माही की गूंज, पारा।
हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और गाय को माता के समान पूजा जाता है। कई बार देखा जाता है कि, लोग घायल गायों का ध्यान नहीं रखते हैं, देख कर भी अनदेखा कर देते हैं मगर उपचार नहीं करवाते हैं। यूं तो गो रक्षा के लिए युवाओं ने कई संगठन भी बना रखे है संगठन में अलग-अलग पदभार दिया गया है लेकिन अपने पदभार का उपयोग कोई नहीं करता है। गांव में दर्जन भर से अधिक गाय आवारा की भांति यहां-वहां घूमती रहती हैं। सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि, कई पशुपालक अपने पशुओं को गांव में खुला छोड़ देते है व जब गाय दूध देने लायक हो जाती है तो पशुपालक पशुओं को घर बांधकर रखते हैं, जहां दूध देना बंद हुआ कि फिर आवारा की तरह छोड़ देते हैं।
ग्राम पारा में ऐसी ही एक गाय पिछले 15 दिनों से घायल अवस्था में गांव में घूम रही थी। जिसकी पूंछ के पास किसी कारण से सड़न लगने से बड़ा घाव हो गया था और लगातार खून निकल रहा था। गौ रक्षक के ठेकेदार जानते हुए भी अंजान बने हुए थे। जब ग्रामीणों ने संगठन वालों को सूचना दी जब जाकर संगठन की नींद खुली, संगठन वाले गाय को उपचार के लिए स्थानीय पशु चिकित्सालय ले गए जहां पशु चिकित्सक ने ड्रेसिंग कर गाय का उपचार किया।
जब इस मामले को लेकर पारा में पदस्थ पशुचिकित्सक अश्विन से पुछा गया तो उनका कहना है कि, हमारा चिकित्सालय आबादी क्षेत्र से बाहर बना हुआ है। मुझे गाय के बारे में जानकारी नही थी।
अब एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि, पशुचिकित्सक जब पारा ग्राम में पदस्थ है तो उन्हें ग्राम में घूम रहे आवारा पशु दिखाई क्यों नही दिए...? क्या वह ड्यूटी समय मे ऑफिस में बैठने ही आते है...? क्या पशुचिकित्सक कभी ग्राम में भ्रमण पर नही निकलते...?