माही की गूंज, संजय भटेवरा
झाबुआ। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के थीम सॉन्ग ‘‘एमपी के मन में मोदी और मोदी के मन में एमपी’’ को लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया और अब चुनाव में बंपर जीत के बाद ‘‘मोदी के मन में मोहन को मोदी की गारंटी को पूरा करने की जिम्मेदारी है।’’ अब मोहन मोदी की गारंटी को कितना पूर्ण कर पाते हैं यह तो समय ही बताएगा। लेकिन मोहन के लिए शिवराज सरकार के कार्यों को जारी रखने के साथ ही उन कार्यों को आगे ले जाने की जिम्मेदारी भी है। शिवराज सरकार द्वारा खींची गई लाइन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मोदी के मोहन की है।
भ्रष्टाचार के शिष्टाचार का खात्मा जरूरी
शिवराज सरकार पर कांग्रेस हमेशा ही 50 प्रतिशत कमिशन की सरकार, का आरोप लगाती रही है और शायद इसी कमीशन की सरकार को मोदी ने भाप कर मोदी की गारंटी दी। जिसे आम जनता ने स्वीकार किया और पूरे प्रदेश में मोदी की गारंटी को, 50 प्रतिशत कमीशन और कमलनाथ के वचन के मुकाबले ज्यादा समर्थन मिला और डबल इंजन की सरकार पर अपनी स्वीकृति दी। अब मोहन सरकार के लिए इस ‘‘भ्रष्टाचार के शिष्टाचार’’ का खात्मा करना एक बड़ी चुनौती होगी। यही नहीं इस सरकार को शिवराज सरकार के आभामंडल से भी निकलना होगा। शिवराज सरकार पर एक और आरोप कांग्रेस लगाती रही वह है बेलगाम नौकरशाही का जिस पर काबू पाना भी मोहन सरकार के लिए चुनौती होगा।
घोषणावीर के तमगे से मुक्ति पाना भी इस सरकार के लिए आवश्यक होगा। क्योंकि कांग्रेस हमेशा ही शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर कहती रही है और इस सरकार के लिए घोषणावीर के बजट विकास कार्यों को जमीन पर उतारने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।
पलायन और रोजगार
आदिवासी अंचल झाबुआ-अलीराजपुर के साथ ही कई जिलों में रोजगार के लिए पलायन होना आम बात है और चुनाव में दोनों ही दलों के लिए यह चुनावी मुद्दा रहा है। लेकिन आजादी के अमृतकाल और इतनें चुनाव बीत जाने के बाद भी आज भी यह मुद्दा न केवल जीवित है बल्कि पांव पसारता ही जा रहा है। हर सरकार के रोजगार उपलब्ध कराने के दावे “ऊट के मुंह में जीरा“ वाली कहावत ही चरितार्थ करते नजर आए हैं। झाबुआ-अलीराजपुर जैसे जिले में तो होली के बाद कई गांव खाली हो जाते हैं। यहां ‘‘बाधो रोटा और चालो कोटा’’ वाली कहावत आज भी प्रचलित है। जिसका अर्थ है कि, काम की तलाश में कोटा या सूरत जाने से अब तो जिले के श्रमिक अपना श्रम बेचने देश के विभिन्न हिस्सों यहां तक की कर्नाटक और बंगाल जैसे राज्यों में भी जाने लगे है।ं हालांकि केंद्र सरकार द्वारा रोजगार गारंटी के लिए लाई गई मनरेगा योजना लागू है लेकिन उसमें अनियमित भुगतान तथा कार्य की निरन्तरता न होने से यह योजना अब आमलोगों का विश्वास खोती नजर आ रही है। इसका प्रभावी क्रियान्वयन होना भी आवश्यक है ताकि आम लोगों का इस योजना के प्रति पूर्ण विश्वास जाग्रत हो।
कांग्रेस से अपेक्षाएं
लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका के महत्व को भी नज़र अंदाज़ नही किया जा सकता है। इस चुनाव में लोगो ने कॉग्रेस को विपक्ष की भूमिका के लिए चुना है। इसलिए कांग्रेस को चाहिए कि, वे सकारात्मक विपक्ष की भूमिका के साथ लोगों का विश्वास जितने का प्रयास करें। विरोध केवल विरोध के लिए न होकर विरोध मुद्दे आधारित होना चाहिए न की व्यक्तिगत विरोध। कांग्रेस यही गलती दोहराती रही है शिवराज सरकार का विरोध करते-करते उसका विरोध केवल शिवराजसिंह चौहान तक की सीमित हो गया था और शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तिगत विरोध को ही सरकार का विरोध मान लिया गया था, जिसको चुनाव में जनता ने नकार दिया। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल वर्तमान में पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, भाजपा ने मोहन यादव को नेतृत्व देकर तो, कांग्रेस ने भी युवा चेहरे जीतू पटवारी, उमंग सिंगार और हेमंत कटारे के हाथों में कमान सौंप कर इसकी शुरुआत कर दी है। अब दोनों ही दल नए और युवा चेहरों के भरोसे है और आम जनता को भी इन युवा चेहरों से कई उम्मीद् है। मोदी के मोहन से शिवराज के विकास कार्यों को आगे ले जाने की तो, जीतू ,उमंग और हेमंत से उम्मीदें हैं कि, वे कांग्रेस को दिग्विजय और कमलनाथ के आभामंडल से बाहर निकालकर लोकतांत्रिक तरीके से सशक्त विपक्ष की भुमिका का निर्वहन कर सरकार का विरोध करके कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाएं। क्योंकि लोकतंत्र में सरकार पर नियंत्रण के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है। इन युवा चेहरो से आम जनता को भी उम्मीद् है कि, वे न केवल कांग्रेस को एकजुट कर पाएंगे बल्कि सशक्त विपक्ष की भूमिका का निर्वहन भी अच्छे से कर पाएंगे।