उद्योगिक क्षेत्र की भूमि, हवा, पानी में जहर पर लगाम के लिए भानु भूरिया का प्रशासन को सात दिन का अल्टीमेटम
माही की गूंज, मेघनगर।
अंतरवेलिया नाले में मेघनगर इंडस्ट्रियल एरिया के बहने वाले एसिड युक्त जहरीला पानी पीने से नील गाय के मरने के बाद ग्रामीणों द्वारा चक्काजाम किया गया। जिसके बाद जागे भाजपा नेता भानु भूरिया ने भी मेघनगर के औद्योगिक क्षेत्र में संचालित हो रहे केमिकल सहित अन्य कारखानों से निकलने वाले जहरीले पानी की हकीकत को जमीन पर उतरकर देखा। जिसमें उनके साथ आसपास के क्षेत्रों के कई ग्रामीणों सहित मेघनगर अनुविभागीय अधिकारी मुकेश सोनी ,तहसीलदार विजेंद्र कटारे, जनपद सदस्य धनसिंह भूरिया मौजूद थे। जिसके पानी में मिले एसिडिक जहर को देखने के बाद मौके पर ही राठौर फार्मा ,ट्रेंट केमिकल ,ब्रह्मोस केमिकल,मेघनगर ऑर्गेनिक,विनी इंटरप्राइजेज,अंकित इंटरप्राइजेज के विरुद्ध पंचनामा बनाया जाकर इन फैक्ट्रियों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के अंतर्गत नोटिस दिए गए है। साथ ही प्रशासन को भानु भूरिया ने चेतावानी देते हुए कहा कि, सात दिन में इन कारखानों से होने वाले प्रदूषण को नही रोका गया तो पूरे जिले की टीम को लाकर वो औद्योगिक क्षेत्र का घेराव करेंगे।
पहले भी हो चुके हैं इस औद्योगिक जहर के विरुद्ध कई आंदोलन
मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र में संचालित खाद,ब्रोमिन, मेगनीज, केमिकल और टायर प्लांट सहित लगभग सभी कारखानो के प्रदूषण के विरुद्ध कांग्रेस के बचपन बचाओ आंदोलन से लेकर, हिंदू युवा वाहिनी, जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन सहित आम जनता ने कई बड़े आंदोलन किए। मगर फिर भी ये सभी उद्योग जो पर्यावरण संरक्षण कानून 1986,जल(प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण)अधिनियम) 1974,वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण)अधिनियम 1981के अंतर्गत मिलने वाली अनापत्ति प्रमाण-पत्र की सभी शर्तों का उल्लंघन करते हुए दिन-रात बेखौफ संचालित हो रहे हैं। वही मेघनगर ,अंतरवेलिया,अगराल सहित आसपास के गावों के लाखो लोगों को ये हवा और पानी के माध्यम से धीमा जहर बांट रहें हैं। इन कारखानों ने भूजल इतना दूषित कर दिया है की आसपास के 5 किलोमटर के क्षेत्र में हैंडपंपों ,बोरिंग से लाल जहरीला पानी आ रहा है। और तो और गारिया नाले से होता हुआ ये प्रदूषित एसिड युक्त पानी मेघनगर को मिली 32 करोड़ के नल जल योजना के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंच चुका है। मगर हवा ,पानी, जमीन में जहर फैला रहे जहर के इन सप्लायरों के विरुद्ध आज तक कोई ठोस और निर्णायक कारवाई नही हुई। जहर के इन सप्लायरों की सांठगंठ इतनी तगड़ी है की संविधान के अनुच्छेद 21 में मानव को दिए गए स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार भी स्थानीय प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के लिए कोई मायने नही रख रहा। पूरे क्षेत्र के लोग इस दूषित पानी को पीने से केंसर,किडनी और चमड़ी के रोगों से ग्रसित हो चुके हैं। साथ ही हवा में उड़ते जहर से भी क्षेत्र के लोग अस्थमा,कंजक्टिवाइटिस सहित कई गंभीर बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया हैं। प्रभावित इस पूरे क्षेत्र के लोगों का पानी पीना,सांस लेना सब दुर्भर हो चुका है और स्वस्थ जीवन का संवैधानिक अधिकार भी यहां के लोगों के लिए सिर्फ एक किताबी जुमला बन कर रह गया है।
कार्रवाई शून्यः हर बार अधिकारियों द्वारा निरीक्षण करने,नमूने लेने,नोटिस देने की चलती है नोटंकी
प्रशासन द्वारा सिर्फ 6 फैक्ट्रियों को ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के नोटिस दिए गए जबकि आद्योगिक क्षेत्र में स्थित 90 प्रतिशत उद्योग पर्यावरण कानूनों की शर्तों का उल्लंघन करते हुए जल,जमीन और हवा को दूषित कर रहें हैं। मगर प्रशासन सिर्फ छोटी मछलियों का शिकार गरीब की जोरू सबकी भाभी (कमोजर पर सब अधिकार जताते है) की तर्ज पर खाना पूर्ति करने के लिए कर रहा है। हर बार प्रदूषण नियत्रण बोर्ड के अधिकारी जल(प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण ) अधिनियम 1974 की धारा 21 के अंतर्गत नमूने तो संग्रहित करते हैं मगर इसी अधियम की धारा 22 के अंतर्गत नमूने के परिणामो का उपयोग अपने आर्थिक हित साधने में करने लग जाते हैं। जबकि इस अधिनियम की धारा 27 के अंतर्गत इन समस्त उद्योगों को धारा 25 के अंतर्गत प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र को निरस्त करने के अधिकार का इस्तेमाल कभी नही किया गया। ना ही कभी क्षेत्र के एयर क्वालिटी इंडेक्स की जांच की जो की पूरा दूषित हो चुका है। पूर्व में भी स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 में कई बार नोटिस इन प्रदूषण करने वाले उद्योगों को दिए गए। बदले में उन उद्योगों द्वारा भविष्य में ऐसा ना किए जाने का हलफनामा दे दिया जाता है। साथ ही अधिकारियों द्वारा आर्थिक सांठगांठ कर स्वीकार कर लिया जाता है और अगले दिन से फिर जहर की ये दुकानें बेखौफ संचालित होने लग जाती है, इसी तरह निरीक्षण, नमूने,नोटिस की ये नौटंकी बरसों से बदस्तूर जारी है ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी कर रहें हैं अवमानना
दिल्ली एनसीआर में पराली जलाने पर रोक वाले आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि हम लोगों को मरता हुआ नही छोड़ सकते वायु प्रदूषण को तुरंत रोका जाए। साथ ही साथ ही नदियों के जल प्रदूषण पर लिए स्वतः संज्ञान वाले आदेश में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों एसए बोबडे, एएस बोपन्ना और वी.रामासुब्रमणियम ने साफ कहा था, प्रदूषण मुक्त जल और साफ पर्यावरण नागरिकों का मालिक अधिकार है और इसे सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है। साथ ही कहा था संविधान के अनुच्छेद 21 में जीने के अधिकार के अंतर्गत स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भी शामिल है और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुच्छेद 47,48 के अंतर्गत जन स्वास्थ्य को ठीक करना और पर्यावरण सरक्षण करना राज्य का दायित्व है। मगर खुलेआम जल,जमीन,वायु को दूषित कर पर्यावरण प्रदूषण कर रहे। मेघनगर के इन ज़हरीली उद्योगों के खिलाफ कारवाई ना करके सभी जिम्मेदार अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी खुलेआम अवमानना कर रहे हैं। जबकि पर्यावरण जल ,वायु और वायु सरक्षणर कानून की कई धाराएं इनकी शर्तों का उल्लंघन करने पर किसी भी इकाई की अनापत्ति रद्द करने और इकाई को स्थाई रूप से बंद करने के अधिकार प्रदूषण बोर्ड को और दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान स्थानीय प्रशासन को देते है। अब देखना ये है की कोई ठोस और निर्णायक कारवाई होती है या वही ढाक की तीन पात की स्थिति रहेगी।