंटी का आकलन करने के पश्चात जनता ने अपना संतुलित फैसला सुनाया है। जिसमें न तो आंख मूंद कर गारंटी पर भरोसा जताया है और ना ही खटाखट वाली बात को नजरअंदाज किया है, बल्कि गारंटी पर खटाखट का पहरा बिठा दिया है। भारतीय लोकतंत्र सामूहिक निर्णयों पर चलता है और जब जब लोकतंत्र पर व्यक्तिवाद मे हावि होने की कोशिश की है तो आम जनता ने उनको आईना दिखाया है। इतिहास में इंदिरा गांधी को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि वर्तमान में एनडीए की भी सरकार तीसरी बार बनने अवश्य जा रही है। लेकिन जनता ने भाजपा की अपेक्षा अनुसार सीटें नहीं दी है। शायद इसलिए परिणाम वाले दिन भर भाजपा की जीत से ज्यादा उत्तरप्रदेश में इंडिया गठबंधन के बेहतर प्रदर्शन पर चर्चा हुई। अखिलेश की साइकिल और हाथ के पंजे का गठजोड़, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के बुलडोजर पर भी भारी पड़ा और भाजपा के 400 पार वाले नारे की भी हवा उत्तरप्रदेश की जनता ने ही निकाल दी।
पार्टी से बड़ा व्यक्ति नहीं
इस चुनाव में भारतीय मतदाताओं ने एक बार फिर साबित कर दिया कि, कोई भी व्यक्ति पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता है। निःसंदेह वर्तमान दौर में नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति का चमकता सितारा हैै तथा पूरे देश में जाना पहचाना नाम है। कई उम्मीदवार केवल मोदी के नाम से ही जीत कर आए हैं, लेकिन फिर भी मोदी, भाजपा को 400 सीटें नहीं दिला पाए। कार्यकर्ता केवल 400 पार का नारा लगाते रहे। प्रचार के लिए न तो घर से निकले और न ही जनता के दर्द को समझा, केवल नारे के सहारे जमीनी हकीकत से दूर रहे। कुछ ऐसे नारों का हश्र 2004 के चुनाव में इंडिया शाईनिंग और फील गुड का हुआ था जब भाजपा के नेतृत्व वाली अटल बिहारी वाजपेई सरकार ने समय से पूर्व चुनाव करवाने का फैसला लिया था और फील गुड और इंडिया शाईनिंग जैसे हवा हवाई नारों के सहारे चुनाव लड़ा था और आम जनता ने तब भी भाजपा को जमीनी हकीकत दिखलाकर सत्ता को बेदखल कर दिया था। वर्तमान में सत्ता को एनडीए की रहना तय है। लेकिन सरकार को बिना राय मशवरे के निर्णय लेना कठिन होगा, हर मुद्दे पर सरकार के सहयोगी दलों के साथ ही विपक्षी नेताओं को भी विश्वास में लेना होगा।
आगे क्या...?
निःसंदेह इस चुनाव में आम जनता ने देश की सबसे पुरानी पार्टी को नई शक्ति और संजीवनी दी है, जिसके बल पर कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वालों की नींद भी आम जनता ने उड़ा दी है। राहुल गांधी एक परिपक्व नेता के रूप में विपक्षी की सशक्त आवाज बनेंगे। वहीं अन्य क्षत्रिय दलों को भी अपनी खोई हुईं जमीन मिल गई है। जिसके बलबूते वे राष्ट्रीय राजनीति और प्रदेश में अपनी बात रख सकेंगे। आम जनता ने दल बदलू और पार्टी के साथ दगा करने वाले को नकार दिया है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार गुट की नई ऊर्जा मिली है। वही उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने खुद को साबित किया है। चुनाव परिणाम के पूर्व ही कड़े फैसले लेने का इरादा रखने वाले प्रधानमंत्री मोदी को भी हर फैसले पर अपने सहयोगियों से राय लेना अब जरूरी होगा। प्रदेश की राजनीति के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में भी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का दखल बड़ेगा।
राम मंदिर का कितना असर...
अयोध्या में श्री राम मंदिर की प्रतिष्ठा के बाद हुए चुनाव में अयोध्या सीट हार जाना भाजपा के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। श्री राम मंदिर पूरे देश की आस्था का केंद्र बिंदु है। लेकिन आम जनता ने राम मंदिर के साथ ही स्थानीय मुद्दों को भी प्राथमिकता दी है। लोगों ने स्थानीय समस्याओं, स्थानीय नेताओं, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को भी ध्यान में रखकर वोट किया है। आजादी के अमृतकाल में हुए इस चुनाव में भारतीय मतदाताओं ने परिपक्वता के साथ लोकतंत्र में अपनी जिम्मेदारी निभाई है।
ईवीएम निर्दोष...
पूरे चुनाव परिणाम में एक बात निकलकर सामने आई कि, चुनाव जीतने पर भाजपा खुश..., सीटें बढ़ने पर कांग्रेस भी खुश..., भाजपा को 400 पार न जाने के कारण विपक्षी अन्य पार्टियां भी खुश... यानी कोई जीत कर खुश तो कोई अपने प्रदर्शन पर खुश... और कोई किसी को रोक कर खुश... तो इन सब की खुशी के बीच एक बात सामने निकल कर आई कि, इस बार चुनाव में ईवीएम पूरी तरह निष्पक्ष रही। कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई और चुनाव आयोग ने भी अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाई, कोई पक्षपात या ईवीएम हैकिंग के आरोप नहीं लगे जो अपने आप में एक बड़ी बात है। यानी ईवीएम अपनी अग्नि परीक्षा में सफल रही।
बहरहाल चुनावी नतीजे के बाद देश में बनने वाली सरकार से आम लोगों को उम्मीद रहेगी कि, वह देश के हित में निर्णय ले। शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी की जमीनी हकीकत को समझें और उनके निराकरण के लिए उचित निर्णय ले। साथ ही विपक्षी भी अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निर्वहन करें। क्योंकि एक मजबूत लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है। एकतरफा बहुमत तानाशाही को जन्म देता है और भारतीय जनता तानाशाही नहीं चाहती है। सरकार की निगरानी के लिए उन्होंने मजबूत विपक्ष को बिठाया है साथ ही आम जनता को यह उम्मीद रहेगी कि, अगले 5 साल तक राजनेता पक्ष विपक्ष को भुलाकर देश हित में निर्णय ले। चुनावी कटाक्ष व्यानबाजी को, चुनाव तक ही सीमित रखकर नए भारत का संकल्प पूर्ण करे। साथ ही सरकार को सकारात्मक मुद्दों पर विपक्ष सहयोग कर देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रयास करें।